जब सोनिया गांधी से बेहद नाराज हो गए थे डॉ. मनमोहन सिंह, दे दी थी इस्तीफे की धमकी
- अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते का विरोध यूपीए के ही कई दल कर रहे थे। डॉ. मनमोहन सिंह अपने रुख पर अडिग रहे और अंत में यह समझौता हो गया जो कि देश की बड़ी जीत थी।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार को दिल्ली के AIIMS में निधन हो गया। 2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद वह सार्वजनिक जीवन में कम ही दिखाई देते थे। एक दशक तक देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह को पूरी दुनिया में एक कुशल अर्थशास्त्री के तौर पर देखा जाता है। प्रधानमंत्री रहते उनपर कई बार रिमोट कंट्रोल सरकार होने के भी आरोप लगते रहे। हालांकि कई बार वह देश हित के कार्यों के लिए अड़ गए। अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील को लेकर वह सोनिया गांधी से भी नाराज हो गए थे और उन्होंने इस्तीफे तक की पेशकश कर दी थी।
डॉ. मनमोहन सिंह निरसिंह राव की सरकार में वित्त मंत्री थे। उन्होंने देश की नई आर्थिक नीति को आकार दिया और भारत के बाजार को दुनियावालों के लिए भी खोल दिया। इसी नींव पर आज की भारतीय अर्थव्यवस्था की इमारत खड़ी है। वह विनम्र जरूर थे लेकिन उनके ठोस फैसलों ने ही देश को आगे बढ़ाने में मदद की। कड़े विरोध के बाद भी उन्होंने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौत के लिए बातचीत आगे बढ़ाई। बताया जाता है कि राजनीतिक दलों के विरोध के बीच सोनिया गांधी ने भी एक बैठक में इस फैसले पर असहमति जता दी थी। इसपर डॉ. मनमोहन सिंह नाराज हो गए और उन्होंने इस्तीफा देने की भी धमकी दे दी। हालांकि शालीन व्यवहार के धनी रहे डॉ. सिंह ने विनम्र्ता सेही काम बना लिया और यह डील आगे बढ़ गई।
डॉ. मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक 10 साल प्रधानमंत्री रहे। वह बोलते भले ही कम थे लेकिन उनका काम आज भी बोलता है। जब अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते की बात आई तो यूपीए के ही दल इसका विरोध करने लगे। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मदद से वह कुछ दलों को समझा ले गए। हालांकि वामपंथी इसका खूब विरोध कर रहे थे। ऐसे में स्थिति यह आ गई कि उनकी सरकार को विश्वास की परीक्षा देनी पड़ी।
2005 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डब्लू जॉर्ज बुश ने समझौते को लेकर संयुक्त घोषणा कर दी। इस फैसले से भारत औऱ अमेरिका करीब आने लगे। इसके अलावा यह भारत की एक बड़ी जीत कही जा सकती है। संजय बारू ने अपनी पुस्तक 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में लिखा कि मनमोहन सिंह के इस फैसले से उनकी छवि मजबूत हो गई और सोनिया गांधी के प्रति उकी अधीनता को भी लोगों की कल्पना से मिटा दिया। इसके बाद 2009 के चुनाव में कांग्रेस को 206 सीटें मिलीं।