उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव के मसले पर यूजीसी से विस्तृत रिपोर्ट मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव की शिकायतों के समाधान के लिए यूजीसी को समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना और शिकायतों की कार्रवाई पर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।...
नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव के मामले में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना और प्राप्त शिकायतों पर की गई कार्रवाई के बारे में विस्तृत ब्यौरा पेश करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव को खत्म करने की मांग को लेकर रोहित वेमुला और पायल तड़वी की मां की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर विचार करते हुए यूजीसी को यह निर्देश दिया है।
जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने यूजीसी को केंद्रीय/राज्य/निजी/ डिम्ड विश्वविद्यालयों से समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना के बारे में आंकड़े एकत्र करके पेश करे। इतना ही नहीं, पीठ ने आयोग को यूजीसी (उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा देना) विनियम, 2012 के तहत प्राप्त शिकायतों की कुल संख्या और उस पर गई कार्रवाई के बारे में भी रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
मामले की सुनवाई के दौरान पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा कि पिछले 20 सालों यानी 2004-24 के बीच अकेले आईआईटी में 115 छात्रों ने खुदकुशी की है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ‘यह अदालत मामले की संवेदनशीलता से अवगत है और उच्च शिक्षण संस्थानों में समान अवसर को बढ़ावा देने के लिए 2012 में बनाए गए कानून /नियमों को प्रभावी तरीके से लागू करने और वास्तविकता में बदलने के लिए एक तंत्र खोजने के लिए समय-समय पर इसकी सुनवाई शुरू करेगा।
इससे पहले, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और अधिवक्ता दिशा वाडेकर ने पीठ को बताया कि यूजीसी द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए 2012 में बनाए गए नियमों को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया गया है। उन्होंने पीठ से केंद्र और राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद से इस बारे में आंकड़े मांगने का आग्रह किया, जिसमें उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी के छात्रों द्वारा आत्महत्या की संख्या के बारे में डेटा भी शामिल हो। हालांकि पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता सिंह की उस दलील को ठुकरा दिया, जिसमें शिक्षण संस्थानों में खुदकुशी करने वाले छात्रों का जातिवार ब्यौरा पेश करने का आदेश देने की मांग की थी। पीठ ने कहा कि वह एक साथ बहुत अधिक मुद्दों पर सुनवाई करने के बजाए मामले में चरण-दर-चरण आगे बढ़ेंगे।
यूजीसी की ओर से पेश अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि कुछ नए नियम बनाए गए हैं। इसके बाद पीठ ने यूजीसी को नये नियम को अधिसूचित करने और अदालत के रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से पीठ को बताया गया कि यूजीसी से यह पूछा जाना चाहिए कि देश भर में कुल 820 विश्वविद्यालयों (केंद्रीय/राज्य/मान्य) में से कितने ने समान अवसर प्रकोष्ठ स्थापित किए हैं? यदि स्थापित किए गए हैं, तो इन प्रकोष्ठों की संरचना क्या है? इसके साथ ही 2012 के विनियमों के कार्यान्वयन के लिए यूजीसी द्वारा की जा रही निगरानी की प्रकृति क्या है?
यह है मामला
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में शोध छात्र रोहित वेमुला ने 17 जनवरी, 2016 को कथित तौर पर जातिगत भेदभाव के चलते खुदकुशी कर ली थी। इसके तीन साल बाद, मुंबई के टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज में आदिवासी छात्रा पायल तड़वी ने भी 22 मई, 2019 को खुदकुशी कर ली। इसके बाद 2019 में, रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला और पायल तड़वी की मां अबेदा सलीम तड़वी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। याचिका में कॉलेजों विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों के साथ जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए एक तंत्र बनाने की मांग की।
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