Hindi Newsदेश न्यूज़up assembly election 2022 equations these 86 seats important for mayawati bsp and bjp yogi adityanath - India Hindi News

UP चुनाव में कैसी रहेगी हाथी की चाल और कितनी रहेगी भाजपा की चमक, तय कर देंगी ये 86 सीटें

उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में भाजपा की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और अमित शाह समेत कई योद्धा उतर चुके हैं। वहीं मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का अभियान अखिलेश यादव शुरू कर चुके हैं।...

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान , लखनऊ नई दिल्लीThu, 23 Dec 2021 11:19 AM
share Share

उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में भाजपा की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और अमित शाह समेत कई योद्धा उतर चुके हैं। वहीं मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का अभियान अखिलेश यादव शुरू कर चुके हैं। चाचा शिवपाल यादव से गठजोड़ समेत कई फैसलों से अखिलेश ने अपनी मजबूत रणनीति का संकेत दिया है। लेकिन इसके विपरीत राज्य की पहली और एकमात्र दलित महिला मुख्यमंत्री मायावती कमजोर नजर आ रही हैं। अब तक न तो मायावती न प्रचार अभियान शुरू किया है और न ही किसी अहम मुद्दे को लेकर वह बीते 5 सालों में सड़क पर उतरी दिखी हैं। ऐसे में बसपा की चुनावी माया कितनी कारगर होगी, इस पर राजनीतिक जानकारों को भी संदेह है।

आरक्षित सीटों पर बसपा, सपा से आगे निकलती दिख रही भाजपा

खासतौर पर रिजर्व सीटों पर भी बसपा का बुरा हाल चिंता बढ़ाने वाला है। राज्य में 86 आरक्षित सीटें हैं, जिनमें से 84 सीटों पर दलित समुदायों को रिजर्वेशन है, जबकि 2 सीटें आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित हैं। आमतौर पर बसपा की इन सीटों पर मजबूत दावेदारी मानी जाती रही है, लेकिन भाजपा के उभार के बाद से गणित बदल गया है। 2017 के विधानसभा चुनाव में इन 86 सीटों में से 70 पर भाजपा जीती थी, जबकि 5 अन्य सीटें उसकी सहयोगी पार्टी रहीं अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के खाते में गई थीं। बसपा को सिधौली और लालगंज की दो ही सीटें मिल पाई थीं। शायद यही वजह है कि इन सीटों को लेकर रणनीति बनाने के लिए पिछले दिनों मायावती ने एक मीटिंग भी बुलााई थी। यहां तक कि सपा को भी SC आरक्षण वाली 7  सीटों पर जीत मिली थी।

भाजपा ने रिजर्व सीटों पर किया था कमाल 

भाजपा ने आरक्षित सीटों पर कितनी बड़ी सफलता पाई थी, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 2012 में उसे सिर्फ 3 सीटें ही मिली थीं। यही नहीं चौंकाने वाली बात यह भी रही कि आधी रिजर्व सीटों पर बसपा दूसरे नंबर की पार्टी भी नहीं थी। पहली बार बसपा ने जब 1989 में चुनाव लड़ा था तो उसे 5 सीटें मिली थीं। इस तरह अपने चुनावी इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन बसपा ने किया था। इसके अलावा सपा भी 1991 के बाद अपने सबसे खराब प्रदर्शन से गुजरी। तब सपा को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी। बीते चुनाव के इन समीकरणों से साफ है कि यदि रिजर्व सीटों पर पिछली बार की तरह ही बसपा का प्रदर्शन रहा तो उसके लिए हालात चिंताजनक होंगे।

cm yogi adityanath  pm narendra modi

2007 में बसपा को मिली थीं सबसे ज्यादा 62 आरक्षित सीटें

बसपा ने 2007 में  62 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल कर सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था और सत्ता भी बहुमत से हासिल की थी। इससे पता चलता है कि आरक्षित सीटों का योगदान बसपा की सफलता में कितना अधिक रहता है। हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2017 में रिजर्व सीटों पर हार का यह अर्थ नहीं है कि बसपा को दलितों का वोट अब नहीं मिल रहा। पिछली बार भले ही बसपा को 19 सीटें मिली थीं, लेकिन वोट प्रतिशत उसका 22 फीसदी से ज्यादा था। लेकिन रिजर्व सीटों पर ही न जीत पाना एक संदेश भी है और चुनौती भी। ऐसे में इस बार देखना होगा कि इन 86 सीटों के लिए बसपा क्या रणनीति अपनाती है। 

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेख