धूप से 8 दिन बाद हल्की हुई धूल-धुएं की परत, दिल्ली के सात इलाकों में 400 पार AQI; घर से काम करेंगे टीचर
दिल्ली में गुरुवार को धूप निकलने के चलते आसमान में जमी धूल-धुएं की परत कमजोर हो गई है। इससे वायु गुणवत्ता सूचकांक में आठ दिन बाद सुधरा आया। हालांकि, हवा अब भी बेहद खराब श्रेणी में है, लेकिन पिछले दिनों की तुलना में लोगों ने खासी राहत महसूस की।
दिल्ली में गुरुवार को धूप निकलने के चलते आसमान में जमी धूल-धुएं की परत कमजोर हो गई है। इससे वायु गुणवत्ता सूचकांक में आठ दिन बाद सुधरा आया। हालांकि, हवा अब भी बेहद खराब श्रेणी में है, लेकिन पिछले दिनों की तुलना में लोगों ने खासी राहत महसूस की। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, गुरुवार को दिल्ली का औसत एक्यूआई 371 अंक पर रहा। बुधवार को यह 419 अंक था। चौबीस घंटे में इसमें 48 अंकों का सुधार हुआ है।
18 नवंवर को हवा सबसे ज्यादा खराब स्तर पर पहुंच गई थी। इस दिन का सूचकांक 494 अंक पर था, जो बीते पांच वर्षों में सबसे ज्यादा रहा। वहीं, पिछले आठ दिनों से प्रदूषण की गहरी धुंध के चलते लोगों को सांस लेने में परेशानी, आंख में जलन, गले और नाक में खराश, खांसी जैसी समस्याएं हो रही थीं। इस स्थिति से दिल्लीवालों को गुरुवार दिन में थोड़ी राहत मिली। हालांकि, अभी भी राजधानी के सात इलाकों का सूचकांक 400 के पार है। वहीं, मानकों से लगभग तीन गुना प्रदूषक कण अभी भी हवा में मौजूद हैं। प्रदूषण के स्तर में भले ही थोड़ी कमी आई है, लेकिन हवा पूरी तरह से साफ होने की अभी संभावना नहीं है। वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणाली के मुताबिक, अगले छह दिनों के बीच हवा की गति का औसत स्तर 10 किलोमीटर प्रति घंटे से कम रहेगी।
शिक्षक घर से काम करेंगे
प्रदूषण के चलते सरकारी दफ्तरों में 50 फीसदी क्षमता के साथ काम करने संबंधित आदेश को लागू करने को लेकर शिक्षा निदेशालय ने सर्कुलर जारी किया। समय अवधि में भी बदलाव किया है। जामा मस्जिद स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय नंबर-1 (उर्दू माध्यम) के प्रधानाचार्य डॉ. गय्यूर अहमद ने कहा कि छात्रों को पढ़ाने की समय-सारणी पहले की तरह जारी रहेगी। आधे शिक्षक घर से और बाकि स्कूल से काम करेंगे।
पिछले साल की तुलना में 60 फीसदी कम जली पराली
पिछले साल के मुकाबले इस बार पराली जलाने के मामले करीब 60 फीसदी कम रहे। पंजाब और हरियाणा में गिरावट आई है। हालांकि, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में पहले की तुलना में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। खेत को गेंहू की फसल के लिए जल्दी तैयार करने के चलते धान की फसल के बचे अवशेष को जलाने की प्रवृत्ति रही है। हजारों स्थानों पर पराली जलाने के चलते उत्तर भारत में लोगों को भारी प्रदूषण का सामना करना पड़ता है।