बिजनेस--- आर्थिक सर्वेक्षण ::: भारतीय उपभोक्ताओं पर आलू, प्याज, टमाटर की मार
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नई दिल्ली, विशेष संवाददाता। बजट सत्र के पहले दिन पेश आर्थिक समीक्षा के अनुसार टमाटर, प्याज और आलू की कीमतें भारतीय उपभोक्ताओं की जेब पर भारी पड़ रही हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि कुछ क्षेत्रों में असमान मानसून के कारण आपूर्ति में व्यवधान के कारण कीमतों पर दबाव आया, जिससे चालू वित्त वर्ष के दौरान सब्जियों की मुद्रास्फीति दर और खाद्य महंगाई में वृद्धि हुई। सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि टमाटर, प्याज और आलू को मूल्य के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील सब्जियां माना जाता है, जो खाद्य मुद्रास्फीति और समग्र उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) को प्रभावित करती हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली तीन तिमाहियों में औसत खाद्य मुद्रास्फीति दर 6.5% रही, जो वर्तमान दर से 1.9% कम है। यदि टमाटर, प्याज और आलू को गणना से हटा दिया जाए, तो मुख्य मुद्रास्फीति दर 4.2 प्रतिशत होती। रिपोर्ट में इसका भी उल्लेख किया गया है कि टमाटर और प्याज की कीमतों में वृद्धि हाल के महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति और मुख्य मुद्रास्फीति के प्रमुख कारक रहे हैं।
मूल्य वृद्धि का कारण
सर्वेक्षण में कहा गया है कि सब्जियों की कीमतें मौसम में होने वाले बदलावों से प्रभावित होती हैं और खाद्यान्नों की तुलना में अधिक अस्थिर होती हैं। चक्रवात, भारी बारिश, बाढ़, आंधी, ओलावृष्टि और सूखे जैसी प्राकृतिक मौसमी घटनाएं पूरे देश में सब्जियों की कीमतों को प्रभावित करती हैं। रिपोर्ट में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों का भी हवाला दिया गया है और कहा गया है कि भारत में 2020 और 2021 में 5 प्रतिशत दिनों की तुलना में 18 प्रतिशत दिनों में हीटवेव देखी गई।
अगले वित्त वर्ष राहत की उम्मीद
सर्वेक्षण में आगामी वित्त वर्ष में महंगाई दर नियंत्रण में रहने का अनुमान हैं। वित्त वर्ष 2026 में देश की औसत महंगाई दर चार प्रतिशत के लक्ष्य के करीब आ जाएगी, जिससे आर्थिक गतिविधियों को मजबूती मिलेगी। खुदरा प्रमुख महंगाई 5.4 प्रतिशत से घटकर अप्रैल-दिसम्बर 2024 में 4.9 प्रतिशत हो गई। आरबीआई और आईएमएफ के अनुसार उपभोक्ता मूल्य महंगाई वित्त वर्ष 2026 में चार प्रतिशत के लक्ष्य के करीब आ जाएगी।
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विकसित भारत बनाने के लिए बड़े लक्ष्य जरूरी
रिपोर्ट में वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाए जाने को लेकर सुझाव भी दिया गया है। भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिए कड़े आर्थिक फैसले लेने होंगे। विनिर्माण क्षेत्र पर चीन के कब्जे और बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए भारत को आंतरिक साधनों और विकास के घरेलू प्रोत्साहन पर नए सिरे से ध्यान देना होगा। ऐसी व्यवस्था को तैयार करना होगा जो कानून सम्मत आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में मदद मिले और व्यवसाय करने वाले को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त हो सके। सर्वेक्षण में जोर दिया गया कि नीतिगत सुधार और आर्थिक नीति यानी ईंज ऑफ डूइंग बिजनेस 2.0 के तहत प्रणालीगत सुधार किए जाएं, जिससे देश में एमएसएमई जैसे छोटे उद्योग को व्यावहारिक रुप से संचालित होने के लिए प्रोत्साहन मिले।
रिपोर्ट की अहम बातें
- भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए लगभग एक या दो दशक तक औसतन आठ प्रतिशत की दर से वृद्धि करनी होगी।
- अपेक्षित वृद्धि हासिल करने के लिए निवेश को 31 प्रतिशत से बढ़ाकर 35 प्रतिशत करने की जरूरत है।
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 616.7 अरब डॉलर था जो सितंबर 2024 तक बढ़कर 704.9 अरब डॉलर हुआ। तीन जनवरी से 634.6 अरब डॉलर पर स्थिर
- वर्ष 2017-18 में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए बेरोजगारी दर छह प्रतिशत थी जो 2023-24 में घटकर 3.2 प्रतिशत हुई।
- 53 फीसदी से अधिक स्नातक और 36 फीसदी स्नातकोत्तर अपनी शैक्षिक योग्यता से कम पद पर काम कर रहे हैं।
- एनपीए घटकर 12 वर्षों में सबसे कम सकल ऋण और एडवांस का 2.6 प्रतिशत हुआ।
- पेंशन योजनाओं के अंशधारकों की संख्या 7.83 करोड़ हुई
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