बेटा बीजेपी में, मां निर्दलीय लड़ रही चुनाव; रोचक हुआ हरियाणा का सियासी रण
Haryana Vidhan Sabha Chunav: हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार सियासी माहौल बेहद दिलचस्प हो रहा है। जहां एक ओर बेटा और पिता भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं तो मां निर्दलीय और बेटा इनेलो पार्टी से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार सियासी माहौल बेहद दिलचस्प हो रहा है। जहां एक ओर बेटा और पिता भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं तो मां निर्दलीय और बेटा इनेलो पार्टी से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे। सत्ता हासिल करने के लिए एक ही परिवार के सदस्यों में सियासी बंटवारा हो गया। राजनीति जानकारों के मुताबिक हरियाणा की राजनीति में यह स्थिति नया मोड़ ला रही है, जहां एक ही परिवार के लोग अलग-अलग पार्टियों में भागीदारी कर रहे हैं।
हिसार से सावित्री जिंदल निर्दलीय मैदान में, बेटे नवीन जिंदल भाजपा में
हिसार जिले से पूर्व मंत्री सावित्री जिंदल इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। सावित्री जिंदल के बेटे नवीन जिंदल, जो कि एक प्रसिद्ध उद्योगपति हैं, भाजपा से कुरुक्षेत्र के सांसद हैं। इसी साल नवीन जिंदल ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा और लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। हालांकि, उनकी मां सावित्री जिंदल ने इस बार विधानसभ के लिए कांग्रेस से टिकट की आस लगाई थी। सावित्री जिंदल पहले भी कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुकी हैं और राजनीति में उनका लंबा अनुभव है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि हिसार में स्टील के बड़े कारोबार से जुड़ी है। बहरहाल, इस बार उनका निर्दलीय चुनाव लड़ना उनके और नवीन जिंदल के राजनीतिक सफर में नया मोड़ लेकर आया है।
ताहिर हुसैन इनेलो में तो पिता भाजपा में
नूंह जिले में हरियाणा वक्फ बोर्ड के प्रशासक जाकिर हुसैन भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। दूसरी ओर, उनका बेटा ताहिर हुसैन इनेलो-बसपा गठबंधन की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। ताहिर हुसैन का चुनाव लड़ना न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। वर्ष 2019 में जाकिर हुसैन खुद नूंह से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन वह जीत नहीं सके थे। यहां कांग्रेस के उम्मीदवार आफताब अहमद ने जीत दर्ज की थी। इस बार भी आफताब अहमद फिर कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मैदान में हैं।
परिवारों में मतभेद
जानकारों का कहना है कि परिवारों में मतभेद सिर्फ विचारधारा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि चुनावी मैदान में भी यह साफ दिखाई दे रहा है। कई बार समर्थक इस बात को लेकर असमंजस में रहते हैं कि एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग राजनीतिक दलों में रहकर राजनीति करते हैं।