फ्लैट के 10% दाम देने के बाद खरीदार को नहीं मिलेगा धोखा, नोएडा प्राधिकरण का फैसला
नोएडा में बिल्डर फ्लैट खरीदारों के साथ फ्लैट निरस्त करने, दूसरा फ्लैट देने जैसी गड़बड़ी नहीं कर सकेंगे। इसके लिए नोएडा में एग्रीमेंट टू सेल (Agreement to sell) व्यवस्था लागू की गई है।
नोएडा में बिल्डर फ्लैट खरीदारों के साथ फ्लैट निरस्त करने, दूसरा फ्लैट देने जैसी गड़बड़ी नहीं कर सकेंगे। इसके लिए नोएडा में एग्रीमेंट टू सेल (Agreement to sell) व्यवस्था लागू की गई है। इसमें फ्लैट खरीदार बिल्डर को कुल कीमत का 10 प्रतिशत पैसा देते ही एग्रीमेंट टू सेल करा सकेंगे। इसके बाद प्राधिकरण जब संबंधित परियोजना को अधिभोग प्रमाण पत्र (Occupancy Certificate) जारी कर देगा और बकाया ले लेगा, उस समय फ्लैट की पूरी तरह रजिस्ट्री हो जाएगी। यह व्यवस्था ग्रुप हाउसिंग के नए आवंटन पर लागू होगी। यह निर्णय शनिवार को नोएडा प्राधिकरण की 215वीं बोर्ड बैठक में लिया गया।
नोएडा प्राधिकरण के सीईओ लोकेश एम ने बताया कि रेरा अधिनियम के प्रावधान के अनुसार नोएडा प्राधिकरण ने फ्लैट खरीदारों के हित में एग्रीमेंट टू सेल कराने का निर्णय लिया है। फ्लैट की कीमत पर पांच प्रतिशत स्टांप ड्यूटी देते हुए इस एग्रीमेंट को निबंधन विभाग में रजिस्टर्ड कराना होगा।
नए नियम से फ्लैट खरीदारों पर पड़ेगा दोहरा आर्थिक बोझ
नोएडा प्राधिकरण ने ग्रुप हाउसिंग की नई परियोजनाओं के लिए एग्रीमेंट टू सेल (ब्रिकी समझौता) के नए नियम को हरी झंडी दी। महत्वपूर्ण यह है कि सरकार को इससे जल्द स्टांप का पैसा तो मिल जाएगा, लेकिन फ्लैट खरीदारों पर अधिक आर्थिक बोझ पड़ेगा। खरीदारों को एक ही फ्लैट की दो बार रजिस्ट्रेशन फीस देनी होगी।
इसके अलावा अतिरिक्त स्टांप फीस भी चुकानी होगा। फ्लैट खरीदारों की संस्था का कहना है कि एग्रीमेंट टू सेल के समय स्टांप फीस व रजिस्ट्रेशन फीस लिया जाना गलत है। इससे खरीदारों पर आर्थिक बोझ पड़ेगा। प्राधिकरण की तरफ से जल्द बिल्डरों के लिए ग्रुप हाउसिंग योजना लाई जा रही है। इन योजनाओं में फ्लैट बुक कराने वाले खरीदार जब फ्लैट की कुल कीमत का 10 प्रतिशत पैसा बिल्डर को दे देंगे तो उनको बिल्डर को उनके नाम एग्रीमेंट टू सेल करना होगा। एग्रीमेंट टू सेल के समय फ्लैट की कुल कीमत के हिसाब से पांच प्रतिशत स्टांप फीस व एक प्रतिशत रजिस्ट्रेशन फीस जमा करनी होगी। इसके बाद जब संबंधित परियोजना पूरी हो जाएगी, उस समय फ्लैट की ठीक पूरी प्रक्रिया के तहत रजिस्ट्री होगी।
रजिस्ट्री के समय भी खरीदार को फ्लैट की कीमत के हिसाब से एक प्रतिशत रजिस्ट्रेशन फीस दोबारा से देनी होगी। इसके अलावा अगर उस समय तक संबंधित एरिया का सर्किल रेट बढ़ गया होगा तो स्टांप का अंतर भी देना होगा। इससे फ्लैट खरीदारों पर दोहरा आर्थिक बोझ पड़ेगा।
100 रुपये के स्टांप पेपर पर होता है एग्रीमेंट : अभी फ्लैट खरीदने बाद खरीदार और बिल्डर के बीच 100 रुपये के स्टांप पेपर पर एग्रीमेंट हो जाता है। इसको निबंधन विभाग में भी पंजीकृत नहीं कराया जाता है।
ऐसे समझें खरीदार ने किसी परियोजना में एक करोड़ रुपये का फ्लैट खरीदा है। फ्लैट बुक करते समय खरीदार ने बिल्डर को दस प्रतिशत राशि के रूप में 10 लाख रुपये दे दिए। इसके बाद बिल्डर और खरीदार के बीच एग्रीमेंट टू सेल होगा। एग्रीमेंट टू सेल कराते समय फ्लैट की कीमत 1 करोड़ रुपये के हिसाब से 5 प्रतिशत स्टांप फीस यानि 5 लाख रुपये देने होंगे। इसके अलावा फ्लैट की कीमत 1 करोड़ के हिसाब से 1 प्रतिशत राशि यानि एक 1 लाख रुपये पंजीकरण राशि के रूप में देने होंगे। ऐसे में एग्रीमेंट टू सेल कराते समय खरीदार को 6 लाख रुपये खर्च करने होंगे। इसके बाद जब भी फ्लैट की रजिस्ट्री होगी, उस समय दोबारा से ये शुल्क देना होगा। अगर उस समय संबंधित एरिया का सर्किल रेट वही है तो 1 लाख रुपये दोबारा रजिस्ट्रेशन फीस के रूप में देने होंगे। अगर सर्किल रेट बढ़ गया तो वह अंतर वाली राशि देनी होगी। इसका असर रजिस्ट्रेशन फीस पर भी पड़ेगा।
तत्कालीन डीएम ने शुरू किया था एग्रीमेंट टू सेल
तत्कालीन डीएम बीएन सिंह ने वर्ष 2019-20 के दौरान फ्लैट खरीदारों की सहूलियत के लिए एग्रीमेंट टू सेल की व्यवस्था कराई थी। उस समय कुछ फ्लैट व व्यावसायिक संपत्ति का एग्रीमेंट टू सेल भी हुआ था, लेकिन उनके हटते ही यह प्रक्रिया बंद हो गई। खास बात यह है कि उस समय रजिस्ट्रेशन फीस अधिकतम 20 हजार रुपये ही थी। ऐसे में खरीदारों पर ज्यादा आर्थिक बोझ नहीं पड़ रहा था।
नेफोवा अध्यक्ष अभिषेक कुमार ने कहा, ''प्राधिकरण के इस निर्णय का विरोध करते हैं। एग्रीमेंट टू सेल के समय पूरी स्टांप फीस न लेकर 20-25 हजार रुपये ही लिए जाएं। शुरुआत में ही खरीदारों पर बोझ न डाला जाए। बाद में रजिस्ट्री के समय इस राशि को समायोजित कर लिया जाए।''
नेफोमा अध्यक्ष अन्नू खान ने कहा, ''एग्रीमेंट टू सेल कराते समय स्टांप फीस नहीं लिया जाना चाहिए। अगर बाद में बिल्डर ने प्राधिकरण का बकाया नहीं दिया तो प्राधिकरण रजिस्ट्री की अनुमति देगा नहीं। इससे रजिस्ट्री अटकी रहेगी। इसके अलावा बिल्डर भाग गया तो परियोजना अधूरी रह जाएगी।''