अब स्थायी जज बनेंगी विक्टोरिया गौरी, कॉलेजियम की सिफारिश; नियुक्ति पर मचा था बवाल लेकिन अड़े रहे CJI चंद्रचूड़
- न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति 2023 में विवादों में घिर गई थी, जब कुछ वीडियो में उनके कथित नफरती भाषण सामने आए थे।
सुप्रीम कोर्ट (SC) कॉलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट के पांच अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है। इन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति एल विक्टोरिया गौरी, न्यायमूर्ति पीबी बालाजी, न्यायमूर्ति केके रामकृष्णन, न्यायमूर्ति आर. कलैमाथी, और न्यायमूर्ति के गोविंदराजन तिलकवाडी का नाम शामिल है। मद्रास हाईकोर्ट के कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से 29 अप्रैल 2024 को इन न्यायाधीशों को स्थायी बनाने का निर्णय लिया था। इस सिफारिश पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों ने सहमति जताई थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश से परामर्श कर अंतिम निर्णय लिया गया।
कॉलेजियम के प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की एक समिति ने इन पांचों न्यायाधीशों के फैसलों का मूल्यांकन किया और उनकी योग्यता का आकलन किया है। इसके बाद समिति ने यह राय दी कि ये अतिरिक्त न्यायाधीश "स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए उपयुक्त और योग्य" हैं। इन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी का नाम पहले खूब चर्चा में रहा है।
नियुक्ति पर मचा था बवाल
न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति 2023 में विवादों में घिर गई थी, जब कुछ वीडियो में उनके कथित नफरती भाषण सामने आए थे। इसके आधार पर उनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका भी दायर की गई थी। याचिका की सुनवाई उसी दिन हुई, जिस दिन उनकी नियुक्ति निर्धारित थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कॉलेजियम द्वारा स्वीकृत उम्मीदवार की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती।
पेशे से वकील रहीं लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी का विरोध इसलिए भी हुआ था क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर खुद को बीजेपी महिला मोर्चा का राष्ट्रीय महासचिव बताया था। आठ अक्टूबर, 2010 को उन्हें केरल बीजेपी महिला मोर्चा का इंचार्ज बनाया गया था। इसके अलावा, उन्होंने साल 2014 के आम चुनाव में तमिलनाडु में बीजेपी के लिए प्रचार किया था। 'द क्विंट' की रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है, इसलिए यह आरोप लगा था कि मद्रास हाई कोर्ट में उनकी नियुक्ति का राजनीतिक झुकाव हो सकता है। वहीं, गौरी की अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ उनके कथित 'हेट स्पीच' के लिए व्यापक रूप से आलोचना की गई थी।
हाईकोर्ट के कुछ बार वकीलों ने तो गौरी की सिफारिश का विरोध करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को संबोधित अलग-अलग लेटर्स भी लिखे थे। इनमें अधिवक्ताओं के समूह ने कॉलेजियम की सिफारिश पर यह कहते हुए आपत्ति जताई कि उनकी नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करेगी।
लेकिन अड़े रहे CJI चंद्रचूड़
इस पूरे मामले में चीफ जस्टिस (CJI) ने भी टिप्पणी की थी। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति की सिफारिश करने से पहले न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी से संबंधित सभी सामग्रियों की सावधानीपूर्वक जांच की थी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि किसी राजनीतिक मुद्दे के लिए पेश होने या समर्थन करने वाले वकील जज बनने से अक्षम नहीं हो जाते हैं।
चीफ जस्टिस ने कहा, "वकील अपने करियर में विभिन्न वर्गों से आने वाले मुवक्किलों (क्लाइंट्स) के लिए पेश होते हैं। वकील अपने मुवक्किल नहीं चुनते। यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि एक वकील के रूप में, जो कोई भी कानूनी सहायता की तलाश में आपके पास आता है, उसके लिए पेश होना आपका कर्तव्य है। यह ठीक वैसे ही जैसे एक डॉक्टर को अपने क्लिनिक में आने वाले किसी भी व्यक्ति का इलाज करना होता है। आप अपने पास आने वाले लोगों के अपराधबोध की कमी का अनुमान नहीं लगाते हैं।"
इस संबंध में उन्होंने जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर के मामले का भी जिक्र किया। सीजेआई ने कहा, "हमारे सबसे महान न्यायाधीशों में से एक, न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की पृष्ठभूमि राजनीतिक थी लेकिन उन्होंने कुछ बेहतरीन फैसले दिए।" सीजेआई चंद्रचूड़ 21 अक्टूबर 2023 को सेंटर फॉर लीगल प्रोफेशन, हार्वर्ड लॉ स्कूल में बोल रहे थे। कार्यक्रम में उनसे पूछा गया, "कम से कम प्रशासनिक स्तर पर कॉलेजियम उस सिफारिश को वापस क्यों नहीं ले सका।" जवाब में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "आपके प्रश्न में एक अनुमान है, जो यह है कि हमारे ध्यान में आने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। मुझे नहीं लगता कि यह बहुत सही मूल्यांकन होगा।"
आगे उन्होंने कहा, "हमने इसे बहुत, बहुत ध्यान से देखा। उस भाषण को भी देखा है। उन न्यायाधीश पर एक विशेष समय पर वह भाषण दिए जाने का आरोप है। उसको फिर से बहुत, बहुत, बहुत ध्यान से देखा गया है। कॉलेजियम में हम जिन प्रक्रियाओं का पालन करते हैं, इनमें से एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगना शामिल है।" सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि कॉलेजियम द्वारा विवरणों की जांच करने के बाद भी, अगर उसे अभी भी संदेह है, तो इसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास ले जाया जाता है, जहां नियुक्ति की जा रही है।
उन्होंने कहा, "हम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास वापस जाते हैं। हम उनसे कहते हैं, कि देखिए यह बात हमारे ध्यान में लाई गई है। क्या आप हमें इससे जुड़ी एक संक्षिप्त रिपोर्ट देंगे कि यह सच है या गलत? हम फीडबैक मांगते हैं और फिर हम वह फीडबैक सरकार के साथ साझा करते हैं।" उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में राज्य और केंद्र सरकार और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) द्वारा बैकग्राउंड की जांच भी शामिल है।
सीजेआई ने कहा, "न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक काफी जटिल प्रक्रिया है जिसमें संघीय प्रणाली की विभिन्न परतें, राज्य, संघ और इंटेलिजेंट ब्यूरो जैसी जांच एजेंसियां शामिल होती हैं जो किसी व्यक्ति की पृष्ठभूमि की जांच करती हैं।" सीजेआई ने कहा कि उनका अपना व्यक्तिगत अनुभव यह है कि विभिन्न राजनीतिक विचारों वाले व्यक्तियों के लिए पेश होने वाले वकील अद्भुत न्यायाधीश बन गए हैं। उन्होंने कहा, "इसलिए, मैं यह नहीं मानता कि हमें किसी व्यक्ति की केवल उन विचारों के आधार पर आलोचना करनी चाहिए जो उसने वकील के रूप में कहे होंगे। क्योंकि मेरा मानना है कि हमारे न्याय करने के पेशे में ऐसा कुछ है जो आपको निष्पक्ष बनाता है।"
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