महाराष्ट्र में भी हिंदी पर सियासी रार छिड़ी
उद्धव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य नहीं बनने देंगे। उन्होंने इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि मराठी पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। सुप्रिया सुले और कांग्रेस के नेताओं ने भी...

- उद्धव ठाकरे ने कहा, महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाने देंगे - सुप्रिया सुले बोली, मराठी भाषा का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा
मुंबई/पुणे, एजेंसियां। दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में हिंदी को लेकर पिछले दिनों हुए विवाद अभी पूरी तरह थमा भी नहीं कि अब महाराष्ट्र में हिंदी पर सियासी रार छिड़ गई है। महाराष्ट्र सरकार के कक्षा एक से पांच तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। विपक्षी दल इसे मराठी अस्मिता और संघीय ढांचे के मुद्दे के रूप में भुना रहे हैं। इस बीच सरकार ने शनिवार को स्पष्ट किया कि मराठी पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इसे सभी को सीखना चाहिए, लेकिन अतिरिक्त भाषाएं सीखना व्यक्तिगत पसंद है।
शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने शनिवार को कहा कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाने देगी। मुंबई में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ठाकरे ने कहा कि उनकी पार्टी को हिंदी भाषा से कोई परहेज नहीं है, लेकिन उन्होंने सवाल उठाया कि इसे क्यों थोपा जा रहा है? ठाकरे ने दावा किया कि सत्तारूढ़ भाजपा का मिशन लोगों को एकजुट नहीं होने देना और उन्हें लगातार दबाव में रखना है ताकि वे इन चिंताओं में उलझे रहें। उन्होंने कहा, हम महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य नहीं बनने देंगे।
ठाकरे की यह टिप्पणी महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्यभर के मराठी और अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में कक्षा एक से पांचवीं तक के विद्यार्थियों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के निर्णय पर विपक्ष के विरोध के बीच आई है, जो दो भाषा अध्ययन की प्रथा से हटकर है। उन्होंने कहा, आप हमसे स्नेह से कहेंगे तो हम सब कुछ करेंगे, लेकिन अगर आप कुछ थोपेंगे तो हम उसका विरोध करेंगे। हिंदी (सीखने) के लिए यह दबाव क्यों? पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने ही राज्य में मराठी सीखना अनिवार्य करने का फैसला किया था। ठाकरे ने कहा, अगर आप राज्य में रहना चाहते हैं तो आपको जय महाराष्ट्र कहना होगा। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महायुति पर निशाना साधते हुए उन्होंने सवाल उठाया कि क्या राज्य सरकार उन लोगों के लिए काम कर रही है जो महाराष्ट्र और मराठी को खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने उपमुख्यमंत्री और शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे पर भी निशाना साधते हुए कहा कि उनकी पार्टी मराठी के साथ अन्याय करने वालों के अधीन कैसे हो सकती है और फिर बाल ठाकरे की विरासत के उत्तराधिकारी होने का दावा कैसे कर सकती है?
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की नेता सुप्रिया सुले ने शनिवार को कहा कि महाराष्ट्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के जबरन क्रियान्वयन में मराठी को नजरअंदाज करना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पुणे में पत्रकारों से बातचीत में बारामती की सांसद ने कहा, महाराष्ट्र में सीबीएसई बोर्ड को अनिवार्य बनाने के शिक्षा मंत्री के बयान का विरोध करने वालों में मैं सबसे पहले थी। मौजूदा राज्य बोर्ड को सीबीएसई से बदलने की क्या जरूरत है? भाषा के मुद्दे पर चर्चा करने से पहले हमें राज्य में बुनियादी शिक्षा ढांचे के बारे में बात करनी चाहिए। सुले ने कहा, अगर महाराष्ट्र में एनईपी के लागू होने से मराठी भाषा को कोई नुकसान होता है, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मराठी को प्राथमिकता दी जाएगी। उन्होंने कहा कि अगर अन्य भाषाएं शुरू की जा रही हैं, तो माता-पिता को भाषा चुनने का विकल्प होना चाहिए। उन्होंने कहा, किसी भी चीज को अनिवार्य बनाना उचित नहीं है। मराठी राज्य के निवासियों की मातृभाषा है और इसे पहली भाषा ही रहना चाहिए।
कांग्रेस ने कहा, महाराष्ट्र में हिंदी को वैकल्पिक रखें
कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा कि महाराष्ट्र में हिंदी को जबरदस्ती थोपा जाए तो ये गलत होगा। यहां मराठी भाषा का एक अलग महत्व है, इसका अलग मान और स्वाभिमान भी है। पार्टी नेता विजय वडेट्टीवार ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि मराठी भाषा का अपना महत्व है, हिंदी को थोपा नहीं जाना चाहिए।
कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा, संविधान में लिखा है कि स्टेट को अपनी मातृभाषा को आगे रखने का अधिकार है। द्वितीय वैकल्पिक भाषा जो व्यवहार में होती है, देश-प्रदेश के लिए होती है वो अंग्रेजी होती है। मेरा कहना है कि हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लादने की आवश्यकता नहीं है। ये लादकर आप मराठी का महत्व कम नहीं करो, ये वैकल्पिक रखो।
महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर मचे सियासी संग्राम के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शनिवार को कहा कि मराठी भाषा पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। इसे सभी को सीखना चाहिए, लेकिन अतिरिक्त भाषा सीखना व्यक्तिगत पसंद है। मीडिया से बात करते हुए फडणवीस ने हिंदी के विरोध और अंग्रेजी के प्रति बढ़ती पसंद पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए चेतावनी दी कि मराठी को किसी भी तरह की चुनौती बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
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संतों ने कहा, हिंदी भाषा पर राजनीति न करें उद्धव और राज ठाकरे
प्रयागराज। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के ‘हिंदू और हिंदी वाले बयान पर संतों ने फटकार लगाते हुए उन्हें विवाद से बचने की नसीहत दी है।
शृंगवेरपुर पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी नारायणाचार्य शांडिल्य महाराज ने राज ठाकरे के साथ ही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को हिंदी भाषा को लेकर राजनीति न करने की कड़ी चेतावनी देते हुए आगाह किया है कि अगर ठाकरे बंधु भारत माता और हिंदू व हिंदी के खिलाफ जहर उगलने का प्रयास करेंगे तो उन्हें भी महाराष्ट्र से बाहर जाना पड़ सकता है। उन्होंने कहा है कि ये वही लोग हैं जो मुगलों का साथ दिया करते थे। आज छत्रपति शिवाजी महाराज होते तो वह भी उनके इस बयान से शर्मसार हो जाते। उन्होंने कहा कि हिंदी से हिंदू है और हिंदू से हिंदी है। शांडिल्य महाराज ने राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को हिंदी भाषा को लेकर राजनीति न करने की कड़ी चेतावनी दी है। हिंदी भाषा को लेकर किसी भी प्रकार के विवाद से बचने की सलाह दी है।
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