भगवान को राजनीति से दूर राखा जाना चाहिए, रिपोर्ट से पता नहीं चलता है कि तिरुपति मंदिर में लड्डू बनाने के
प्रभात कुमार नई दिल्ली। तिरुमाला तिरुपति मंदिर में प्रसाद लड्डू में मिलावटी घी के
प्रभात कुमार नई दिल्ली।
तिरुमाला तिरुपति मंदिर में प्रसाद लड्डू में मिलावटी घी के इस्तेमाल को लेकर सार्वजनिक बयान दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की कड़ी आलोचना की। शीर्ष अदालत ने कहा है कि जब विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा मामले की जांच की जा रही थी तो फिर संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति यानी मुख्यमंत्री के सार्वजनिक बयान का क्या औचित्य है?
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने मुख्यमंत्री नायडू के सार्वजनिक बयान की आलोचना करते हुए कहा कि अभी तक लैब रिपोर्ट से प्रथम दृष्टया इस बात का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है कि मिलावटी घी का इस्तेमाल मंदिर के प्रसाद लड्डू बनाने में किया गया था। पीठ ने कहा कि रिपोर्ट से प्रथम दृष्टया सिर्फ इस बात का संकेत मिलता है कि जिस ‘घी के नमूने की जांच की गई है, वह अस्वीकृत घी थे। सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति लड्डू बनाने में पशु की चर्बी युक्त मिलावटी घी का इस्तेमाल के आरोपों की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, तिरुमाला तिरुपति ट्रस्ट (टीटीडी) के पूर्व अध्यक्ष व वाईएसआर कांग्रेस के नेता वाईवी सुब्बा रेड्डी व अन्य की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
इतना ही नहीं मामले की सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘भगवान को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए और जाएगा। पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में जारी लैब रिपोर्ट में कुछ अस्वीकरण हैं लेकिन इसमें यह स्पष्ट नहीं है और प्रथम दृष्टया इस बात का संकेत दे रहा है कि यह अस्वीकृत घी था, जिसका परीक्षण किया गया था। जस्टिस विश्वनाथन ने आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि ‘यदि राज्य सरकार ने खुद मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित की थी तो फिर प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? उन्होंने कहा कि जिस रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री ने बयान दिया, उस रिपोर्ट प्रथम दृष्टया इस बात का पता चलता है कि यह वह सामग्री (घी) नहीं है जिसका इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया गया था।
संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से की जाती है अपेक्षा- जस्टिस गवई
मुख्यमंत्री के बयान पर नाराजगी जाहिर करते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि ‘जिस रिपोर्ट के आधार पर बयान दिए गए, वह जुलाई की है और मुख्यमंत्री सितंबर माह में बयान दे रहे हैं, आखिर इस बयान का क्या औचित्य है? उन्होंने राज्य सरकार से कहा कि जब आपने एसआईटी जांच का आदेश दिया है, तो प्रेस में जाने की क्या जरूरत पड़ी? जस्टिस गवई ने कहा कि जब संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है, हम उम्मीद करते हैं कि देवताओं को राजनीति से दूर रखा जाएगा। पीठ ने कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार से कहा कि आपको जुलाई में रिपोर्ट मिलती है और आपने इसे 18 सितंबर को सार्वजनिक किया। जस्टिस गवई ने कहा कि जब तक आप सुनिश्चित नहीं थे, रिपोर्ट सार्वजनिक कैसे हो गए? उन्होंने टीटीडी से भी पूछा कि क्या लड्डू बनाने में उस घी का उपयोग किया गया था? इस पर टीटीडी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ को बताया कि हमने जांच का आदेश दिया है।
यह करोड़ों भक्तों के आस्था का सवाल है, दूसरी राय क्यों नहीं ली
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब आपके पास इस तरह के परिणाम वाले लैब रिपोर्ट आए तो क्या समझदारी यह नहीं कहती कि आप दूसरी राय लें? जबकि इस रिपोर्ट से इस बात का कोई संकेत या साक्ष्य नहीं है कि कथित मिलावटी घी का इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया गया। इस पर, टीटीडी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता लूथरा ने पीठ को बताया कि लड्डू की गुणवत्ता और संभावित मिलावट के बारे में शिकायतें मिली थी। लूथरा ने कहा कि एनडीडीबी की लैब रिपोर्ट में मिलावट दिखाया गया है और इसकी प्रकृति की जांच की जा रही है। इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि लैब रिपोर्ट ये नियमित परीक्षण हैं और ये घी के एक लॉट को अस्वीकार करने को उचित ठहराने के लिए किए जाते हैं। पीठ ने कहा कि जब जांच का आदेश दिया था तो रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से बताने की क्या ज़रूरत थी? यह लाखों भक्तों की भावनाओं का मामला है।
क्या स्वतंत्र जांच
सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह बताने के लिए कहा कि क्या मामले की जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी की जांच पर्याप्त है या स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है। पीठ ने इस बारे में मेहता से केंद्र सरकार से समुचित निर्देश प्राप्त करने और जानकारी देने को कहा है। पीठ ने इसके साथ ही मामले की सुनवाई 3 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ‘प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि जब जांच चल रही थी, तो उच्च संवैधानिक प्राधिकारी द्वारा ऐसा बयान देना उचित नहीं था, जिससे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं। पीठ ने कहा कि मामले के इस दृष्टिकोण से, हमारा मानना है कि यह उचित होगा कि सॉलिसिटर जनरल इस बारे में हमारी सहायता करें कि राज्य द्वारा गठित एसआईटी को जारी रखा जाना चाहिए या किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की जानी चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि ये आस्था का मामला है, इसकी जांच होनी चाहिए कि कौन जिम्मेदार था और किस मकसद से था। इस पर जस्टिस गवई ने हां, बिल्कुल जांच होनी चाहिए।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।