एक्सप्लेन्ड: आंबेडकर विवाद पर बार-बार सफाई क्यों पेश कर रही BJP, लोकसभा चुनाव वाला डर तो वजह नहीं?
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने जनता के बीच यह प्रचारित किया था कि अगर भाजपा की अगुवाई वाला NDA 400 सीटें जीत जाता है तो संविधान बदल दिया जाएगा और देश से आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा।
संविधान के 75 वर्षों के गौरवशाली इतिहास पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संविधान निर्माता बाबा साहेब बीआर आंबेडकर से जुड़े बयान पर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल हमलावर हैं। वहीं भाजपा भी पूरी ताकत से विपक्षी दलों के आरोपों का खंडन कर रही है। खुद गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर इस पर अपनी सफाई पेश की और कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि मुख्य विपक्षी पार्टी आंबेडकर विरोधी, संविधान विरोधी, और आरक्षण विरोधी है।
भाजपा की तरफ से इस मुद्दे पर जबर्दस्त तरीके से पलटवार किया जा रहा है। इसकी बानगी तब दिखी जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर न केवल अमित शाह के बयान का समर्थन किया बल्कि कांग्रेस पर पलटवार भी किया। प्रधानमंत्री ने अपने एक ट्वीट में लिखा, "अगर कांग्रेस और उसका सड़ा हुआ तंत्र यह सोचता है कि उनके दुर्भावनापूर्ण झूठ उनके कई वर्षों के कुकर्मों, खासकर डॉ. अंबेडकर के प्रति उनके अपमान को छिपा सकते हैं, तो वे बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं! भारत के लोगों ने बार-बार देखा है कि कैसे एक वंश के नेतृत्व वाली एक पार्टी ने डॉ. अंबेडकर की विरासत को मिटाने और एससी/एसटी समुदायों को अपमानित करने के लिए हर संभव गंदी चाल चली है।"
इस मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में भी हंगामा हुआ और दोनों सदनों की कार्रवाई कल तक के लिए स्थगित कर दी गई। संसद में संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल समेत भाजपा के कई मंत्रियों और सांसदों ने विपक्ष के आरोपों का पुरजोर खंडन किया। उधर, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आप, शिवसेना (UBT) समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने इस मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश की। कई शहरों में भी विपक्षी दलों के नेताओं ने विरोध-प्रदर्शन किया। इसके जवाब में भाजपा ने प्रवक्ताओं की फौज उतार दी।
अब सवाल उठता है कि पीएम मोदी जो अकसर ऐसे विवादित मुद्दों पर बयान देने से परहेज करते रहे हैं, उन्होंने इस पर तुरंत क्यों पलटवार किया और अमित शाह ने शाम ढलने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर सफाई क्यों पेश की। इसके पीछे भाजपा का वह डर है, जिसकी वजह से उसे लोकसभा में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। दरअसल, भाजपा को यह डर सताने लगा कि अगर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल लोकसभा चुनावों की तरह फिर से जनता के बीच यह संदेश फैलाने के मकसद में कामयाब रहे कि भाजपा संविधान, आंबेडकर और दलित विरोधी है तो पार्टी को आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में ना केवल भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है बल्कि पार्टी का दलित वोट बैंक भी खिसक सकता है, जिसका बड़ा खामियाजा आगामी उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है।
इसी सियासी रणनीति को भांपते हुए दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने तुरंत इस मसले को लपक लिया और भाजपा दफ्तर के बाहर खुद अरविंद केजरीवाल दल-बल के साथ धरना देने पहुंच गए। केजरीवाल ने इसे दिल्ली चुनावों में मुद्दा बनाने का भी ऐलान कर दिया और कहा कि वह एक-एक घर जाकर भाजपा को इस मुद्दे पर बेनकाब करेंगे। बाद में केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में एक नारा भी लिखा, "जो बाबा साहेब से करे प्यार, वो बीजेपी को करे इनकार।"
बता दें कि दिल्ली में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच सीधी लड़ाई है। दोनों ही पार्टियों की नजर करीब 25 लाख दलित वोटों पर है। दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से 12 सीटें अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, क्योंकि वहां दलितों की आबादी ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली के 1.2 करोड़ मतदाताओं में जाटव, वाल्मीकि और अन्य दलित उप-जातियों की हिस्सेदारी करीब 20% है - जो अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले किसी भी दल की सियासी किस्मत को बदलने के लिए पर्याप्त है। चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को भारी संख्या में दलित वोटों का नुकसान हुआ था। इसकी वजह से 2019 के मुकाबले भाजपा की कुल सीट 303 से घटकर 240 पर आ गई थी।