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बहराइच हिंसा के आरोपियों के घर नहीं चलेगा योगी का बुलडोजर, सुप्रीम कोर्ट का ब्रेक

  • 23 घरों पर चस्पा नोटिस में अवैध अतिक्रमण हटाने के लिए तीन दिनों की मोहलत दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से मिली तत्काल मोहलत पर आरोपियों ने राहत की सांस ली है।

Himanshu Jha लाइव हिन्दुस्तानTue, 22 Oct 2024 12:38 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने फिर एकबार योगी सरकार के बुलडोजर ऐक्शन पर रोक लगा दी है। मंगलवार को बहराइच हिंसा में शामिल तीन आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त करने की उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई पर कल तक के लिए रोक लगा दी है। मामले की सुनवाई अब बुधवार को होगी। न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा, "आप इस अदालत द्वारा पारित आदेशों से अवगत हैं। यदि उत्तर प्रदेश सरकार इन आदेशों का उल्लंघन करने का जोखिम उठाना चाहती है तो यह उनकी मर्जी है।"

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या जल निकायों पर अतिक्रमण से जुड़े मामलों को छोड़कर देश भर में बिना अनुमति के बुलडोजर ऐक्शन पर रोक लगा दी है। बीते एक अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने सरकारी अधिकारियों द्वारा गैरकानूनी बुलडोजर विध्वंस को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच में अपना फैसला सुरक्षित रखा।

पिछले हफ्ते लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने धार्मिक जुलूस के दौरान संगीत बजाने को लेकर बहराइच जिले के एक गांव में सांप्रदायिक हिंसा में शामिल तीन लोगों को ध्वस्तीकरण नोटिस जारी किया। आपको बता दें कि इस हिंसा में राम गोपाल मिश्रा की गोली लगने से मौत हो गई थी।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि संपत्तियां 10-70 साल पुरानी हैं और आरोप लगाया कि प्रस्तावित विध्वंस कार्रवाई दंडात्मक है। उन्होंने कहा कि सरकार का अनधिकृत निर्माण का दावा केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मानने का एक बहाना है।

मंगलवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि आवेदक के पिता और भाई में से एक ने आत्मसमर्पण कर दिया था। कथित तौर पर 17 अक्टूबर को नोटिस जारी किए गए थे और 18 अक्टूबर की शाम को चिपकाए गए थे। वकील सीयू सिंह ने कहा, "आपके आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है। पीडब्ल्यूडी ने तीन दिनों के भीतर विध्वंस के लिए नोटिस जारी किए हैं।"

इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी मामले की सुनवाई हुई। होईकोर्ट ने ध्वस्तीकरण पर किसी तरह की रोक तो नहीं लगाई लेकिन ध्वस्तीकरण नोटिस से प्रभावित लोगों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया था। लखनऊ हाईकोर्ट के अधिवक्ता सैय्यद अकरम आजाद ने बताया कि याचिका दाखिल करने वालों में अब्दुल हमीद की बेटी, दिल्ली की संस्था एसओसीएसएम फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट है, जो राष्ट्रीय स्तर पर काम करती है।

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