SBI ने तोड़ा इलेक्टोरल बॉन्ड का गुमनामी वाला नियम, झूठा हलफनामा दिया; पूर्व वित्त सचिव का गंभीर आरोप
नई जानकारी के बीच पूर्व वित्त सचिव ने SBI पर नियमों के उल्लंघन का गंभीर आरोप लगाया है। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने शुक्रवार को कहा कि बैंक को इलेक्टोरल बॉन्ड नंबर रिकॉर्ड नहीं करना चाहिए था।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने खरीदे गए और भुनाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सभी डिटेल गुरुवार को चुनाव आयोग को सौंप दी। इसके बाद आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड के नए आंकड़े सार्वजनिक किए, जिनमें इनके अल्फान्यूमेरिक कोड भी शामिल हैं। इन अल्फान्यूमेरिक कोड से, चंदा प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों के साथ इलेक्टोरल बॉन्ड के खरीदारों का मिलान करने में मदद मिली है।
नई जानकारी के बीच पूर्व वित्त सचिव ने SBI पर नियमों के उल्लंघन का गंभीर आरोप लगाया है। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने शुक्रवार को कहा कि बैंक को इलेक्टोरल बॉन्ड नंबर रिकॉर्ड नहीं करना चाहिए था और ऐसा करके उसने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम, 2018 के तहत दानदाताओं से किए गए गोपनीयता के वादे का उल्लंघन किया है। उन्होंने यह भी बताया कि बैंक द्वारा दायर किया गया हलफनामा "बिल्कुल झूठा" था।
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए गर्ग ने कहा कि एसबीआई ने "पूरी तरह से गैरकानूनी और जिसकी उम्मीद नहीं थी वह" काम किया है। उन्होंने कहा कि डोनर्स (दानदाताओं) को बेचे गए और राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड के अल्फान्यूमेरिक कोड को रिकॉर्ड करके, बैंक ने उस योजना की मुख्य विशेषता पर ही प्रहार किया है। यह योजना 2018 में सरकार द्वारा गुमनाम राजनीतिक दान को सक्षम करने के लिए लाई गई थी।"
पूर्व वित्त सचिव अधिकारी ने कहा, “एसबीआई ने अपने पहले हलफनामे में कहा कि दानदाताओं और पार्टियों की जानकारी भौतिक रूप में दो साइलो में रखी गई है और इसके मिलान में तीन महीने लगेंगे। लेकिन बाद की घटनाओं से पता चला कि उन्होंने जानकारी को डिजिटली रिकॉर्ड किया था। उनके पहले हलफनामे से प्रतीत होता है कि वे लोकसभा चुनावों के बाद डेटा का खुलासा करना चाहते थे। उन्होंने बिल्कुल से झूठा हलफनामा क्यों दायर किया?"
गर्ग ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम चुनावों में इस्तेमाल होने वाले ब्लैक मनी को खत्म कर राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लाई गई थी। इसमें दानदाताओं के लिए गुमनामी की सुविधा थी। लेकिन यह "भारत के इतिहास में एक दुखद अध्याय" बन गया। बैंक ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुरुवार को चुनाव आयोग (ईसी) को सभी विवरण प्रदान किए थे। इसके साथ ही अदालत के आदेश पर, चुनाव आयोग ने गुरुवार शाम को अपनी वेबसाइट पर पूरा डेटा जारी कर दिया। बता दें कि कोर्ट ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था।
इससे पहले अदालत ने एसबीआई को 6 मार्च तक चुनाव आयोग को डेटा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था, लेकिन बैंक ने 4 मार्च को अदालत में जाकर ऐसा करने के लिए 30 जून तक का समय मांगा। यह तर्क दिया गया कि पार्टियों को मिलने वाले चंदे का मिलान करना एक "समय लेने वाली प्रक्रिया" है। हालांकि, अदालत ने याचिका खारिज कर दी और बैंक को 12 मार्च तक डेटा उपलब्ध कराने और चुनाव आयोग को 15 मार्च तक इसे प्रकाशित करने को कहा।
जिसके बाद भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार बृहस्पतिवार को इलेक्टोरल बॉन्ड के संबंध में अपने पास मौजूद सारी जानकारी निर्वाचन आयोग को उपलब्ध करा दी। उच्चतम न्यायालय ने 18 मार्च को एसबीआई को फटकार लगाते हुए उसे मनमाना रवैया न अपनाने और 21 मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड योजना से संबंधित सभी जानकारियों का ‘‘पूरी तरह खुलासा’’ करने को कहा था। न्यायालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित सभी जानकारियों का खुलासा करने का निर्देश दिया था, जिसमें विशिष्ट इलेक्टोरल बॉन्ड संख्याएं भी शामिल हैं।