बीकानेर महाराज की बेटी को दिल्ली हाईकोर्ट से झटका, खारिज हुई याचिका; क्या की थी डिमांड
कोर्ट ने अक्टूबर 1951 में केंद्र द्वारा महाराजा को जारी किए गए एक पत्र का संज्ञान लेते हुए, जिसमें केंद्र ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि बीकानेर हाउस राजस्थान सरकार का है, दिवंगत महाराजा को अनुग्रह राशि के आधार पर एक तिहाई किराया देने पर सहमति जताई थी।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने बीकानेर के अंतिम महाराजा डॉ. करणी सिंह की बेटी की एक याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में लुटियंस दिल्ली में प्रतिष्ठित बीकानेर हाउस पर कब्जे के लिए केंद्र सरकार से 23 सालों से अधिक समय से बकाए किराए का दावा किया गया था। उत्तराधिकारी राज्यश्री कुमारी बीकानेर ने अक्टूबर 1991 से दिसंबर 2014 तक का बकाया किराया मांगा था।
कोर्ट ने अक्टूबर 1951 में केंद्र द्वारा महाराजा को जारी किए गए एक पत्र का संज्ञान लेते हुए, जिसमें केंद्र ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि बीकानेर हाउस राजस्थान सरकार का है, दिवंगत महाराजा को अनुग्रह राशि के आधार पर एक तिहाई किराया देने पर सहमति जताई थी। हालांकि, ऐसे भुगतानों की स्वैच्छिक प्रकृति (वॉलिएंटरी नेचर) को देखते हुए, जस्टिस सचिन दत्ता ने माना कि महाराजा के उत्तराधिकारी कथित बकाया राशि पर कानूनी अधिकार दिखाने में विफल रहे और वे अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते।
जस्टिस दत्ता ने कहा कि वारिस संपत्ति पर कानूनी अधिकार साबित करने में विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीकानेर हाउस राजस्थान सरकार का है और इस संपत्ति पर उसका पूरा और पूर्ण अधिकार है। जज ने कहा, 'याचिकाकर्ता संबंधित संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार दिखाने में विफल रहा है, न ही उसने प्रतिवादी संख्या 1 (केंद्र) से किसी भी कथित 'किराए के बकाया' के संबंध में कोई कानूनी अधिकार साबित किया है। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि विचाराधीन संपत्ति एक राज्य (राजस्थान) संपत्ति है। यह कानून में अच्छी तरह से स्थापित है कि अनुग्रह भुगतान विवेकाधीन है और यह कानूनी अधिकार के मामले में लागू नहीं होता। इस तरह की पेमेंट भुगतान करने वाले पक्ष द्वारा स्वेच्छा से किए जाते हैं और उन्हें अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता।'
जस्टिस दत्ता ने कहा, 'प्रतिवादी संख्या 1 ने दिवंगत डॉ. करणी सिंह को जीवित रहते हुए किराए का एक तिहाई हिस्सा प्रदान किया था, और यह पूरी तरह से अनुग्रह राशि के आधार पर किया गया था। डॉ. करणी सिंह के निधन के बाद, उनके उत्तराधिकारी कानूनी अधिकार के रूप में इन भुगतानों का दावा नहीं कर सकते हैं।' केंद्र और संबंधित शासकों के बीच चर्चा के बाद, बीकानेर हाउस को 'राज्य संपत्ति' के रूप में वर्गीकृत किया गया और मार्च 1950 में केंद्र द्वारा राजस्थान सरकार और डॉ. करणी सिंह से लीज पर लिया गया।