वक्फ संशोधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) विधेयक-2025 की वैधता को चुनौती दी है। याचिकाओं में कहा गया है कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय के साथ...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष व सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर वक्फ (संशोधन) विधेयक- 2025 की वैधता को चुनौती दी है। शीर्ष अदालत में दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि यह विधेयक न सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है बल्कि मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है।
बिहार के किशनगंज से लोकसभा सांसद जावेद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष ओवैसी की ओर से दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि इस विधेयक में वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन पर मनमाने प्रतिबंध लगाने के प्रावधान किये गये हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता कमजोर होगी। अधिवक्ता अनस तनवीर और लजफीर अहमद के जरिए दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि वक्त संशोधन विधेयक 2025 में मुस्लिम समुदाय से भेदभाव किया गया है क्योंकि इसमें ऐसे कई प्रतिबंध लगाए गए हैं, जो अन्य धार्मिक बंदोबस्तों में मौजूद नहीं हैं। याचिकाकर्ता जावेद इस विधेयक को लेकर गठित संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य भी रहे हैं। उन्होंने याचिका में आरोप लगाया है कि विधेयक में प्रावधान है कि कोई व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने के आधार पर ही वक्फ कर सकेगा।
लोकसभा ने 2 अप्रैल को विधेयक को मंजूरी दे दी गई। लोकसभा में 288 सदस्यों ने विधेयक का समर्थन और 232 ने विरोध में मतदान किया था। इसी तरह राज्यसभा ने 3 अप्रैल को 128 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में जबकि 95 ने विरोध में मतदान किया, जिसके बाद इसे पारित कर दिया गया।
शीर्ष अदालत में दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि इस तरह की सीमाएं इस्लामी कानून, परंपरा के अनुसार निराधार हैं और संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म को मानने और उसका पालन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती हैं। इसमें कहा गया कि इन प्रतिबंधों से उन लोगों के खिलाफ भेदभाव होगा, जिन्होंने कुछ समय पहले इस्लाम धर्म अपनाया हो और अपनी संपत्ति धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित करना चाहते हों। लिहाजा इससे संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन होता है। अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के निषेध से संबंधित है। याचिकाओं में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना में संशोधन करके वक्फ प्रशासनिक निकायों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य कर दिया गया है। याचिका के अनुसार यह विभिन्न राज्य अधिनियमों के तहत विशेष रूप से हिंदुओं द्वारा प्रबंधित किए जा रहे हिंदू धार्मिक बंदोबस्तों के विपरीत धार्मिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप है। शीर्ष अदालत में दाखिल याचिकाओं कहा गया है अन्य धार्मिक संस्थाओं पर समान शर्तें लागू किए बिना चुनिंदा तरीके से हस्तक्षेप किया गया है और यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत को याचिकाओं के जरिए बताया गया है कि वक्फ प्रशासन में राज्य प्राधिकारियों की बढ़ी हुई भूमिका अपने संस्थानों के प्रबंधन के मुस्लिम समुदाय के अधिकार पर अतिक्रमण है। इतना ही नहीं, याचिकाओं में कहा गया है कि विधेयक में वक्फ संपत्तियों की प्रकृति निर्धारित करने की शक्ति जैसे प्रमुख प्रशासनिक कार्य वक्फ बोर्ड से लेकर जिला कलेक्टर को सौंप दिए गए हैं। शीर्ष अदालत को यह भी बताया गया है कि वक्फ अधिनियम में किए गए ये संशोधन अनुच्छेद 300ए के तहत संरक्षित संपत्ति अधिकारों को कमजोर करते हैं। साथ ही कहा गया है कि वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाए जाने से धार्मिक उद्देश्यों के लिए संपत्ति समर्पित करने की व्यक्तियों की क्षमता सीमित हो जाएगी। याचिकाओं में कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों को नियंत्रण सौंपने से वक्फ प्रबंधन की स्वायत्तता कमजोर होगी जोकि अनुच्छेद 26डी के प्रावधानों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि प्रस्तावित कानून के जरिए वक्फ न्यायाधिकरणों की संरचना और शक्तियों में परिवर्तन करके विवादों के समाधान की प्रक्रिया में भी बदलाव होगा। याचिका में दावा किया गया है कि इस बदलाव से विशेष न्यायाधिकरणों के जरिये कानूनी सहायता लेने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जबकि अन्य धार्मिक संस्थाओं को उनके संबंधित बंदोबस्ती कानूनों के तहत मजबूत सुरक्षा प्रदान की गई है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में कहा गया विधेयक में ‘वक्फ-बाय-यूजर की अवधारणा को छोड़ दिया गया है। याचिका मेह कहा गया है कि अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले में वक्फ-बाय-यूजर के सिद्धांत की विधिवत पुष्टि की गई थी। याचिका में यह भी कहा गया है कि फैसले में कहा गया था कि कोई संपत्ति लंबे समय तक धार्मिक उपयोग के माध्यम से वक्फ का दर्जा प्राप्त कर सकती है।
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