आनंद मोहन की रिहाई में क्या है नीतीश कुमार का 'ओबीसी प्लस' प्लान, बदलेंगे दशकों पुराने समीकरण
उनके बेस वोट बैंक में नरेंद्र मोदी के चेहरे के बदौलत भाजपा भी घुसपैठ कर चुकी है। इसके अलावा उनके खांटी लव-कुश समीकरण में से कुश यानी कि कुशवाहा को भी अलग करने के लिए भगवा पार्टी ने दांव चला है।

माफिया डॉन से राजनेता बने आनंद मोहन की रिहाई के बाद नीतीश कुमार आरोपों का तो सामना कर रही हे हैं, साथ ही उनके इस कदम में लोग उनकी सियासी दांव की भी चर्चा कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जनता दल युनाइ़ेट (JDU) नेता और बिहार के मुख्यमंत्री दशकों पुराने समीकरण को बदलने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि, इस बात में भी सच्चाई है कि जमीन पर उनके बेस वोट बैंक में नरेंद्र मोदी के चेहरे के बदौलत भाजपा भी घुसपैठ कर चुकी है। इसके अलावा उनके खांटी लव-कुश समीकरण में से कुश यानी कि कुशवाहा को भी अलग करने के लिए भगवा पार्टी ने दांव चला है।
बिहार के सियासी गलियारों में इन दिनों में इस बात की चर्चा है कि नीतीश कुमार कुशवाहा वोट के बिखरने की संभावना को देखते हुए उसकी भरपाई के लिए राजपूत वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं। आपको बता दें कि बिहार में दोनों ही जाति का आकार लगभग बराबर है।
बीते चुनाव के नतीजों बिहार में महागठबंधन के पास यादव, मुस्लिम, कोईरी, कुर्मी के अलावा ओबीसी और महादलित में शामिल जातियों के कुछ वर्गों का समर्थन प्राप्त है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव इस बात से जरूर वाकिफ होंगे कल्याणकारी योजनों और नरेंद्र मोदी के चेहरा के बल पर ओबीसी वोट में अब बीजेपी की मजबूत पैठ बन चुकी है। यही कारण है कि वह बिहार के करीब 6 फीसदी आबादी वाले राजपूत को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं। आनंद मोहन की रिहाई के लिए कानून में संसोधन को इसी दिशा में एक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि आनंद मोहन की रिहाई से बीजेपी के लिए राजपूत मतदाताओं का प्रेम प्रभावित होगा या नहीं। लेकिन राजपूत जाति बिहार की करीब 10 लोकसभा सीटों पर मायने रखती है। इन सीटों में आरा, बाढ़, मुंगेर, मोतिहारी, वैशाली, शिवहर, बांका, पूर्णिया और काराकाट शामिल हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के बा, भाजपा ने राज्य भर में राजपूत मतदाताओं के बीच अपने मजबूत समर्थन का सफलतापूर्वक विस्तार किया है। बिहार में अब राजपूत भाजपा के प्रमुख समर्थकों में माने जाते हैं। शायद यही एक वजह है कि बीजेपी को आनंद मोहन कि रिहाई को लेकरन नीतीश कुमार के द्वारा उठाए गए कदम की आलोचना करने में मुश्किल हो रही है।
आपको बता दें कि बिहार में नीतीश कुमार से अपनी राह अलग करने के बाद बीजेपी भी हाथ पर हथ धरे नहीं बौठी है। भगवा पार्टी भी कोईरी (कुशवाहा), पासवान, मल्लाह और मांझी जाति को साधने की तैयारी में है। सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर और उपेंद्र कुशवाहा को गले लगाकर बीजेपी ने इसके संकेत भी दिए हैं। इसके अलावा चिराग पासवान और बीजेपी भी एक-दूसरे के लगातार पसंद बने हुए हैं। केंद्र सरकार के द्वारा हाल ही में वाईआईपी के नेता मुकेश सहनी को वाई कैटेगरी की सुरक्षा दी गई है। वहीं, मांझी और अमित शाह की भी बैठक हो चुकी है।
ऐसे में नीतीश कुमार ओबीसी के अलावा सवर्ण जाति को एक प्लेटफार्म पर लाने में सफल होंगे या नहीं, यह चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे। लेकिन फिलहाल बिहार की राजनीति काफी रोचक होती जा रही है।
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