जम्मू-कश्मीर में छात्रों ने काटा बवाल, CM अब्दुल्ला के घर के बाहर अड़े; क्या कर रहे मांग
- जम्मू-कश्मीर में सामान्य वर्ग के छात्र आरक्षित सीटों की संख्या में बढ़ोतरी के खिलाफ हैं। फिलहाल, करीब 60 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं और छात्र इसे घटाकर 25 प्रतिशत करने की मांग कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति को लेकर छात्रों ने बवाल काट दिया है। सामान्य वर्ग के छात्रों का यह असंतोष अब बड़ा आंदोलन बनता जा रहा है। सोमवार को यह विरोध चरम पर पहुंच गया जब छात्रों ने मुख्यमंत्री के श्रीनगर स्थित निवास गुपकर रोट पर प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में नेशनल कांफ्रेंस के सांसद आगा रूहुल्ला मेहदी और कई अन्य राजनीतिक नेताओं ने भी भाग लिया।
छात्रों ने क्यों काटा बवाल
सामान्य वर्ग के छात्र आरक्षित सीटों की संख्या में बढ़ोतरी के खिलाफ हैं। फिलहाल, करीब 60 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं और छात्र इसे घटाकर 25 प्रतिशत करने की मांग कर रहे हैं। छात्रों का यह भी कहना है कि आरक्षित श्रेणी के छात्रों को सामान्य श्रेणी की सीटों पर मेरिट के आधार पर आवेदन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उनका मानना है कि यह सामान्य वर्ग के छात्रों के साथ अन्याय है।
प्रदर्शन में कौन शामिल
प्रदर्शन का नेतृत्व नेशनल कांफ्रेंस के श्रीनगर सांसद आगा रूहुल्ला मेहदी ने किया। इसके अलावा पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती, पुलवामा के विधायक वहीद उर रहमान पारा, लंगेट के विधायक शेख खुर्शीद और श्रीनगर के पूर्व मेयर जुनैद मट्टू भी छात्रों के साथ खड़े नजर आए।
क्या है सरकार का रुख?
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने छात्रों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। उन्होंने इस मुद्दे पर छात्रों से बातचीत करने और समस्या के समाधान के लिए आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री ने कहा, "मैंने ओपन मेरिट स्टूडेंट्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से मुलाकात की है। लोकतंत्र का सौंदर्य संवाद और सहमति में है। मैंने उनसे कुछ अनुरोध किए हैं और कई आश्वासन दिए हैं। यह बातचीत जारी रहेगी।"
छात्रों की प्रमुख मांगें क्या हैं?
1. आरक्षित सीटों की संख्या को घटाकर 25 प्रतिशत करना।
2. आरक्षित श्रेणी के छात्रों को सामान्य श्रेणी की सीटें लेने से रोकना।
3. आरक्षण नीति पर पुनर्विचार और इसे संतुलित करने के लिए सरकार द्वारा एक उप-समिति का गठन।
नेताओं का क्या कहना है?
सांसद आगा रूहुल्ला मेहदी ने आरक्षण में बढ़ोतरी को अनुचित करार दिया। उन्होंने कहा, "हम किसी समुदाय के आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं। अगर वे दशकों से चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, तो उन्हें सहायता मिलनी चाहिए। लेकिन सामान्य वर्ग के छात्रों की आकांक्षाओं को भी न्याय मिलना चाहिए।"
हालांकि, मुख्यमंत्री अब्दुल्ला ने छात्रों से इस मुद्दे को सुलझाने के लिए छह महीने का समय मांगा है। उन्होंने इस समस्या पर विचार करने और समाधान के लिए एक उप-समिति के जरिए परामर्श प्रक्रिया शुरू करने का आश्वासन दिया। वहीं छात्रों का कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो उनका आंदोलन जारी रहेगा।