इन मामलों में मुफ्त इलाज से मना नहीं कर सकते अस्पताल, माना जाएगा अपराध; HC का महत्वपूर्ण फैसला
- कोर्ट ने बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, तेजाब हमला और यौन अपराधों की नाबालिग पीड़िताओं के संबंध में फैसला सुनाते कहा कि कानूनी अनिवार्यता के बावजूद उन्हें मुफ्त चिकित्सा उपचार प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि सरकारी और प्राइवेट अस्पताल यौन अपराधों व एसिड अटैक पीड़िता को बगैर इलाज के लौटा नहीं सकते और उन्हें उनका मुफ्त इलाज करना चाहिए।
इस बारे में फैसला देते हुए जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और अमित शर्मा की बेंच ने कहा कि अस्पतालों को आपातकालीन स्थिति में लाए गए मरीजों की पहचान मांगने पर भी जोर नहीं देना चाहिए साथ ही अगर कोई डॉक्टर या अन्य स्टाफ मरीज को जरूरी इलाज देने से मना करता है तो ऐसा करके वह अपने खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करने का रास्ता खोल रहा है, क्योंकि यह दंडनीय अपराध है।
कोर्ट ने यह आदेश बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, तेजाब हमला और यौन अपराधों की नाबालिग पीड़िताओं के संबंध में दिया और कहा कि कानूनी अनिवार्यता के बावजूद उन्हें मुफ्त चिकित्सा उपचार प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
21 दिसंबर को पारित किए अपने आदेश में पीठ ने कहा, 'बताए गए अपराधों में से किसी भी अपराध का कोई पीड़ित जब भी किसी चिकित्सा सुविधा, जांच सुविधा, डाइग्नोस्टिक लैब, नर्सिंग होम, अस्पताल, हेल्थ क्लिनिक आदि से सम्पर्क करता है, चाहे वह निजी हो या सरकारी, ऐसे पीड़ित को वहां से मुफ्त इलाज दिए बिना वापस नहीं भेजा जाएगा।'
हाई कोर्ट ने कहा पीड़ितों को जरूरी इलाज देने से इनकार करना एक आपराधिक अपराध है और सभी डॉक्टरों, प्रशासन, अधिकारियों, नर्सों, पैरामेडिकल कर्मियों आदि को इसके बारे में सूचित किया जाना चाहिए। इस फैसले में हाई कोर्ट ने पीड़िता की तत्काल जांच की अनुमति भी दी, साथ ही जरूरत होने पर उसका एचआईवी जैसी यौन संचारित बीमारियों के लिए इलाज करने को भी कहा।
हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार पीड़िता को दिए जाने वाले इलाज में ना केवल प्राथमिक उपचार शामिल होगा, बल्कि जांच, अस्पताल में एडमिट करना, डाइग्नोसिस टेस्ट्स, लैब टेस्ट्स, सर्जरी, शारीरिक और मानसिक परामर्श, मनोवैज्ञानिक सहायता, पारिवारिक परामर्श, अन्य चीजें भी शामिल होंगी।
साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे पीड़ितों/जीवित बचे लोगों द्वारा सरकारी या निजी अस्पतालों से मुफ्त चिकित्सा उपचार प्राप्त करना राज्य या जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा रेफर किए जाने पर ही निर्भर नहीं होगा, क्योंकि यह CRPC की धारा 357C, BNS की धारा 397 और पॉक्सो नियम, 2020 के नियम 6 (4) के तहत एक वैधानिक अधिकार है।