राणा सांगा के सिपाही बन बाबर से लड़े थे मेवाती मुसलमान, गांधी ने भी बताया था भारत की जान
मजहबी तौर पर भले ही ये मुसलमान हैं, लेकिन इनकी परंपराएं हिंदुओं से मिलती जुलती हैं। ये खुद को राजपूतों का वंशज मानते हैं और शादी-विवाह में हिंदुओं जैसे रीति-रिवाज मानते हैं। सगोत्रीय विवाह नहीं करते।
दिल्ली से महज 100 किलोमीटर की दूरी पर बसे हरियाणा के नूंह जिले में इन दिनों सांप्रदायिक हिंसा भड़की हुई है। मेव मुसलमानों की बहुलता वाले इस जिले का इतिहास भारत की आजादी और मुगल काल तक से जुड़ता है। लेकिन सांप्रदायिक तनाव के चलते यह इलाका इन दिनों गलत ढंग से चर्चा में है। सोशल मीडिया पर मेव मुसलमानों को लेकर भी तमाम बातें हो रही हैं, लेकिन बहुत कम लोग हैं, जिन्हें इनके बारे में सही जानकारी है। दरअसल मेव मुसलमानों का इतिहास थोड़ा अलग है। मजहबी तौर पर भले ही ये मुसलमान हैं, लेकिन इनकी परंपराएं हिंदुओं से मिलती जुलती हैं। ये खुद को राजपूतों का वंशज मानते हैं और शादी-विवाह में हिंदुओं जैसे रीति-रिवाज मानते हैं।
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यही वजह है कि 1947 में देश के बंटवारे के वक्त भी यहां दंगे नहीं हुए। यही नहीं इनका एक बड़ा वर्ग पाकिस्तान पलायन करना भी चाहता था, लेकिन महात्मा गांधी ने मेवात के घसेड़ा गांव का दौरा किया और उन्हें भारत में ही बने रहने के लिए समझाया। इसी की याद में मेवात के मेव मुसलमान हर साल 19 दिसंबर को मेवात दिवस मनाते हैं। मेव मुसलमान बताते हैं कि सांप्रदायिक हिंसा के माहौल में महात्मा गांधी घसेड़ा गांव आए थे और लोगों को अपनी पितृभूमि में बने रहने के लिए राजी किया। महात्मा गांधी ने कहा था कि आप लोग देश के रीढ़ की हड्डी हैं।
हर साल क्यों मनाते हैं मेवात दिवस, गांधी जी से कनेक्शन
मेव मुसलमान एक बड़ा वर्ग है, जो हरियाणा के अलावा राजस्थान और पश्चिम यूपी के भी बड़े इलाके में पाया जाता है। महात्मा गांधी के समझाने पर भारत में रहने वाले मेव मुसलमानों का एक वर्ग उनकी याद में ही मेवात दिवस मनाता है। आज हरियाणा देश के अमीर राज्यों में से एक है, लेकिन उसका मेव मुसलमान बहुल नूंह देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है। शिक्षा का कमजोर स्तर, स्वास्थ्य के बदतर हालात जैसी तमाम समस्याएं हैं, जिनके चलते यह जिला आज पिछड़ा हुआ है। मेव मुस्लिमों के बुजुर्ग बताते हैं कि हमने महात्मा गांधी जी से वादा किया था कि हम मर जाएंगे, लेकिन पाकिस्तान नहीं जाएंगे। नई पीढ़ी को यह इतिहास बताने के लिए ही हम हर साल मेवात दिवस का आयोजन करते हैं।
जब बाबर के खिलाफ डट गए थे मेव मुसलमान
मुगल आक्रांता बाबर से भी मेव मुसलमानों की सेना लड़ी थी। राणा सांगा से जंग में उतरे बाबर का मुकाबला 1 लाख सैनिकों वाली राजपूत सेना से हुआ था, जिसका नेतृत्व हिंदू राजा राणा सांगा कर रहे थे। उनकी सेना को मेवात के शासक हसन खान मेवाती ने भी समर्थन दिया था और जंग में उतरे थे। हालांकि उनकी कुर्बानी काम नहीं आई और खानवा का युद्ध जीतने में बाबर कामयाब रहा। यही नहीं मेव मुसलमानों ने आगे चलकर 1857 की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था। इस तरह मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से उनका जंग का इतिहास रहा है।