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पत्नी कमाती है फिर निभानी होगी जिम्मेदारी, देना होगा खर्च; HC ने क्यों खारिज की पिता की दलील

दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्चे की आर्थिक मदद को लेकर अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि एक व्यक्ति को अपने बच्चे की आर्थिक मदद करने से सिर्फ इसलिए छूट नहीं दी जा सकती क्योंकि उसकी पत्नी बच्चे की देखभाल करने में सक्षम है।

Sneha Baluni नई दिल्ली। हिन्दुस्तान टाइम्सThu, 2 Jan 2025 10:00 AM
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दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्चे की आर्थिक मदद को लेकर अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि एक व्यक्ति को अपने बच्चे की आर्थिक मदद करने से सिर्फ इसलिए छूट नहीं दी जा सकती क्योंकि उसकी पत्नी बच्चे की देखभाल करने में सक्षम है। सिटी कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए, हाईकोर्ट ने पिता को निर्देश दिया कि वह अपने बेटे को तब तक भरण-पोषण दे जब तक कि वह ग्रेजुएट न हो जाए या कमाई न करने लगे। साथ ही कहा कि भरण-पोषण एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करता है, न कि केवल जीवित रहना।

पीठ ने क्या कहा

जस्टिस अमित महाजन की पीठ ने 17 दिसंबर को दिए गए अपने फैसले में कहा, 'पति का अपने बच्चे के लिए भरण-पोषण करने का कर्तव्य किसी भी कथित शिकायत के बावजूद बना रहता है। यह बात सही है कि पत्नी द्वारा बच्चे के भरण-पोषण करने की क्षमता मात्र याचिकाकर्ता/पति, जो एक सक्षम व्यक्ति है, को अपने बच्चे को आर्थिक रूप से मदद करने में छूट देने के लिए काफी नहीं है। भरण-पोषण का मकसद आश्रित जीवनसाथी या बच्चे की वित्तीय जीविका सुनिश्चित करना है। भरण-पोषण केवल जीवित रहने के लिए नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य विवाह के दौरान जीवन जीने के स्टैंडर्ड के अनुरूप एक सम्मानजनक अस्तित्व सुनिश्चित करना है।'

निचली अदालत ने क्या दिया था आदेश

कोर्ट ने यह फैसला एक व्यक्ति की याचिका पर दिया। जिसमें उसने शहर की एक अदालत के अक्टूबर 2021 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उसे बच्चे के लिए 25,000 रुपए मासिक गुजारा भत्ता तब तक देने का आदेश दिया था जबतक की वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी नहीं कर लेता या कमाना शुरू नहीं करता। निचली अदालत ने उसे पत्नी को मुआवजे के तौर पर 10,00,000 का भुगतान करने और उसके भविष्य के निवास के अधिकार को सुरक्षित करने का भी निर्देश दिया था।

खारिज की दलीलें

पति की वकील श्वेता बारी ने तर्क दिया कि फैसला पहली नजर में ही गलत और कठोर है। इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया गया कि यह घरेलू हिंसा का केस नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि वित्तीय बोझ असहनीय है और दावा किया कि बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी में पत्नी की कमाई की क्षमता का भी ध्यान रखना चाहिए। बारी ने आगे कहा कि वयस्कता की आयु से ज्यादा समय तक बच्चे को भरण-पोषण देना कानून के विपरीत है। हाईकोर्ट ने पति की दलीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे का भरण-पोषण करने की पिता की जिम्मेदारी सर्वोपरि है, जिससे बचा नहीं जा सकता।

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