गांधी जयंती आज, क्या सुभाष चंद्र बोस के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के खिलाफ थे बापू?
बोस पत्र में लिखते हैं, 'मैं अगले साल फिर से पार्टी का अध्यक्ष बनूंगा या नहीं, इसे लेकर संदेह है। दरअसल कुछ लोग गांधी जी पर दबाव डाल रहे हैं कि किसी मुसलमान को पार्टी अध्यक्ष बनना चाहिए।'
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज जयंती है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजघाट पहुंचकर गांधी जी को श्रद्धांजलि दी। पीएम मोदी के अलावा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, एलओपी राज्यसभा मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य नेताओं ने भी गांधी जी को श्रद्धांजलि दी। कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर इन दिनों खींचतान चल रही है। पार्टी चीफ के लिए इस तरह की गहमा-गहमी नई नहीं है। हम आपको वो किस्सा बता रहे हैं, जब कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर गांधी जी और सुभाषचंद्र बोस में ठन गई थी। क्या यह सच है कि बोस के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बापू खिलाफ थे?
जब कांग्रेस अध्यक्ष के लिए गांधी-बोस में ठनी
1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस पार्टी अध्यक्ष चुने गए। कहा जाता है कि बतौर अध्यक्ष बोस ने शानदार प्रयास किए और उनकी ऊर्जा से सभी हैरान रह गए। इसी दौरान कुछ मुद्दों पर महात्मा गांधी के साथ उनके मतभेद सामने आए। ये मतभेद सुलझ नहीं पाए।
बोस ने अपनी पत्नी एमिलि शेंकल को पत्र लिखा। इसमें वह लिखते हैं, 'मैं अगले साल फिर से पार्टी का अध्यक्ष बनूंगा या नहीं, इसे लेकर संदेह है। दरअसल कुछ लोग गांधी जी पर दबाव डाल रहे हैं कि किसी मुसलमान को पार्टी अध्यक्ष बनना चाहिए। गांधी जी भी ऐसा ही चाहते हैं। लेकिन अभी तक मेरी उनसे बात नहीं हुई है।'
अबुल कलाम आजाद थे गांधी की पहली पसंद
अबुल कलाम आजाद इस पद के लिए महात्मा गांधी की पहली पसंद माने जा रहे थे। लेकिन, कलाम ने इसके लिए मना कर दिया। इसके बाद गांधी ने पट्टाभि सीतारमैया को उम्मीदवार बनाया। 29 जनवरी 1939 को त्रिपुरी में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ। बोस जीत गए, उन्हें 1580 वोट मिले जबकि सीतारमैया को 1377 वोट। कह सकते हैं कि गांधी जी और पटेल के पूरा जोर लगाने के बाद भी सीतारमैया की हार हुई।
गांधी जी ने सार्वजनिक तौर पर इसे अपनी हार मानी और कांग्रेस वर्किंग कमेटी से अलग हो गए। कुछ समय बाद पटेल और अन्य कई सदस्यों ने भी कार्य समिति से इस्तीफा दे दिया। अब सुभाष के लिए अपने पद पर बने रहना मुश्किल हो गया। आखिरकार, अप्रैल 1939 में अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति की कलकत्ता बैठक में बोस ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह राजेंद्र प्रसाद को पार्टी चीफ नियुक्त किया गया।
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