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विधानसभा में पेश हों 12 कैग रिपोर्ट; BJP नेताओं की याचिका पर HC ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब

दिल्ली भाजपा के नेताओं ने विधानसभा में 12 कैग रिपोर्ट को पेश करने का निर्देश देने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली सरकार का जवाब मांगा है। भाजपा नेताओं की मांग है कि रिपोर्ट एलजी को भेजी जाएं।

Sneha Baluni नई दिल्ली। एएनआईTue, 29 Oct 2024 01:26 PM
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दिल्ली भाजपा के नेताओं ने विधानसभा में 12 कैग रिपोर्ट को पेश करने का निर्देश देने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली सरकार का जवाब मांगा है। भाजपा नेताओं की मांग है कि वित्त, प्रदूषण, प्रशासन और शराब से संबंधित 12 कैग रिपोर्ट उपराज्यपाल वीके सक्सेना को भेजी जाएं, ताकि उन्हें विधानसभा के समक्ष पेश किया जा सके।

याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव नरूला ने दिल्ली सरकार, विधानसभा अध्यक्ष कार्यालय, उपराज्यपाल (एलजी), भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) और दिल्ली के महालेखाकार (लेखा परीक्षा) को नोटिस जारी किया। अब मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होगी। इस याचिका को दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता और दिल्ली भाजपा विधायकों मोहन सिंह बिष्ट, ओम प्रकाश शर्मा, अजय कुमार महावर, अभय वर्मा, अनिल कुमार बाजपेयी और जितेंद्र महाजन ने दाखिल की है।

सुनवाई के दौरान विधायकों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कुछ 'अहम कारणों' के चलते सुनवाई की पहले की तारीख मांगी। हालांकि, प्रतिवादियों में से एक की ओर से पेश हुए वकील ने दावा किया कि याचिका राजनीतिक मकसद से दायर की गई है। दूसरी ओर, याचिका में दावा किया गया है कि 2017-2018 से 2021-2022 तक की कैग रिपोर्ट दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के पास लंबित हैं, जिनके पास वित्त विभाग भी है।

याचिका में आगे आरोप लगाया गया है कि एलजी के बार-बार अनुरोध के बावजूद, ये रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने के लिए उनके पास नहीं भेजी गईं। वकील नीरज और सत्य रंजन स्वैन द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और स्पीकर से पहले भी संपर्क किया था, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

याचिका में कहा गया है, 'महत्वपूर्ण जानकारी को जानबूझकर दबाना न केवल लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन है बल्कि सरकारी कार्रवाई और व्यय की उचित जांच को भी रोकता है जिससे सरकार के वित्तीय स्वामित्व, पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठते हैं।'

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