Hindi Newsदेश न्यूज़Why political controversy on Sri Narayan Guru in Kerala Left vs BJP and Congress pope Francis praises Indian Saint

आखिर नारायण गुरु के नाम पर केरल में क्यों छिड़ा विवाद, पोप ने भी की थी तारीफ; किस वोट बैंक पर नजर

भाजपा ने विजयन पर हिन्दू धर्म का अनादर करने और राजनीतिक लाभ लेने के लिए नारायण गुरु की विरासत को धुमिल करने का आरोप लगाया।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 2 Jan 2025 04:53 PM
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केरल में इन दिनों सत्तारूढ़ सीपीआईएम और विपक्षी भाजपा के बीच सनातन धर्म और श्रीनारायण गुरु को लेकर सियासी टकराव जारी है। इस विवाद की वजह केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन हैं, जिन्होंने मंगलवार को संत-समाज सुधारक श्री नारायण गुरु को सनातन धर्म के समर्थक के रूप में चित्रित करने के ‘संगठित प्रयासों’ के खिलाफ लोगों को आगाह किया। विजयन ने कहा कि नारायण गुरु ने ‘लोगों के लिए एक जाति, एक धर्म और एक ईश्वर’ की वकालत की थी, न कि जातियों में बांटने और उनके बीच भेदभाव करने की।

मुख्यमंत्री विजयन ने यह भी दावा किया कि नारायण गुरु न तो सनातन धर्म के प्रवक्ता थे और न ही इसके अनुयायी बल्कि वह एक संत हैं, जिन्होंने सनातन धर्म का पुनर्निर्माण किया और नए युग के लिए उपयुक्त धर्म की घोषणा की। इसके साथ ही विजयन ने कहा कि सनातन धर्म कुछ और नहीं बल्कि ‘वर्णाश्रम धर्म’ (जाति-आधारित सामाजिक व्यवस्था) है, जिसे गुरु ने चुनौती दी थी और उस पर विजय प्राप्त की थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरु का तपस्वी जीवन ही संपूर्ण चातुर्वर्ण्य व्यवस्था पर सवाल उठाता है और उसे चुनौती देता है।

केरल में सियासी जमीन की तलाश कर रही भाजपा ने मुख्यमंत्री विजयन पर उनके बयानों के लिए हल्ला बोल दिया है और कहा है कि विजयन के बयान फिर से हिन्दू धर्म के प्रति उनके तिरस्कार भावना को दर्शाते हैं। भाजपा ने विजयन पर हिन्दू धर्म का अनादर करने और राजनीतिक लाभ लेने के लिए नारायण गुरु की विरासत को धुमिल करने का आरोप लगाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि सीएम विजयन ने न सिर्फ नारायण गुरु बल्कि श्री नायायणिया समुदाय का अपमान किया है।

उधर, कांग्रेस नेता वीडी सतीशन ने भी केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन के सनातन धर्म पर दिए गए बयान की बुधवार को आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने सनातन धर्म को संघ परिवार तक सीमित करने का प्रयास किया। सतीशन ने शिवगिरी तीर्थयात्रा के तहत आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करने के बाद कहा, ‘‘सनातन धर्म एक सांस्कृतिक विरासत है। इसमें अद्वैत, तत्त्वमसि, वेद, उपनिषद और उनका सार समाहित है। यह दावा करना कि यह सब संघ परिवार का है तो यह केवल भ्रामक है।’’विजयन के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए सतीशन ने कहा कि यह ऐसा ही है जैसे यह कहना कि जो व्यक्ति मंदिर जाता है, चंदन लगाता है या भगवा पहनता है वह राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का हिस्सा है।

23 फीसदी वोट बैंक पर नजर

अब सवाल उठता है कि सभी सियासी दल नारायण गुरु के नाम पर 'अपनी ढपली अपना राग' क्यों अलाप रहे हैं। इसका जवाब केरल की 23 फीसदी आबादी में छिपा है, जो श्री नारायणिया समुदाय और हिन्दू ओबीसी समुदाय की एझावा जाति है। परंपरागत रूप से यह समुदाय वामपंथी दलों का समर्थक रहा है। इस जाति को मालाबार क्षेत्र में थिया या तियार के नाम से भी जाना जाता है। कालांतर में इस समुदाय को समाज में उपेक्षित समुदाय माना जाता था और अछूत कहा जाता था लेकिन अब सभी सियासी दलों को इनके समर्थन की दरकार महसूस होने लगी है।

केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए सभी राजनीतिक दल जातीय पैंठ बनाने की जुगत में लगी हैं। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) और सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च (CPPR) द्वारा किए गए चुनाव विश्लेषणों से पता चलता है कि केरल में भाजपा के वोट शेयर में 2011 के विधानसभा चुनावों के दौरान 6% से 2016 में 15% तक की बढ़ोतरी मुख्य रूप से नायर और एझावा वोटों के स्थानांतरण के कारण हुई थी। इसलिए पार्टी इन समुदायों को लुभाने के लिए विशेष जोर लगा रही है।

आंकड़े क्या कहते हैं?

आंकड़े बताते हैं कि एझावा समुदाय का वोट बैंक धीरे-धारे लेफ्ट से खिसकता जा रहा है और वह भाजपा की तरफ शिफ्ट हो रहा है। कांग्रेस को भी इसका लाभ कमोबेश मिल रहा है। 2006 के विधानसभा चुनाव में इस समुदाय का 6 फीसदी वोट भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन को मिला था जो बढ़कर क्रमश: 2011 और 2016 में 7 और 17 फीसदी हो गया, जबकि वाम दलों के गठबंधन एलडीएफ का एझावा समुदाय का वोट शेयर घटकर 2006 में 64 से घटकर 2016 में 49 फीसदी रह गया। कांग्रेस को इस दौरान सिर्फ एक फीसदी एझावा समुदाय का वोट ज्यादा मिला है। 2006 में 27 फीसदी था जो 2016 में 28 फीसदी हो गया।

कौन थे नारायण गुरु

श्री नारायण गुरु, जिनका जन्म 20 अगस्त, 1856 को केरल के तिरुवनंतपुरम के पास चेम्पाजंथी गांव में हुआ था, एक क्रांतिकारी व्यक्ति थे। उन्होंने अपने समय के सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी। वे एझावा समुदाय से थे। यह समुदाय निचली जाति माना जाता था और छूआछूत का शिकार था। उन्होंने अद्वैतवाद के तहत 'एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर' (ओरु जति, ओरु माथम, ओरु दैवम, मानुष्यानु) का प्रसिद्ध नारा दिया था। उनका निधन 1928 में हो गया था।

नारायण गुरु ने वर्ष 1888 में अरुविप्पुरम में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनाया, जो उस समय के जाति-आधारित प्रतिबंधों के खिलाफ था। उन्होंने मंदिरों में मूर्तियों की जगह दर्पण रखा। यह उनके इस संदेश का प्रतीक था कि परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है। करमुक्कू के अर्धनारीश्वर मंदिर में उन्होंने 1927 में कोच्चि से खरीदा गया ‘बेल्जियम मिरर’ स्थापित किया था, जिस पर पारंपरिक मूर्ति के बजाय “ओम” शब्द और “सत्यम (सत्य)”, “धर्मम (धार्मिकता)”, “दया (करुणा)” और “शांति (शांति)” जैसे गुण अंकित थे। इससे उनकी यह मान्यता स्पष्ट हो गई कि आध्यात्मिकता आत्म-चिंतन में निहित है, न कि कर्मकांड और मूर्ति पूजा में।

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पोप ने भी की थी तारीफ

ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने पिछले ही महीने एक दिसंबर को श्री नारायण गुरु की सराहना करते हुए कहा था कि उनका सार्वभौमिक मानव एकता का संदेश आज भी प्रासंगिक है। पोप ने केरल के एर्नाकुलम जिले के अलुवा में श्री नारायण गुरु के सर्व-धर्म सम्मेलन के शताब्दी समारोह के अवसर पर वेटिकन सिटी में जुटे धर्मगुरुओं और प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए ये बात कही थी। पोप ने कहा था कि आज दुनिया की अशांत स्थिति की एक वजह धर्मों की शिक्षाओं को न अपनाना भी है। पोप ने कहा कि श्री नारायण गुरु ने अपने संदेश के माध्यम से सामाजिक और धार्मिक जागृति को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। पोप ने कहा कि गुरु ने अपने संदेश में कहा था कि सभी मनुष्य, चाहे उनकी जातीय, उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं कुछ भी हों, लेकिन एक ही मानव परिवार के सदस्य हैं।

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