हम ना भूलेंगे, ना माफ करेंगे.... 26/11 हमले की याद में गमगीन इजराइल, दूत ने भेजा संदेश
2008 में, लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के 10 आतंकवादियों ने 12 जगहों पर गोलीबारी और बमबारी हमलों को अंजाम दिया था जिसमें कम से कम 166 लोग मारे गए और 300 अन्य घायल हो गए।
भारत में इजराइल के राजदूत नाओर गिलोन ने एक वीडियो संदेश में कहा कि इजराइल 26/11 के मुंबई आतंकी हमलों के खिलाफ भारत के साथ खड़ा है। उन्होंने कहा कि इजराइल "कभी नहीं भूलेगा और ना ही कभी माफ करेगा। आज, हम भारत और दुनिया के सबसे व्यस्त शहरों में से एक, मुंबई के केंद्र में भयानक आतंकवादी हमलों के 14 साल को याद कर रहे हैं। इजराइल आतंक के खिलाफ भारत के साथ खड़ा है। यह केवल इसलिए नहीं है क्योंकि वहां इजराइली भी मारे गए थे, बल्कि इसलिए है क्योंकि हम दोनों उस हमले के पीड़ित थे और वर्षों से चल रहे आतंक के शिकार हुए।"
उन्होंने आगे कहा, "आतंकवाद का मुकाबला करने का एकमात्र तरीका एक साथ एकजुट होना है। हम कभी नहीं भूलेंगे, हम कभी माफ नहीं करेंगे। दोनों देश आतंकवाद के शिकार हैं। हम सराहना करते हैं कि भारत ने आतंक और आतंक के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए दो अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किए। ना भूले हैं और ना भूलेंगे। साथ हम खड़े हैं।" उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई में विभिन्न स्थान पर हुए आतंकवादी हमलों में 166 लोगों की मौत हो गई थी।
2008 में, लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के 10 आतंकवादियों ने 12 जगहों पर गोलीबारी और बमबारी हमलों को अंजाम दिया था जिसमें कम से कम 166 लोग मारे गए और 300 अन्य घायल हो गए। मुंबई में चबाड लुबाविच यहूदी केंद्र नरीमन हाउस पर दो हमलावरों ने कब्जा कर लिया था और कई निवासियों को बंधक बना लिया। इस जगह को चबाड हाउस के नाम से भी जाना जाता है।
मुझपर जो गुजरी है, वह किसी पर न गुजरे: मोशे होल्ट्जबर्ग
साल 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों में अपने माता-पिता को खोने वाले इजराइली व्यक्ति मोशे होल्ट्जबर्ग ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आतंकवाद से निपटने के रास्ते तलाशने का अनुरोध किया है ताकि “उनपर जो गुजरी है, वह किसी पर न गुजरे।” 26/11 हमलों के समय दो साल के रहे मोशे अब 16 वर्ष के हो चुके हैं। वह हमले में बचे सबसे युवा व्यक्ति हैं।
हमले के दौरान वह और उनकी भारतीय आया सैंड्रा मुंबई में नरीमन हाउस में घिर गए थे, जिसे चाबाड़ हाउस के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान मोशे को सीने से लगाए हुए सैंड्रा की तस्वीर ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था। पाकिस्तान में स्थित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों के इन हमलों में मोशे के पिता रब्बी गैब्रिएल होल्ट्जबर्ग और रिवका होल्ट्जबर्ग की मौत हो गई थी। मोशे के माता-पिता मुंबई में चाबाड़ आंदोलन के दूत थे।
परिवार ने बृहस्पतिवार को हिब्रू कैलेंडर के अनुसार यरूशलम में एक कब्रिस्तान में अपने प्रियजन की याद में प्रार्थना की। मोशे के परिवार ने हाल ही में एक रिकॉर्डेड संदेश ‘पीटीआई-भाषा’ को साझा किया, जिसमें मोशे को अपनी आया सैंड्रा के साहस के बारे में बताते हुए सुना जा सकता है, जिसकी वजह से वह जिंदा बच पाए। मोशे ने कहा कि उनकी जान बचाने के लिए उसने खुद अपनी जान जोखिम में डाल दी। संदेश के अंत में मोशे ने विनम्र अपील की कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कदम उठाने चाहिए ताकि “उनपर जो गुजरी है, वह किसी पर न गुजरे।”
अच्छाई की रोशनी है आतंक के अंधेरे का जवाब : मुंबई आतंकी हमला में बचे मोशे के चाचा ने कहा
मुंबई आतंकी हमले में अपने माता-पिता को खोने वाला बालक मोशे के चाचा मोशे हॉल्जबर्ग ने कहा है कि अच्छाई और दया की रोशनी ही आतंक के अंधेरे का जवाब है। उन्होंने कहा कि शहर में हुए 26/11आतंकी हमले के 14 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन होल्ट्जबर्ग परिवार प्यार और दया के अपने मिशन के जरिए कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है।
बेबी मोशे 26 नवंबर, 2008 को आतंकी हमले के समय दो साल का था और उसे उनकी भारतीय आया सैंड्रा सैमुअल ने बचाया था। यहां के नरीमन हाउस में यहूदी केंद्र चबाड हाउस में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किए गए हमले में मोशे के पिता गैवरिएल हॉल्जबर्ग और मां रिवका सहित छह लोगों की मौत हो गई थी। उस भीषण त्रासदी के बीच जीवन के प्रतीक के रूप में देखा जाने वाला बालक मोशे अब 16 साल का हो गया है और इजराइली शहर औफला के एक स्कूल में पढ़ रहा है। वह अपने दादा-दादी और नाना-नानी के साथ रहता है।
मोशे के चाचा मोशे हॉल्जबर्ग अमेरिका में रहते हैं। उन्होंने शुक्रवार को सोशल मीडिया के जरिए पीटीआई से बातचीत की। उन्होंने उस समय को याद किया जब वे बालक मोशे के साथ नरीमन हाउस और कोलाबा बाजार में रहते थे। उन्होंने कहा, "हम उसे (मोशे को) एकता के प्रतीक के तौर पर देखते हैं और प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उसे अपने माता-पिता के मिशन को आगे बढ़ाने की शक्ति दे।"