व्यक्ति को पूरी तरह से किस्मत पर निर्भर नहीं रहना चाहिए : विपुल जोशी
यह लेख बताता है कि कैसे एक ही अस्पताल में पैदा हुए बच्चों की किस्मत अलग हो सकती है। ज्योतिष के अनुसार देश, काल और परिस्थितियां जीवन को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के रूप में तीन कुत्तों की कहानी दी गई...
ज्योतिष में अस्पताल वाला प्रश्न आपने कई बार सुना होगा कि एक ही अस्पताल में दो बच्चे पैदा हुए, उनकी किस्मत क्यों अलग-अलग होती है, जबकि ग्रह तो उनके एक ही हैं? ये बेहद ही फिजूल और कुतर्की प्रश्न है, जिसमें कभी किसी ज्योतिषि को अपना समय खराब नहीं करना चाहिए। फिर भी अगर एक बार इसका जवाब देना हो तो मेरे अनुसार इसका जवाब यह है की पहले तो एक अस्पताल में इतने लेबर रूम/डिलीवरी सूट नहीं होते है की एक साथ कई डिलीवरी हों। अगर किसी बड़े हॉस्पिटल में ऐसा हो भी तो डिलीवरी के तुरंत बाद शिशु की देश, काल, परिस्थिति बदल जाएगी। (इसे इस खबर से समझ सकते हैं की इन्फोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति ने पिछले साल 10 नवंबर को बेंगलुरु में जन्मे अपने पोते एकाग्र रोहन मूर्ति को उपहार स्वरूप इन्फोसिस के 15 लाख शेयर दिए थे, जिनकी वैल्यू 240 करोड़ रुपये थी, जबकि पिछले साल 10 नवंबर को सिर्फ बेंगलुरु में ही काफी बच्चों का जन्म हुआ होगा, जबकि सभी करोड़पति नहीं बने होंगे।) यानी काफी हद तक संभव है कि एक महिला अपने शिशु को लेकर रिक्शे से घर जाए, एक महिला शिशु को लेकर अस्पताल की एंबुलेंस से घर जाए और एक महिला शिशु को लेकर अपनी एयरकंडीशन वाली गाड़ी से घर जाए, ये तो सभी मानेंगे की तीनों स्थितियों में तीनों शिशुओं को अलग-अलग आबोहवा मिलेगी। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से यह भी संभव है अगर उनकी कुंडली में चंद्रमा या बुध पीड़ित होगा तो उनके स्वास्थ्य पर सिर्फ इस छोटी घटना की वजह से भी प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है।
इसी घटनाक्रम को अगर आगे ले चलें और हम यह सोचें की तीनों ही बच्चों की किस्मत में 13 साल की उम्र में बर्गर खाना लिखा है तो ना सिर्फ उनका बर्गर अलग-अलग जगह का होगा, बल्कि उनके बर्गर में उपयोग होने वाला तेल भी अलग-अलग होगा। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बार-बार खराब तेल खाने की वजह से एक का स्वास्थ्य जल्दी खराब हो जाए और अच्छा तेल खाने वाले का स्वास्थ्य खराब तुलनात्मक रूप से कम खराब हो। यह करीब-करीब ऐसा ही है कि अगर तीन व्यक्ति शोरूम से एक ही मॉडल की गाड़ी खरीदें और उसके बाद उसे अलग-अलग तरीके से रखें तो दो या तीन साल बाद जब वह सर्विसिंग के लिए दोबारा मिलेंगे तो उन तीनों की गाड़ियों में काफी अंतर होगा।
अब मैं आपको इसी से जुड़ी एक सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूं। कहानी कुछ यूं है कि मुक्तेश्वर में रैक्सी के तीन बच्चे हुए सिंबा, टाइग्रेस और कालू। सिंबा रैक्सी के साथ ही रह गया, टाइग्रेस मेरे पास आ हल्द्वानी आ गईं और कालू को मेरी रामनगर में रहने वाली एक दीदी ने रख लिया। कुछ समय पहले मेरी उन व्यक्ति से बात हुई जिन्होंने मुझे टाइग्रेस और कालू लाकर दी थीं। मैंने उनसे पूछा की सिंबा के क्या हाल-चाल है। उन्होंने बताया कि सिंबा और उसकी मां को काफी पहले बाघ लेकर चला गया। कालू की बात करें तो उसके एक बार छह बच्चे हुए और दूसरी बार सात बच्चे हुए। हालांकि, कुछ दिन पहले उसे भी बाघ लेकर चला गया।
तीनों भाई-बहनों में टाइग्रेस अभी सुरक्षित है और हल्द्वानी जैसे क्षेत्र में बाघ के आने की संभावना भी काफी कम है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी तरह की परिस्थितियां बन सकती हैं।
वैसे तो दोनों बाघ वाली घटनाओं में काफी समय का अंतर है। यानी उनकी किस्मत को देश, काल, परिस्थिति ने काफी प्रभावित किया, लेकिन फिर भी अगर बाघ वाली समानता को हटा दिया जाए तो महत्वपूर्ण बात यह भी है कि तीनों की तस्वीर में अलग-अलग जलवायु में रहने के कारण आए अंतर को भी बड़ी आसानी से देखा जा सकता है। अगर उनके शरीर में अंतर है तो इससे एक बात और साफ हो जाती है कि उनके खानपान में भी अंतर रहा होगा। इसमें एक और महत्त्वपूर्ण बात ये है की कालू के एक बार छह दूसरी बार सात यानी कुल मिलाकर 13 बच्चे भी हुए, जबकि टाइग्रेस की कभी मीटिंग ही नहीं करवाई गई।
टाइग्रेस का वीडियो देखने वाले लोगों को यह भी पता होगा कि टाइग्रेस कितनी कमांड फॉलो करती है और कितना कहना मानती है। मैंने देखा है कई लैब्राडोर और गोल्डन रिट्रीवर, जिन्हें ट्रेनिंग नहीं दी गई वो टाइग्रेस जितने अनुशासित नहीं, जबकि बेहतर माहौल मिलता तो उनमें संभावनाएं काफी ज्यादा थी। यानी इस बात से भी इनका नहीं किया जा सकता है की बेहतर संभावना होने के बावजूद अगर हमें वह चीजें ना मिलें यह हम वह कर्म ना करें, जिनसे हम निखर सकते हैं तो हममें निखार नहीं आएगा। दूसरी तरफ अगर हम अतिरिक्त प्रयास करें और चीजों का सदुपयोग करें तो हम कम प्रतिभाशाली होने के बावजूद भी एक प्रतिभाशाली व्यक्ति से बेहतर हो सकते हैं।
इस लेख को लिखने के मेरे दो उद्देश्य थे। पहला, यह कि मैं बताना चाहता था देश, काल, परिस्थितियों से जीवन में कैसे बड़े-बड़े बदलाव आते हैं। दूसरा, यह कि व्यक्ति को पूरी तरह से किस्मत पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि जैसा की ऊपर लिखा है अगर हम अतिरिक्त प्रयास करें और चीजों का सदुपयोग करें तो हम कम प्रतिभाशाली होने के बावजूद भी एक प्रतिभाशाली व्यक्ति से बेहतर हो सकते हैं।
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