नीतीश कुमार की कमजोरी बता गए उपेंद्र कुशवाहा, पीके से RCP तक करीबी बने पर उत्तराधिकारी नहीं
कुशवाहा ने नीतीश पर भले ही तंज कसा है, लेकिन उन्होंने इस बहाने सच्चाई भी उजागर कर दी है। प्रशांत किशोर से लेकर आरसीपी सिंह तक नीतीश कुमार के कई करीबी हुए हैं, लेकिन कोई उत्तराधिकारी नहीं बन सका।
जेडीयू के संसदीय बोर्ड अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। नीतीश कुमार को जमकर कोसते हुए कुशवाहा ने इस दौरान एमएलसी का पद भी छोड़ने का ऐलान किया। इसके साथ ही उन्होंने नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल के गठन का भी ऐलान कर दिया। उपेंद्र कुशवाहा ने इस दौरान नीतीश कुमार पर तीखे तंज भी कसे और तेजस्वी यादव को 2025 के लिए फेस बनाए जाने के ऐलान पर भी निशाना साधा। उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि नीतीश कुमार की हालत को इससे समझा जा सकता है कि उन्हें जेडीयू में अपना उत्तराधिकारी तक नहीं मिला। एक उत्तराधिकारी के लिए वह पड़ोसी के घर में देख रहे हैं।
भले ही उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार पर तंज के तौर पर यह बात कही, लेकिन वह सच्चाई भी उजागर कर गए। दरअसल नीतीश कुमार की यह कमजोरी ही मानी जाती है कि वह पार्टी के फेस तो हैं, लेकिन उनके बाद कोई नेता नजर नहीं आता। नीतीश कुमार के पीछे एक लंबी कतार दिखती है, लेकिन उनके बाद कौन चेहरा हो सकता है, इस बारे में कभी कुछ स्पष्ट नहीं रहा। जॉर्ज फर्नांडीज और शरद यादव जैसे नेताओं को किनारे कर जेडीयू में छाए नीतीश कुमार के करीब तो बहुत लोग आए, पर उत्तराधिकारी की हैसियत नहीं बना सके। पवन वर्मा, आरसीपी सिंह से लेकर प्रशांत किशोर तक यही स्थिति दिखती है।
आरसीपी सिंह अध्यक्ष तक बने, फिर अचानक निकले बाहर
फिलहाल उन्होंने राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को अध्यक्ष बना रखा है। हालांकि उनका कद कभी नीतीश की छत्रछाया से नहीं माना गया। ऐसे में नीतीश कुमार की विरासत को वह कितना संभाल पाएंगे और क्या नीतीश आखिरी तक उन पर भरोसा बनाए रखेंगे, इसमें संदेह है। आरसीपी सिंह की ही बात करें तौ नीतीश कुमार ने उन्हें दिसंबर 2020 में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही बना दिया था। राज्यसभा की सांसदी भी दी और फिर केंद्र में मंत्री भी बने। हालांकि दो साल के भीतर ऐसे मतभेद पैदा हुए कि आरसीपी सिंह पार्टी से ही बाहर हो गए।
पवन वर्मा और पीके का भी हुआ यही हाल, अब बेहद खराब रिश्ते
कुछ ऐसा ही हाल पवन वर्मा का भी रहा, जो एक समय नीतीश के बेहद करीबी थे और राज्यसभा पहुंचाए गए। लेकिन वह भी टीएमसी में चले गए थे और वापस लौटे भी तो वह हैसियत नहीं रही। प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने चुनावी रणनीतिकार से अचानक पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया था। तब चर्चाएं चलीं कि वह जेडीयू में नंबर दो के नेता हो गए हैं। नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी हो सकते हैं, ऐसे कयास भी लगे थे। पर पीके की कहानी भी कुछ अलग नहीं रही और आज वह अलग होकर जन सुराज अभियान चला रहे हैं। शायद ही ऐसा कोई दिन जाता है, जब वह नीतीश कुमार पर हमले न बोलते हों।
कहां सिमटेंगे नीतीश कुमार, अब कुर्मी वोटबैंक में भी सेंध
नीतीश कुमार 2005 के बाद से लगातार कमजोर होते जा रहे हैं। अपने चेहरे और सुशासन बाबू वाली छवि के दम पर वह सीएम पद पर बने रहे हैं, लेकिन असल में सीटें लगातार घटी हैं। अब उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़कर अलग पार्टी बनाई है। यहां तक कि भाजपा के साथ जाने के भी संकेत दिए हैं। वह उसी कुर्मी बिरादरी से आते हैं, जिससे नीतीश कुमार हैं। यादव वोटबैंक के बाद कुर्मी बिरादरी बिहार में दूसरी सबसे ताकतवर ओबीसी जाति है। ऐसे में नीतीश कुमार के आगे अपने बेस वोट के भी कमजोर पड़ने का खतरा मंडरा रहा है।
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