पिता कर रहा था नाबालिग बेटी का यौन शोषण, चुप रहने वाली मां के खिलाफ HC ने बंद किया केस; जानें वजह
- कोर्ट ने कहा, यह एक क्लासिक मामला है, जिसमें पीड़िता खुद ही कानून के पास जाकर सहायता मांगकर आरोपी बन गई, जो कि मामले की पृष्ठभूमि, उसके तथ्यों और उसकी परिस्थितियों से पूरी तरह से भिन्न है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने उस महिला के खिलाफ आपराधिक केस बंद करने का आदेश दिया है, जिसने अपनी 16 साल की बेटी के साथ यौन शोषण करने वाले अपने पति की शिकायत पुलिस से नहीं की थी। अदालत ने पाया कि आरोपी महिला खुद भी पति की सताई हुई है और आरोपी उसके साथ भी जमकर घरेलू हिंसा अन्य अत्याचार करता था।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, 'दुनिया भर में बाल यौन उत्पीड़न की अनिवार्य रिपोर्टिंग से संबंधित कानूनों और इसके साथ जुड़े विभिन्न दंडात्मक परिणामों का अध्ययन करने से पता चलता है कि ऐसे प्रावधान बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं, न कि पीड़ित को दंडित करने के लिए, जो दुर्भाग्य से घरेलू हिंसा वाले घर में कभी-कभी अलग नहीं किया जा सकता।'
जस्टिस अनीश दयाल ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 21 (रिपोर्ट न करने या मामला दर्ज न करने की सजा) के तहत महिला के खिलाफ लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि इस तरह की कार्यवाही से उसके साथ-साथ उसकी बेटी को भी गंभीर नुकसान होगा, जो पूरी तरह से भरण-पोषण के लिए उस पर निर्भर है।
अदालत ने कहा कि हालांकि मामले की शिकायत करने में देरी हुई, लेकिन बाद में महिला ने खुद ही तुरंत अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराई, जब वह अपने पति और उसके परिवार की गंभीर धमकियों को नजरअंदाज करते हुए अपनी बेटी को मनोचिकित्सक के पास ले गई।
जज ने हाल ही में पारित आदेश में कहा, 'यह एक क्लासिक मामला है, जिसमें पीड़िता खुद ही कानून के पास सहायता मांगकर आरोपी बन गई है, जो कि मामले की पृष्ठभूमि, उसके तथ्यों और उसकी परिस्थितियों से पूरी तरह से अलग है। एक मां पर अपने ही पति द्वारा बच्ची के साथ किए गए यौन शोषण की रिपोर्ट करने में देरी के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई है, इस तथ्य के बावजूद कि मां खुद कथित तौर पर अपने वैवाहिक जीवन में गंभीर यौन और अन्य दुर्व्यवहार का शिकार रही है।' इस केस में मां द्वारा अपने खिलाफ लगाए गए आरोप को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी।
अदालत ने महिला को राहत देते हुए कहा, 'इस मामले में, इस तथ्य को ध्यान में न रखना कि मां, जो खुद यौन शोषण की शिकार थी ... अपनी बच्ची द्वारा बताए गए अपराधों की रिपोर्ट न करना, सरासर अन्याय होगा'। फैसले में आगे कहा गया कि हालांकि महिला के पति के खिलाफ मुकदमा, कानून के अनुसार ही आगे बढ़ेगा। आरोपों के अनुसार नाबालिग के पिता द्वारा कई मौकों पर उसका यौन उत्पीड़न किया गया और उसके साथ मारपीट भी की गई।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता मां और उसकी बेटी के बयानों से उनके घर की घिनौनी और बदतर स्थिति का पता चलता है, जहां याचिकाकर्ता के पति द्वारा लगातार दुर्व्यवहार किया जाता था। इसलिए, अदालत ने कहा कि इस संभावना को ध्यान में रखना असंभव नहीं है कि रिपोर्ट करने में देरी केवल इसलिए हुई क्योंकि मां और बच्ची दोनों ही बहुत अधिक आघात में जी रहे थे और उन्हें इस बात का भी डर था कि अगर वे पुलिस के पास जाते तो उन्हें और अधिक शारीरिक और यौन शोषण का सामना करना पड़ सकता है।
कोर्ट के फैसले में यह भी कहा गया कि बाल यौन शोषण की शिकायत अनिवार्य रूप से करने के कानूनी प्रावधान, दुर्व्यवहार को रोकने के इरादे से बनाए गए हैं, लेकिन यह एक सख्त फॉर्मूला नहीं हो सकता। अदालत ने कहा, 'घर के भीतर होने वाला यौन शोषण, जहां पर अपराधी या तो पति या घर का अन्य प्रभावशाली व्यक्ति होता है, वह सबसे जघन्य और पतित हो सकता है। ऐसे में पीड़ित महिलाएं अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए डर के साये में जीती हैं।'
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