Supreme Court says Eyewitness Can not Narrate Blow by blow Account like Screenplay - India Hindi News क्रूर हत्या का चश्मदीद हमले को स्क्रीनप्ले की तरह नहीं कर सकता बयां, SC ने क्यों कहा ऐसा, India Hindi News - Hindustan
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क्रूर हत्या का चश्मदीद हमले को स्क्रीनप्ले की तरह नहीं कर सकता बयां, SC ने क्यों कहा ऐसा

बेंच ने कहा, 'हम इससे संतुष्ट हैं कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान को नजरअंदाज कर दिया। साथ ही बरी करने के फैसले को लेकर बहुत मामूली विरोधाभासों का हवाला दिया गया।'

Niteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 20 Sep 2023 05:52 PM
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क्रूर हत्या का चश्मदीद हमले को स्क्रीनप्ले की तरह नहीं कर सकता बयां, SC ने क्यों कहा ऐसा

सुप्रीम कोर्ट ने किसी वीभत्स हत्या के चश्मदीद की गवाही को लेकर बुधवार को बड़ी टिप्पणी की। एससी ने कहा कि गवाह मृतक पर किए गए चाकू के वार का सिलसिलेवार ब्यौरा स्क्रीनप्ले की तरह नहीं दे सकता, क्योंकि दोषी की सजा को बरकरार रखने के लिए वह मेडिकल एक्सपर्ट की ओपिनियन के बजाय आंखों से देखे सबूतों पर भरोसा करता है। SC ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ रमेशजी ठाकोर की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें निचली अदालत के बरी करने के आदेश को पलट दिया गय था।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने गवाहों के बयान में अपीलकर्ता की ओर से बताई गई विसंगतियों को मामूली बताकर खारिज कर दिया। बेंच ने कहा, 'हम इससे संतुष्ट हैं कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान को नजरअंदाज कर दिया। साथ ही बरी करने के फैसले को लेकर बहुत मामूली विरोधाभासों का हवाला दिया गया। चोटों की संख्या में विरोधाभास अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक नहीं था। न ही इसे पूरी तरह से नकारा जा सकता है, क्योंकि शव परीक्षण सर्जन की राय में घातक चोटें बरामद चाकू के कारण नहीं हो सकती थीं।'

'चाकू और चोटों का मिलान नहीं हुआ मगर...'
अदालत ने कहा कि प्रत्यक्षदर्शी का बयान इससे मेल खा रहा था कि मृतक को ठाकोर ने चाकू मारा था। साथ ही इसमें कोई असंगतता नहीं थी। बेंच ने कहा, 'भले ही शव परीक्षण सर्जन की राय में चाकू और चोटों का मिलान नहीं हुआ हो मगर डॉक्टर के सबूत आंखोंदेखी साक्ष्य की जगह नहीं ले सकते। हालांकि, इस घटना के बाद की घटनाओं के साक्ष्य सुसंगत रहे हैं।' दरअसल, अपीलकर्ता ने शव परीक्षण सर्जन के बयान पर भरोसा जताया था। इसमें कहा गया था कि मृतक को जो चोटें लगीं, वो बरामद हथियार के कारण नहीं हो सकतीं।

अदालत ने दरबारा सिंह बनाम पंजाब राज्य (2012) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया। यहां भी मेडिकल एक्सपर्ट की राय से अधिक महत्व आंखोंदेखी साक्ष्य को दिया गया था। पीठ ने कहा कि हमें इस अपील के तहत फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला। गुरबचन सिंह बनाम सतपाल सिंह और अन्य (1990) के मामले में भी कुछ इसी तरह की स्थिति बनी थी। यहां भी माना गया कि संदेह के लाभ के आधार पर काल्पनिक संदेह पैदा नहीं होना चाहिए। इस तरह बेंच ने कहा कि दोषी को बच निकलने देना कानून के हिसाब से न्याय नहीं है।

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