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इंफो : चीन के साथ अब भी अनसुलझे हैं कई विवाद

रूस के कजान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पांच साल बाद औपचारिक बैठक हुई। पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध खत्म करने पर सहमति बनी है, जिससे...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 23 Oct 2024 05:19 PM
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रूस के कजान शहर में ब्रिक्स सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई। दोनों देशों के नेताओं की औपचारिक बैठक पांच साल बाद हुई। यह बैठक तब हुई, जब दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी सैन्य गतिरोध खत्म करने पर सहमति बन गई है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने की उम्मीद भी बढ़ गई है। हालांकि ऐसे कई मुद्दे अब भी हैं, जिनका समाधान होना अब भी बाकी है। विवादित मुद्दे

1. अक्साई चिन: भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। ये सीमा लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। ये सरहद तीन क्षेत्रों में बंटी हुई है- पश्चिम क्षेत्र यानी लद्दाख, मध्य क्षेत्र यानी हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड और पूर्वी क्षेत्र यानी सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश। दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है क्योंकि कई इलाकों के बारे में दोनों के बीच मतभेद हैं। भारत पश्चिमी क्षेत्र में अक्साई चिन पर अपना दावा करता है, लेकिन ये इलाका फिलहाल चीन के नियंत्रण में है। भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था। यह एक ठंडा रेगिस्तानी समतल क्षेत्र है जहां बारिश या हिमपात नहीं होता। अधिकांश क्षेत्र निर्जन है और यहां खारी झीलें हैं।

2. अरुणाचल प्रदेश: पूर्वी क्षेत्र में चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है। चीन का मानना है कि ये दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को भी चीन नहीं मानता। 1914 में शिमला में हुए एक समझौते के तहत ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची गई थी, जिसे मैकमोहन लाइन कहा गया। इसमें अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया। चीन का कहना है कि जब ये समझौता किया गया था, तब वो वहां मौजूद नहीं था।

3. डोकलाम (भूटान): वैसे तो डोकलाम भूटान और चीन का विवाद है, लेकिन ये सिक्किम सीमा के पास पड़ता है। ये एक तरह से ट्राई-जंक्शन है, जहां से चीन, भूटान और भारत नजदीक हैं। भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं। भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है। 2017 में करीब ढाई महीने तक डोकलाम पर भारत-चीन के बीच तनाव था।

4. आतंकवाद : भारत और चीन के बीच आतंकवाद और सुरक्षा परिषद में सुधार जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अलग-अलग रुख भी तनाव का कारण बनते हैं। चीन ने संयुक्त राष्ट्र में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी साजिद मीर, मौलाना मसूद अजहर के भाई अबुल रऊफ असगर उर्फ अब्दुल रऊफ अजहर और लश्कर-ए-तैयबा के चीफ हाफिज सईद के बेटे तालहा सईद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए भारत और अमेरिका के प्रस्ताव पर वीटो कर चुका है।

5. बुनियादी ढांचा: सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा।

6. समुद्री सुरक्षा : पिछले एक दशक में हिंद महासागर में भारत-चीन भू-राजनीतिक तनाव का प्रभाव भारत की बढ़ती चिंताओं में से एक बन गया है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना की बढ़ती उपस्थिति और गतिविधियां भारत के लिए चिंता और चर्चा का विषय बनी हुई हैं।

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मोदी ने 20 बार जिनिपंग से की मुलाकात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक नौ बार चीन का दौरा कर चुके हैं। चार बार गुजरात के सीएम रहते हुए और पांच बार प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी ने चीन का दौरा किया हैं। पिछले 10 साल में मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 20 बार मुलाकात हो चुकी हैं। इनमें द्विपक्षीय मुलाकातों के अलावा दूसरे देशों में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के दौरान अनौपचारिक मुलाकातें भी शामिल हैं।

नंबर गेम

2014 जुलाई में ब्राजील में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री रहते पहली बार मुलाकात

2020 तक एलएसी पर विवाद शुरू होने से पहले कुल 18 मुलाकातें

बॉक्स : पीएम मोदी ने अहमदाबाद में किया था जिनपिंग का स्वागत

- 2014 के सितंबर महीने में शी जिनपिंग भारत के दौरे पर आए थे ये पहला मौका था, जब देश के प्रधानमंत्री ने किसी राष्ट्राध्यक्ष का दिल्ली से बाहर दूसरे राज्य में स्वागत किया था।

- 2015 के मई महीने में प्रधानमंत्री मोदी, चीन की अपनी सबसे पहली यात्रा पर गए थे। वे विश्व के पहले नेता थे जिनका स्वागत शी जिनपिंग ने अपने शहर जियान में किया था।

इन मौकों पर भी मिले

- नवंबर 2014 (ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन) : जी-20 सम्मेलन

- जून 2016 (उज्बेकिस्तान के ताशकंद) : शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाइजेशन (एससीओ) के इतर मुलाकात

- 2016 (चीन के हांगझाऊ) : जी-20 सम्मेलन के इतर बैठक

- अक्टूबर 2016 (गोवा) : ब्रिक्स सम्मेलन

- जून 2017 : (कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना) : तब भारत को एससीओ का सदस्य बनाया गया था।

- जुलाई 2017 (जर्मनी के हैम्बर्ग) : जी-20 सम्मेलन

- सितंबर 2017 (चीन के जियामेन) : ब्रिक्स सम्मेलन

- अप्रैल 2018 (चीन के वुहान) : शिखर सम्मेलन

- 9 जून 2018 (चीन) : एससीओ शिखर सम्मेलन

- नवंबर 2018 में (अर्जेंटीना के ब्यूनसआयर्स) : जी20 शिखर सम्मेलन

- मई 2019 (किर्गिजस्तान के बिश्केक) : एससीओ शिखर सम्मेलन

- अक्टूबर 2019 (महाबलीपुरम) : जिनपिंग का भारत दौरा

- नवंबर 2019 (ब्राजील) : ब्रिक्स शिखर सम्मेलन

इन मौकों पर बनाई दूरी

- दक्षिण अफ्रीका में 2023 में ब्रिक्स सम्मेलन में दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया था, लेकिन द्विपक्षीय मुलाकात नहीं हुई

- 2022 में बाली में जी20 की बैठक के दौरान भी औपचारिक रूप से कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई थी

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व्यापारिक मुद्दों पर भी विवाद

भारत और चीन के बीच सिर्फ सीमा विवाद को लेकर ही तनाव की स्थिति नहीं रहती बल्कि कई बार संसाधनों व्यापार के तरीकों और व्यापार को किस तरह से नुकसान पहुंचाया जा रहा है, इन सब मुद्दों तक पहुंच जाती है। व्यापार से जुड़े ऐसे मुद्दों पर एक नजर डालते हैं...

1. एंटी डंपिंग : दोनों देश घरेलू उद्योगों को नुकसान से बचाने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ एंटी-डंपिंग जांच भी शुरू करते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि लागत से कम आयात में वृद्धि के कारण उनके घरेलू उद्योगों को नुकसान तो नहीं पहुंचा है। हाल में हाइड्रोलिक रॉक ब्रेकर सहित तीन चीनी उत्पादों पर डंपिंग रोधी शुल्क लगा दिया था। वहीं, चीन ने भारत से आयात किए जाने वाले हैलोजेंटेड बुटाइल रबर के आयात को लेकर डंपिंग रोधी जांच शुरू करने का ऐलान किया था।

2. निवेश प्रतिबंध : भारत ने सुरक्षा चिंताओं के चलते चीन के कुछ निवेशों पर भी प्रतिबंध लगाए हैं, जो व्यापारिक संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक भारत में रिपोर्ट किए गए कुल एफडीआई इक्विटी इनफ्लो में केवल 0.37 प्रतिशत हिस्सेदारी (2.5 अरब डॉलर) के साथ चीन 22वें स्थान पर है। वर्ष 2020 के बाद से यह तेजी से घटा है।

3. गुणवत्ता मानक : कई भारतीय उद्योगों का आरोप है कि चीनी उत्पादों में गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया जाता। इससे भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा में कठिनाई होती है। वर्ष 2018 में वाणिज्य पर एक स्थायी समिति ने रिपोर्ट पेश की थी। इसमें कहा गया था कि खराब गुणवत्ता वाले सस्ते चीनी उत्पाद भारतीय उत्पादों पर भारी पड़ते हैं। इसी तरह, अधिकांश चीनी पटाखों में पोटेशियम क्लोरेट होता है, जो भारत में प्रतिबंधित है।

बड़ा व्यापारिक साझेदार

भारत-चीन के बीच सालाना कारोबार 118 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का है। आयात की बात करें तो अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच 35.86 बिलियन डॉलर का सामान चीन से भारत में आया। निर्यात के लिहाज से बात करें तो चीन पांचवें पायदान पर है। भारत चीन को सबसे अधिक अयस्कों का लावा और राख, जैविक रसायन, खनिज ईंधन, तेल, मशीनरी, परमाणु रिएक्टर बॉयलर, गंधक, मिट्टी, पत्थर, प्लास्टर, चूना, सीमेंट, पशु, वनस्पति वसा, कॉफ़ी, चाय, मसाले, कॉल, आयरन और स्टील निर्यात करता है।

इंफो : भारत से चीन से

वर्ष निर्यात आयात

2019 17.97 74.92

2020 20.87 66.78

2021 28.03 97.59

2022 17.49 118.77

(स्रोत : चीनी कस्टम विभाग)

(राशि अरब डॉलर में)

संबंध बेहतर होने पर ये लाभ होंगे

1. भारत में निवेश के लिए चीन की कंपनियां आगे आ सकती है, जिससे आर्थिक विकास के साथ रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

2. निवेश को आकर्षित करने के लिए भारत सिंगापुर की तर्ज पर चीन में भी निवेश प्रोत्साहन के लिए दफ्तर खोल सकता है।

3. कॉटन, स्टील, ऑर्गेनिक कैमिकल, इंजीनियरिंग गुड्स, कृषि उत्पाद और फार्मास्यूटिकल समेत अन्य उत्पादों का निर्यात बढ़ा सकता है।

4. सीमा विवाद सुलझने से भारत द्वारा सीमा पर होने वाले भारी सैन्य खर्च को कम करने में मदद मिलेगी।

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