AAP को मिला 6 दलों का साथ, पर कांग्रेस ने नहीं बढ़ाया हाथ; क्यों अरविंद केजरीवाल से बच रही पार्टी?
केजरीवाल अब तक शिवसेना (यूबीटी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल इन दिनों देशव्यापी दौरे पर हैं। इस दौरान वह सभी विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं और पिछले सप्ताह जारी किए गए केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटा रहे हैं। केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया है, जिसमें पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि दिल्ली में नौकरशाहों के तबादले का अधिकार चुनी हुई सरकार का है और एलजी उसे मानने को बाध्य हैं। इस फैसले के बाद मोदी सरकार ने दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें अफसरों के तबादले का अधिकार केंद्र सरकार के पास रखा गया है।
केजरीवाल इसी अध्यादेश को संसद से पारित होने से रोकने के लिए विपक्षी दलों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। वह अब तक शिवसेना (यूबीटी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। हालांकि, देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई स्टैंड नहीं लिया है। कांग्रेस की विभिन्न राज्य इकाइयों के कई नेता इस मुद्दे पर आप को राहत देने के मूड में कतई नहीं हैं। वे खुलकर इस मुद्दे पर केजरीवाल का विरोध कर रहे हैं।
आप ने 10 वर्षों में लड़े 20 विधानसभा चुनाव:
आप के प्रति कांग्रेसियों की खुन्नस क्यों हैं? इसका जवाब यह है कि आप ने कांग्रेस के जनाधार को खत्म कर ही बड़े पैमाने पर अपनी राजनीतिक मौजूदगी बढ़ाई है। आप ने सबसे पहले 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा था। पिछले 10 वर्षों में आप 20 राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है लेकिन उसे केवल दो राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल हुई है, जबकि दो में अच्छा प्रदर्शन किया है। ये राज्य हैं- दिल्ली, पंजाब, गोवा और गुजरात।
इन चारों राज्यों में आप कम से कम 5% वोट शेयर जीतने में कामयाब रही है, जबकि शेष 16 राज्यों में से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में ही 1% से अधिक वोट शेयर जीतने में सफल रही है। बाकी राज्यों में आप को एक फीसदी से भी कम वोट मिले हैं। आप का यही प्रदर्शन लोकसभा चुनावों में भी दिखता है। जिन राज्यों में AAP ने 2014 और 2019 दोनों में 5% वोट शेयर का आंकड़ा पार किया, वह पंजाब और दिल्ली है लेकिन लोकसभा सीटें सिर्फ पंजाब में जीती है।
कांग्रेस को रौंदकर पाई चुनावी सफलता:
आप की लॉन्चिंग पैड रही दिल्ली उसकी सियासी जीत की भी पहली नगरी रही है। 2013 में पार्टी ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की। 2015 और 2020 के दिल्ली चुनावों में भी आप ने शानदार जीत हासिल की है। आप की प्रचंड जीत ने बीजेपी को भी सिंगल डिजिट तक सीमित कर दिया। वोट शेयर के आंकड़े बताते हैं कि आप की यह प्रचंड जीत कांग्रेस को रौंदकर हुई है। दिल्ली में 2013 के बाद से बीजेपी का सबसे कम वोट शेयर 32.2% है, जो उसके पिछले वोट शेयर 35.2% से बहुत ज्यादा कम नहीं है लेकिन, दिल्ली में कांग्रेस का वोट शेयर 2013 के बाद से लगातार गिरता जा रहा है। 2013 से पहले दिल्ली में कांग्रेस का सबसे कम वोट शेयर 34.5% था, जो 2020 तक घटकर महज 4.3% रह गया।
पंजाब में भी आप ने कांग्रेस को कुचला:
पिछले साल पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों में भी आप ने बड़ी जीत हासिल की और पहली बार राज्य में अपनी सरकार बनाई। हालांकि, उसकी जीत दिल्ली जैसी प्रचंड जीत नहीं रही। कांग्रेस ने 59 सीटें गंवाते हुए 22.98 फीसदी वोट हासिल किए जबकि आप ने पांच साल पहले के मुकाबले 72 सीटें अधिक जीतते हुए (कुल 92 पर जीत) 42.01 फीसदी वोट प्राप्त किए। 2017 में जब पंजाब चुनाव हुआ था तब कांग्रेस ने लगभग दो-तिहाई बहुमत हासिल किया था, जो राज्य में सबसे ज्यादा है। उस वक्त आप ने पहली बार पंजाब में राज्य का चुनाव लड़ा था और 20 सीटें जीती थीं। हालांकि, पिछले साल आप के जीतने के बाद भी कांग्रेस दिल्ली की तरह पंजाब में तीसरे स्थान पर नहीं रही। कांग्रेस की 15.4% सीट की हिस्सेदारी अन्य सभी पार्टियों की 6% की संयुक्त सीट हिस्सेदारी से बहुत अधिक रही।
बावजूद इसके यह सच है कि आप ने पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) और बीजेपी को जितना नुकसान पहुंचाया है, उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचा है। पिछले साल आप ने जिन 92 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की है, उनमें कांग्रेस 44 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है। अकाली दल को 37, भाजपा को छह, अकाली दल के नए गुटों को तीन और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस (पीएलसी) को एक सीट मिली थी। इससे साफ होता है कि पंजाब में सत्ता विरोधी लहर का प्राथमिक लाभार्थी आप ही थी न कि दूसरे विपक्षी दल।
गुजरात में आप की वजह से कांग्रेस पिछड़ी:
आप ने गुजरात में भी कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजाई है। 2022 के गुजरात विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 52 फीसदी वोट शेयर हासिल किए, जबकि 2017 के मुकाबले 56 सीटें ज्यादा जीतीं। कांग्रेस को 2017 के मुकाबले 60 सीटों का नुकसान हुआ जबकि वोट शेयर में 14 फीसदी की गिरावट रही। आप ने पांच सीटें जीतीं और 13 फीसदी वोट बैंक पर कब्जा किया। आप के वोट शेयर से साफ है कि जितना वोट शेयर कांग्रेस का कमा है, उतना आप को मिला है। इसका मतलब साफ है कि आप ने राज्य में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है। वोट शेयर में गिरावट ने सीटों पर जीत को भी प्रभावित किया है।
कांग्रेस के लिए चुनौती है आप, कैसे दें साथ:
चुनावी आंकड़ों और तथ्यों से स्पष्ट है कि आप ने कांग्रेस को पंजाब और गुजरात में गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है, जहां वह हावी थी। इसके अलावा आप अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी कांग्रेस को कमजोर कर खुद दूसरे नंबर की पार्टी बनने की कोशिश कर रही है। ऐसे में यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है कि कांग्रेस नेता क्यों नहीं आप को समर्थन देना चाह रहे हैं या उससे गठबंधन करना चाह रहे हैं। पार्टी नेताओं को ये भी अंदेशा है कि अगर आप का साथ दिया तो भाजपा के प्रति मतदाताओं की लामबंदी और उग्र तरीके से हो सकती है।