स्वाति मालीवाल को बड़ा झटका, दिल्ली HC का FIR रद्द करने से इनकार; क्या मामला
दिल्ली हाई कोर्ट से आप सांसद स्वाति मालीवाल को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया है। उनके खिलाफ 14 साल की एक रेप पीड़िता की पहचान का कथित तौर पर खुलासा करने के लिए केस दर्ज है।
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दिल्ली हाई कोर्ट से आप सांसद स्वाति मालीवाल को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया है। उनके खिलाफ 14 साल की एक रेप पीड़िता की पहचान का कथित तौर पर खुलासा करने के लिए केस दर्ज है। दिल्ली पुलिस ने 2016 में मालीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जब वह दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष थीं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने 14 साल की रेप पीड़िता की पहचान का कथित तौर पर खुलासा करने के लिए आप सांसद स्वाति मालीवाल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया है। पीड़िता की चोटों के कारण मौत हो गई थी। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि मालीवाल की वर्तमान याचिका में कार्यवाही बंद करने का कोई आधार नहीं है। मालीवाल ने अपनी याचिका में दावा किया है कि उन्हें अभियोजन से संरक्षण प्राप्त है, क्योंकि उनके कार्य सद्भावनापूर्ण थे।
दिल्ली पुलिस ने 2016 में मालीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जब वह दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष थीं। पुलिस ने कहा था कि किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों का खुला उल्लंघन हुआ है, जो यौन अपराध की नाबालिग पीड़िता की पहचान की रक्षा करता है।
कोर्ट ने 13 फरवरी को कहा कि प्रथम दृष्टया, किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 74 के साथ धारा 86 के तहत अपराध स्पष्ट रूप से सामने आता है। जहां तक याचिकाकर्ता के इस दावे का सवाल है कि उसे सद्भावनापूर्वक किए गए कार्यों के लिए किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 100 के तहत संरक्षण प्राप्त है, तो यह उसका बचाव है। इसे उचित स्तर पर कानून के अनुसार साबित किया जाना आवश्यक है। न्यायाधीश ने कहा, "इसलिए, एफआईआर और कार्यवाही को रद्द करने का कोई आधार नहीं है...।"
मालीवाल ने मामले में अदालत की निगरानी में जांच की मांग करते हुए कहा कि नाबालिग की मौत के बावजूद पुलिस ने एफआईआर में हत्या का आरोप नहीं लगाया। अदालत ने कहा कि यह प्रार्थना निरर्थक है क्योंकि घटना से संबंधित दो मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है और मामले की सुनवाई लंबित है। अदालत ने कहा कि अब उन पर विचार करना ट्रायल कोर्ट का काम है और आगे की जांच एसआईटी को सौंपने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
नाबालिग लड़की ने 23 जुलाई, 2016 को एक अस्पताल में दम तोड़ दिया था, जब उसके पड़ोसी ने उसका रेप किया था और उसके आंतरिक अंगों को नुकसान पहुंचाया था। पुलिस ने कहा कि मालीवाल ने इलाके के पुलिस उपायुक्त को एक नोटिस भेजा था, जिसमें उन्होंने रेप मामले की जांच के बारे में जानकारी मांगी थी।
प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को दिए गए नोटिस में कथित तौर पर पीड़िता का नाम था। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि नोटिस को जानबूझकर विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों पर प्रसारित किया गया और टीवी चैनलों पर दिखाया गया।
पीड़िता के माता-पिता द्वारा उसका नाम उजागर करने की सहमति होने के कारण, भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए (पीड़िता की पहचान उजागर करने पर प्रतिषेध) को हटा दिया गया तथा मामले में किशोर न्याय अधिनियम की धारा 74 को जोड़ दिया गया।