DDA को देना होगा 45 साल पहले आवंटित MIG फ्लैट, दिल्ली हाईकोर्ट ने आवंटी के हक में सुनाया फैसला
दिल्ली विकास प्राधिकरण की गलती के कारण एक व्यक्ति को मध्यम आय वर्ग (एमआईजी) आवास नहीं मिल सका। इस शख्स ने अपने हक के लिए दशकों तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। 45 साल बाद अब उसके पक्ष में फैसला आया है।
दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की गलती के कारण एक व्यक्ति को मध्यम आय वर्ग (एमआईजी) आवास नहीं मिल सका। इस शख्स ने अपने हक के लिए दशकों तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। 45 साल बाद अब उसके पक्ष में फैसला आया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने डीडीए को आदेश दिए हैं कि वह याचिकाकर्ता को आवास पर कब्जा दे।
जस्टिस धर्मेश शर्मा की बेंच ने डीडीए से कहा है कि वह याचिकाकर्ता को संबंधित सोसाइटी (द्वारका) में ही एमआईजी फ्लैट पर कब्जा दे। दरअसल, डीडीए ने जब आवास का ड्रॉ निकाला तो याचिकाकर्ता का नाम उसमें आ गया था, लेकिन डीडीए का कहना था कि याचिकाकर्ता ने अपनी रिहायश बदल ली थी, इसलिए उनका पत्र याचिकाकर्ता को नहीं मिल पाया और वह रकम का भुगतान समय से नहीं कर पाया। इसके चलते डीडीए ने उसके द्वारका इलाके में ड्रॉ में निकले एमआईजी फ्लैट का आवंटन रद्द कर दिया था। साथ ही, इस आवास पर तीसरे पक्ष को कब्जा दे दिया, लेकिन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि बेशक याचिकाकर्ता अपने उल्लेखित रिहायशी पते पर नहीं था, लेकिन उसका व्यावसायिक पता हमेशा वही रहा, जो 45 साल पहले दस्तावेजों में दर्ज था। एमआईजी आवास के लिए फॉर्म भरते हुए याचिकाकर्ता ने अपना व्यावसायिक पता भी उसमें लिखा था।
बेंच ने कहा कि डीडीए के पास फ्लैट का आवेदन करने वाले व्यक्ति का व्यावसायिक पता मौजूद था, लेकिन डीडीए ने डिमांड कम अलॉटमेंट लेटर को उस पते पर भेजने का प्रयास ही नहीं किया। बेंच ने कहा कि समान सोसाइटी, क्षेत्रफल व अन्य सुविधाओं के साथ याचिकाकर्ता को उसी इलाके में फ्लैट दिया जाए।
कई साल तक टरकाया जाता रहा
याचिकाकर्ता सुधीर कुमार ने वर्ष 1979 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की आवास योजना के तहत एक एमआईजी फ्लैट के लिए आवेदन किया। कुछ समय बाद याचिकाकर्ता ने अपना आवास बदल लिया। हालांकि, उसका व्यावसायिक पता वहीं रहा। डीडीए ने जब ड्रॉ निकाला तो सुधीर कुमार का नाम सफल उम्मीदवारों की लिस्ट में आया। उन्हें द्वारका इलाके में आवास का आवंटन किया गया, लेकिन याचिकाकर्ता रिहायश बदल चुका था। इसलिए उसे ड्रॉ निकलने का पता नहीं चला। कुछ साल बाद इस बाबत जानकारी मिलने पर जब याचिकाकर्ता ने डीडीए से संपर्क किया तो उसे कई साल तक टरकाया जाता रहा।
तारीख के हिसाब से भुगतान करना होगा
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता डीडीए को उस तारीख के हिसाब से फ्लैट की रकम का भुगतान करेगा, जिस तारीख को अदालत में याचिका दायर की गई थी। बेंच के आदेशानुसार अब याचिकाकर्ता को 2 अप्रैल 2016 की तारीख पर फ्लैट की कीमत का भुगतान करना होगा। हालांकि, इस रकम पर डीडीए किसी प्रकार का ब्याज नहीं लेगा।