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कलकत्ता हाईकोर्ट की किस बात को लेकर भड़क गया सुप्रीम कोर्ट, मांग ली रिपोर्ट

  • राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, कलकत्ता हाईकोर्ट में 1039 जमानत याचिकाएं लंबित हैं। इनमें 2019 की एक, 2022 की 102, 2023 की 127, 2024 की 711 और इस साल की 98 याचिकाएं शामिल हैं।

Himanshu Jha लाइव हिन्दुस्तानThu, 30 Jan 2025 10:14 AM
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कलकत्ता हाईकोर्ट की किस बात को लेकर भड़क गया सुप्रीम कोर्ट, मांग ली रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा नियमित और अग्रिम जमानत आवेदनों को डिवीजन बेंच द्वारा सुनने की प्रथा पर सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दूसरे हाईकोर्ट में ये मामले एकल जज द्वारा सुने जाते हैं तो कलकत्ता हाईकोर्ट में डिवीजन बेंच क्यों सुनवाई कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा, "जब जमानत आवेदन की बड़ी संख्या और लंबित मामलों का बोझ है तो नियमित जमानत और अग्रिम जमानत आवेदन को डिवीजन बेंच द्वारा क्यों सुना जा रहा है? दूसरे हाईकोर्ट में तो ऐसा नहीं होता है। क्या दो न्यायाधीशों को नियमित जमानत मामलों में समय देना चाहिए?"

कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) से इस प्रथा पर रिपोर्ट मांगी है। साथ ही 2024 में दायर जमानत आवेदनों की जानकारी प्रस्तुत करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इन निर्देशों को उस विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर जारी किया, जो एक हत्या मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के खिलाफ थी। सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) से रिपोर्ट और 2024 में दायर जमानत आवेदन तथा उनके लंबित मामलों की जानकारी मांगी है।

राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, कलकत्ता हाईकोर्ट में 1039 जमानत याचिकाएं लंबित हैं। इनमें 2019 की एक, 2022 की 102, 2023 की 127, 2024 की 711 और इस साल की 98 याचिकाएं शामिल हैं।

इस मामले में याचिकाकर्ता साफीयर हुसैन एक साल ग्यारह महीने से हिरासत में थे। उन्होंने जमानत की मांग की थी। हाईकोर्ट ने यह पाया कि चार्जशीट किए गए गवाहों में से केवल आठ की ही गवाही हुई थी। यह संभावना नहीं थी कि मामला जल्दी निपट जाएगा।

बंगाल सरकार ने जमानत का विरोध करते हुए आरोपी के पास से एक बंदूक और छह राउंड कारतूस की बरामदगी का हवाला दिया था। साथ ही फोरेंसिक साक्ष्य भी प्रस्तुत किए थे। ये सभी आरोपी के खिलाफ थे। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह माना कि लंबी हिरासत बिना मुकदमे के आरोपी के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। हाइकोर्ट ने इस आधार पर जमानत दी।

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