आसाराम के बेटे नारायण साई को लगा बड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने 2 हफ्ते की फरलो पर लगाई रोक
जेल की सजा काट रहे आसाराम के बेटे नारायण साई को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम के बेटे नारायण साई को दो हफ्तों का फरलो (फर्लो) देने के गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा...
जेल की सजा काट रहे आसाराम के बेटे नारायण साई को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम के बेटे नारायण साई को दो हफ्तों का फरलो (फर्लो) देने के गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। साथ ही कोर्ट ने नारायण साई को नोटिस जारी किया है। बता दें कि नारायण साई बलात्कार के एक मामले में दोषी है और वह आजीवन उम्रकैद की सजा काट रहा है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, गुजरात हाईकोर्ट की एकल पीठ के आदेश को चुनौती देने वाली गुजरात सरकार की याचिका पर न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने नारायण साईं को नोटिस जारी किया। अब शीर्ष अदालत इस मामले की आगे की सुनवाई दो सप्ताह बाद करेगी। बता दें कि 24 जून को गुजरात हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने नारायण साई को फरलो दे दी थी।
इससे पहले दिसंबर 2020 में नारायण साई को उच्च न्यायालय द्वारा मां के खराब स्वास्थ्य के कारण छुट्टी दे दी गई थी। 26 अप्रैल, 2019 को, नारायण साई को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (हमला), 506-2 (आपराधिक धमकी) और 120-बी (साजिश) के तहत सूरत की एक अदालत ने दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
किस मामले में नारायण साई को मिली है सजा
नारायण साई के खिलाफ सूरत की एक युवती ने 6 अक्टूबर 2013 को जहांगीरपुरा थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया था कि जब वह आसाराम की साधिका थी, तभी 2002 से 2005 के बीच साई ने उसके साथ यहां स्थित आश्रम में उससे कई बार दुष्कर्म किया था। पीडि़ता की बड़ी बहन ने भी उसी दिन आसाराम के खिलाफ भी ऐसा ही आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। उसका कहना था कि आसाराम ने वर्ष 1997 से 2006 के बीच अहमदाबाद के मोटेरा आश्रम में उससे दुष्कर्म किया था।
क्या है फरलो का मतलब
दरअसल, फरलो, पैरोल से थोड़ा अलग होता है। यहां फरलो का मतलब जेल से मिलने वाली छुट्टी से है। यह पारिवारिक, व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए दी जाती है। एक साल में कैदी तीन बार फरलो ले सकता है। मगर इसकी कुल अवधि 7 सप्ताह से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।