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मल्लिकार्जुन खड़गे को चुभने लगे अध्यक्षी के ताज में लगे कांटे! पायलट और गहलोत के झगड़े में हैं तीन विकल्प

अब तक मल्लिकार्जुन खड़ने ने इस मसले पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सचिन पायलट ने अपनी मांग में सीधा उन्हें ही संबोधित किया है। ऐसे में उनके पास तीन ही विकल्प हैं, जिनसे वह निपट सकते हैं।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 3 Nov 2022 04:52 PM
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मल्लिकार्जुन खड़गे को चुभने लगे अध्यक्षी के ताज में लगे कांटे! पायलट और गहलोत के झगड़े में हैं तीन विकल्प

मल्लिकार्जुन खड़गे बीते महीने जब कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तो कहा गया था कि उन्हें कांटों भरा ताज मिला है। अध्यक्षी मिले एक महीना भी नहीं बीता है कि इस ताज के कांटे अब उन्हें चुभने लगे हैं। इसकी शुरुआत राजस्थान से हुई है, जहां एक बार फिर से सचिन पायलट कैंप ने सीएम बदलने की मांग तेज कर दी है। सचिन पायलट ने बुधवार को साफ कहा कि केसी वेणुगोपाल ने एक या दो दिन में बदलाव की बात कही थी, लेकिन अब तो महीना बीत गया है। वहीं पार्टी की गाइडलाइंस का हवाला देते हुए अशोक गहलोत ने उन्हें चुप रहने की नसीहत दे डाली। अब तक मल्लिकार्जुन खड़ने ने इस मसले पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सचिन पायलट ने अपनी मांग में सीधा उन्हें ही संबोधित किया है।

खड़गे के पास हैं तीन विकल्प, किस पर बढ़ेंगे आगे

ऐसे में सवाल उठता है कि अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खड़गे के पास राजस्थान के संकट से निपटने के लिए क्या विकल्प मौजूद हैं। फिलहाल मल्लिकार्जुन खड़गे के पास तीन विकल्प हैं। इनमें पहला तो यही है कि अशोक गहलोत पर दिसंबर तक चुप्पी साधे रहें। इसकी वजह यह है कि भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान पहुंचने वाली है और हिमाचल एवं गुजरात के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में किसी भी तरह से माहौल खराब करना इन राज्यों में कांग्रेस की संभावनाओं पर असर डाल सकता है। मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से अशोक गहलोत को जीवनदान और उनके करीबियों को माफी भी दी जा सकती है। 

फिर से विधायक दल मीटिंग बुला पाएंगे खड़गे?

हालांकि अशोक गहलोत को पूरी तरह से क्लीन चिट और वरदान देना फायदे का सौदा भी नहीं है। इसकी वजह यह है कि इससे हाईकमान के कमजोर होने का संदेश जाएगा। कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में माना जा रहा है कि अगले साल नवंबर में होने जा रहे चुनाव में अशोक गहलोत की लीडरशिप में भाजपा वापस नहीं लौटेगी। इस बीच खड़गे के पास दूसरा विकल्प है कि वह जयपुर में एक बार फिर से पर्यवेक्षक भेजें। इस कदम में भी खतरे और संभावनाएं दोनों हैं। यदि खड़गे इसमें फेल होते हैं तो उनकी अध्यक्ष के तौर पर बोहनी खराब होने का खतरा होगा। इसकी वजह यह है कि गहलोत के समर्थक आज भी पीछे हटने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। 

चन्नी जैसा प्रयोग करने का भी है विकल्प

तीसरा विकल्प यह है कि खड़गे कोशिश करें कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट कैंप के बीच समझौता हो जाए। अशोक गहलोत किसी भी कीमत पर सीएम पद अपने पास ही रखना चाहते हैं, जबकि पायलट भी उन्हें हटाने की मांग पर ही अड़ गए हैं। ऐसे में दोनों से इतर किसी को सीएम बनाया जा सकता है, जैसा पंजाब में चन्नी को लाकर किया गया था। लेकिन यहां फिर पंजाब जैसा रिस्क फैक्टर भी जुड़ जाएगा। यही वजह है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए राजस्थान का मसला आगे कुंआ और पीछे खाई जैसा हो गया है।

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