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'टाइम पास होते हैं लिव-इन रिलेशनशिप', HC ने क्यों खारिज कर दी प्रेमी जोड़े की पुलिस सुरक्षा की याचिका

Live-in relationship: खंडपीठ ने कहा कि इस जोड़े का प्यार बिना किसी ईमानदारी के विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण मात्र है। जिंदगी गुलाबों की सेज नहीं है बल्कि यह हर जोड़े को कठिन परिस्थितियों में परखता है।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 23 Oct 2023 05:57 PM
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'टाइम पास होते हैं लिव-इन रिलेशनशिप', HC ने क्यों खारिज कर दी प्रेमी जोड़े की पुलिस सुरक्षा की याचिका

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप मुख्य रूप से "टाइम पास" होते हैं। हाल ही में लिव-इन पार्टनरशिप में रह रहे एक अंतर धार्मिक जोड़े की पुलिस सुरक्षा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे रिलेशनशिप में स्थिरता और ईमानदारी की कमी होती है। हाई कोर्ट ने इसी टिप्पणी के साथ पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाले एक लिव-इन जोड़े की याचिका खारिज कर दी। 

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की पीठ ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया है, लेकिन 20-22 साल की उम्र में सिर्फ दो महीने की अवधि में, हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि यह जोड़ा एक साथ रहने में सक्षम होगा हालाँकि वे अपने इस प्रकार के अस्थायी रिश्ते को लेकर गंभीर हैं।"

खंडपीठ ने कहा कि इस जोड़े का प्यार बिना किसी ईमानदारी के विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण मात्र है। जिंदगी गुलाबों की सेज नहीं है बल्कि जिंदगी यह हर जोड़े को कठिन से कठिन परिस्थितियों और वास्तविकताओं की ज़मीन पर परखता है। जजों ने कहा, "हमारे अनुभव से पता चलता है कि इस प्रकार के संबंध अक्सर टाइमपास, अस्थायी और नाजुक होते हैं और इस तरह, हम जांच के चरण के दौरान याचिकाकर्ता को कोई सुरक्षा देने से बच रहे हैं।"

बता दें कि हाई कोर्ट एक हिंदू महिला और एक मुस्लिम पुरुष की संयुक्त याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत अपहरण के अपराध का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। आरोपी मुस्लिम युवक के खिलाफ शिकायत युवती की चाची ने दर्ज कराई थी। इसके खिलाफ इस जोड़े ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। इसके अलावा उन्होंने अपने लिव-इन रिलेशनशिप को जारी रखने का फैसला किया था।

याचिकाकर्ता युवती के वकील ने दलील दी कि उसकी उम्र 20 साल से अधिक है, उसे अपना भविष्य तय करने का पूरा अधिकार है और उसने आरोपी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चुना है। इसके जवाब में विरोधी पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि उसका लिव-इन पार्टनर पहले से ही उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के तहत दर्ज एक मुकदमे का सामना कर रहा है। विरोधी पक्ष ने कोर्ट में यह तर्क भी दिया कि आरोपी एक "रोड-रोमियो" और आवारा व्यक्ति है जिसका कोई भविष्य नहीं है और निश्चित रूप से, वह लड़की का जीवन बर्बाद कर देगा।

दोनों पक्षों की दलीलों और तर्कों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर अपनी आपत्ति जताई और कहा कि अदालती रुख को न तो याचिकाकर्ताओं के रिश्ते के फैसले या समर्थन के रूप में गलत समझा जाना चाहिए और न ही कानून के अनुसार की गई किसी भी कानूनी कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा के रूप में उसे लिया जाना चाहिए।

जजों ने अपने फैसले में लिखा, "न्यायालय का मानना ​​है कि इस प्रकार के रिश्ते में स्थिरता और ईमानदारी की बजाय मोह अधिक है। जब तक जोड़े शादी करने का फैसला नहीं करते हैं और अपने रिश्ते को नाम नहीं देते हैं या वे एक-दूसरे के प्रति ईमानदार नहीं होते हैं, तब तक अदालत इस प्रकार के रिश्ते पर कोई राय व्यक्त करने से बचती है।" इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता की पुलिस सुरक्षा की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी।

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