शौचालय न सिर्फ जरूरी सुविधा है बल्कि मानवाधिकार का भी हिस्सा है- सुप्रीम कोर्ट
प्रभात कुमार नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि शौचालय
प्रभात कुमार नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि शौचालय न सिर्फ जरूरी सुविधा है बल्कि मानवाधिकार का पहलू भी इससे जुड़ा है। शीर्ष अदालत ने देशभर के अदालत परिसरों और न्यायाधिकरणों में महिलाओं, दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए शौचालय व अन्य मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हुए यह टिप्पणी की है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने राजीब कलिता की ओर से 2023 में दाखिल जनहित याचिका पर विचार करते हुए यह दिशा-निर्देश जारी किया है। पीठ ने कहा है कि ‘हमारी राय में, शौचालय/ वाशरूम केवल सुविधा का मामला नहीं है, बल्कि एक बुनियादी आवश्यकता है जो मानवाधिकारों का भी एक पहलू है। इतना ही नहीं, पीठ ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित स्वच्छता तक पहुंच को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। साथ ही कहा है कि इस अधिकार में सभी व्यक्तियों के लिए सुरक्षित और स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करना स्वाभाविक रूप से शामिल है। जस्टिस महादेवन द्वारा लिखे गए इस फैसले में कहा गया है कि संविधान के भाग IV के तहत प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश पर एक स्पष्ट कर्तव्य है कि वे एक स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करें और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए निरंतर प्रयास करें। पीठ ने कहा है कि बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच के बिना लंबे समय तक अदालतों में बैठने के डर से वादियों को अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करने से परहेज करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा है कि इसलिए, उच्च न्यायालय परिसर में न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, वादियों और कर्मचारियों के लिए उचित शौचालय की सुविधा होनी चाहिए, जैसा कि अन्य सार्वजनिक स्थानों पर आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, यह सुनिश्चित करना भी उतना ही आवश्यक है कि ये सुविधाएँ सभी को पर्याप्त रूप से प्रदान की जाएं, उनका रखरखाव किया जाए और बिना किसी असुविधा या परेशानी के सभी के लिए सुलभ हों। फैसले में कहा गया है कि जहां तक जिला अदालतों का सवाल है, हमें इस बारे में अपनी गहरी चिंताओं की तरफ भी ध्यान देना चाहिए क्याोंकि ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जहां जजों को भी, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अभी भी उचित शौचालय की सुविधाधाएं नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह न केवल सीधे प्रभावित लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि न्यायिक प्रणाली की प्रतिष्ठा को भी धूमिल करता है, जिसे निष्पक्षता, गरिमा और न्याय के मॉडल के रूप में काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्याप्त शौचालय सुविधाएं प्रदान करने में विफलता केवल एक तार्किक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह न्याय प्रणाली में एक गहरी खामी को दर्शाता है।
इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 34 पन्नों के अपने फैसले में कहा है कि ‘हमने महिलाओं, दिव्यांग व्यक्तियों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों आदि के लिए शौचालयों और अन्य सभी सुविधाओं के निर्माण और रखरखाव के लिए पर्याप्त संख्या में निर्देश दिए हैं। पीठ ने कहा है कि सभी राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश अदालत परिसर में शौचालय सुविधाओं के निर्माण, रखरखाव और सफाई के लिए पर्याप्त धनराशि आवंटित करेंगे और समय-समय पर उच्च न्यायालयों द्वारा गठित समिति के परामर्श से इसकी समीक्षा की जाएगी। यह निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और उच्च न्यायालयों को चार माह के भीतर इस बारे में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है। पीठ ने फैसले की प्रति सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को भेजने का आदेश दिया है ताकि इसका पालन हो सकेा।
शौचालय की कमी समानता को करता है कमजोर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शौचालय की पर्याप्त सुविधाओं का अभाव समानता को कमजोर करता है और न्याय के निष्पक्ष प्रशासन में बाधा उत्पन्न करता है। पीठ ने कहा है कि इसलिए, सभी उच्च न्यायालयों को इस मुद्दे को हल करने के लिए त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए। पीठ ने कहा है कि यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है कि सभी न्यायिक परिसर, विशेष रूप से जिनमें उचित सुविधाओं का अभाव है, न्यायाधीशों, वादियों, अधिवक्ताओं और कर्मचारियों के लिए सुलभ शौचालय सुविधाओं से सुसज्जित हों। फैसले में कहा है कि तुरंत कार्रवाई करने में विफल होने से हमारे समाज में न्यायपालिका की भूमिका के उद्देश्य और सार से समझौता होगा।
प्रमुख दिशा निर्देश
- उच्च न्यायालय और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश देश भर के सभी अदालत परिसरों और न्यायाधिकरणों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांगों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग-अलग शौचालय सुविधाओं का निर्माण और उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे।
- उच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करेंगे कि ये सुविधाएं न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, वादियों और न्यायालय कर्मचारियों के लिए स्पष्ट रूप से पहचान योग्य और सुलभ हों।
- उपर्युक्त उद्देश्य के लिए, प्रत्येक उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी और इसके सदस्यों में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल/रजिस्ट्रार, मुख्य सचिव, दिव्यांग सचिव और राज्य के वित्त सचिव, बार एसोसिएशन का एक प्रतिनिधि और कोई अन्य अधिकारी शामिल होंगे, जिन्हें वे उचित समझें।
-समिति एक व्यापक योजना तैयार करेगी, निम्नलिखित कार्य करेगी और उसका कार्यान्वयन सुनिश्चित करेगी।
1- प्रतिदिन औसतन न्यायालयों में आने वाले व्यक्तियों की संख्या का आंकड़ा रखना तथा यह सुनिश्चित करना कि पर्याप्त पृथक शौचालयों का निर्माण तथा रख-रखाव किया गया है।
2. शौचालय सुविधाओं की उपलब्धता, अवसंरचना में कमी तथा उनके रख-रखाव के संबंध में सर्वेक्षण करना।
3. नये शौचालयों के निर्माण के दौरान, न्यायालयों में वैकल्पिक सुविधाएं जैसे मोबाइल शौचालय, पर्यावरण अनुकूल शौचालय (बायो-टॉयलेट) उपलब्ध कराना, जैसा कि रेलवे में किया जाता है।
4. महिलाओं, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, दिव्यांग व्यक्तियों के लिए, कार्यात्मक सुविधाओं जैसे कि पानी, बिजली, चालू फ्लश, हाथ धोने के साबुन, नैपकिन, टॉयलेट पेपर तथा अद्यतन प्लंबिंग सिस्टम के साथ-साथ स्पष्ट संकेत तथा संकेत प्रदान करना। विशेष रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के शौचालयों के लिए, रैंप की स्थापना सुनिश्चित करना तथा यह सुनिश्चित करना कि शौचालयों को उनके लिए उपयुक्त बनाया गया है।
5. मुंबई, कलकत्ता, चेन्नई आदि जैसे हेरिटेज कोर्ट भवनों के संबंध में वास्तुकला अखंडता बनाए रखने के बारे में एक अध्ययन आयोजित करना। शौचालय बनाने के लिए कम उपयोग किए गए स्थानों का उपयोग करके मौजूदा सुविधाओं के साथ काम करना, पुरानी पाइपलाइन प्रणालियों के आसपास काम करने के लिए मॉड्यूलर समाधान, स्वच्छता सुविधाओं को आधुनिक बनाने के लिए समाधानों का आकलन करने के लिए पेशेवरों को शामिल करना।
6. एक अनिवार्य सफाई कार्यक्रम को प्रभावी बनाना और रखरखाव के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति सुनिश्चित करना और स्वच्छ शौचालय प्रथाओं पर उपयोगकर्ताओं को संवेदनशील बनाने के साथ-साथ सूखे बाथरूम के फर्श को बनाए रखना।
7. प्रत्येक उच्च न्यायालय/जिला न्यायालय/सिविल न्यायालय/ट्रिब्यूनल परिसर में एक व्यक्ति को नोडल अधिकारी के रूप में नामित या नियुक्त करना जो रखरखाव की निगरानी करेगा, शिकायतों का समाधान करेगा और पीठासीन अधिकारी या उपयुक्त समिति से संवाद करेगा; ऐसे प्राधिकारी को शिकायतों का समाधान करना चाहिए और उक्त शौचालयों के रखरखाव और कामकाज के संबंध में लिखित रूप में स्थायी निर्देश देने चाहिए; और जिम्मेदारियां तय की जानी चाहिए।
8. पारिवार न्यायालय परिसरों में बच्चों के लिए सुरक्षित शौचालय बनाना, जिसमें प्रशिक्षित कर्मचारी हों, जो बच्चों को सुरक्षित और स्वच्छ स्थान प्रदान करने के लिए सुसज्जित हों।
9. स्तनपान कराने वाली माताओं या शिशुओं वाली माताओं के लिए अलग-अलग कमरे (महिलाओं के शौचालय से जुड़े हुए) उपलब्ध कराना, जिसमें फीडिंग स्टेशन और नैपकिन बदलने की सुविधा उपलब्ध हो। स्तनपान कराने वाली माताओं की सहायता के लिए स्तनपान सुविधाओं को शामिल करने पर विचार करना, साथ ही हवाई अड्डों पर उपलब्ध सुविधाओं के समान शौचालय क्षेत्रों में नैपकिन बदलने के लिए समर्पित प्लेटफॉर्म बनाना।
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