बसपा सुप्रीमो मायावती को राहत, मूर्तियां लगाने में सरकारी धन के बर्बादी के आरोपों की नहीं होगी जांच, सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने बसपा सुप्रीमो मायावती को राहत देते हुए उनके खिलाफ सरकारी खजाने के दुरुपयोग की जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में आरोप था कि मायावती ने मुख्यमंत्री रहते...
नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बसपा सुप्रीमो मायावती को राहत देते हुए, उनके खिलाफ सरकारी खजाने के दुरुपयोग की जांच कराने की मांग को लेकर 2009 में दाखिल जनहित याचिका का निपटारा कर दिया। शीर्ष अदालत में दाखिल इस याचिका में बसपा सुप्रीमो पर मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी की प्रतिमा लगाने और अपनी महिमा मंडन पर सरकारी खजाने से 2000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने की जांच कराने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट से यह राहत बसपा सुप्रीमो को उनके जन्मदिन के दिन मिला है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अधिवक्ता रविकांत और सुकुमार द्वारा याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि ‘याचिका में की गई अधिकांश मांगे निरर्थक हो गई हैं। इतना ही नहीं, पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग (ईसी) ने पहले ही इस मुद्दे पर दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं और मूर्तियों की स्थापना पर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि वे पहले ही स्थापित की जा चुके हैं। यानी इस मामले में उनके खिलाफ जांच नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि वित्तीय वर्ष 2008-09 और 2009-10 के राज्य के बजट से कुल लगभग 2,000 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल बसपा प्रमुख मायावती के मुख्यमंत्री रहने के दौरान विभिन्न स्थानों पर उनकी और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के चुनाव चिन्ह- हाथी- की मूर्तियां स्थापित करने के लिए किया गया था। याचिका में दावा किया गया था कि 52.2 करोड़ रुपये की लागत से 60 हाथी की मूर्तियों की स्थापना न केवल जनता के पैसे की बर्बादी है, बल्कि चुनाव आयोग द्वारा जारी परिपत्रों के भी विपरीत है।
बसपा प्रमुख मायावती ने 2 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखते हुए न सिर्फ अपने फैसले को सही ठहराया था बल्कि यह भी कहा था कि राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर उनकी आदमकद मूर्तियों और बसपा के चुनाव चिन्ह का निर्माण ‘लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने अदालत को बताया था कि कांग्रेस ने भी अतीत में देश भर में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव सहित अपने नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित की हैं। बसपा प्रमुख ने शीर्ष अदालत में पक्ष रखते हुए राज्य सरकारों द्वारा प्रतिमाएं स्थापित करने के हालिया उदाहरणों का भी उल्लेख किया था, जिसमें गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा, जिसे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के रूप में जाना जाता है, शामिल है। इसके अतिरिक्त बसपा सुप्रीमो ने यह भी कहा था कि भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी खजाने की लागत से अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची प्रतिमा का निर्माण किया है। उन्होंने यह भी कहा था कि कहा कि इस प्रकार, स्मारकों का निर्माण और मूर्तियों की स्थापना भारत में कोई नई घटना नहीं है।
बसपा प्रमुख ने शीर्ष अदालत में कहा था कि ‘इसी तरह, केंद्र और राज्यों में सत्ता में रहने वाले अन्य राजनीतिक दलों ने भी समय-समय पर सरकारी खजाने की लागत से सार्वजनिक स्थानों पर विभिन्न अन्य नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित की हैं, लेकिन न तो मीडिया और न ही याचिकाकर्ताओं ने उनके संबंध में कोई सवाल उठाया है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने अपना पक्ष रखते हुए शीर्ष अदालत से अपने खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करने की मांग की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया गया है। उन्होंने जांच की मांग वाली याचिका को राजनीति से प्रेरित बताते हुए, इसे अदालत की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग बताया था।
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की ओर से 2019 के दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि राज्य विधानमंडल ने समकालीन महिला दलित नेता के प्रति सम्मान दिखाने के लिए स्मारकों में उनकी (मायावती) मूर्तियां स्थापित करने के प्रस्ताव के साथ लोगों की इच्छा व्यक्त की थी, जिन्होंने दलितों, दलितों, अनुसूचित जनजातियों और सभी समुदायों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों सहित वंचित समुदायों के लिए अपना जीवन बलिदान करने का फैसला किया है।
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