समलैंगिकता पर सरकार जल्द करेगी जवाब दाखिल, रोहतगी ने कहा- मानवाधिकार का उल्लंघन है 377
समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार जल्द ही इस बारे में अपना जवाब दाखिल करेगी। उधर, इस मामले में एक याचिकाकर्ता की...
समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार जल्द ही इस बारे में अपना जवाब दाखिल करेगी। उधर, इस मामले में एक याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी कर रहे पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाले आईपीसी की धारा 377 को मानवाधिकार का उल्लंघन करार दिया है।
मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह असंवैधानिक नैतिकता बनाम अन्य का है। इस केस में बड़ी जटिलताएं हैं। उन्होंने कहा कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन और जेंडर दो अलग मुद्दे हैं। इन दोनों मुद्दों को मिलाकर नहीं देखा जाना चाहिए। सवाल पसंद का नहीं है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इन मामलों में गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन को बहस आगे बढ़ाने की अनुमति दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह देखेगा कि 2013 में दी गई उसकी व्यवस्था सही है या नहीं। शीर्ष कोर्ट ने सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया था।
आइये जानते हैं इससे संबंधित 10 खास बातें
1-पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ आईपीसी की धारा 377 को खत्म करने के लिए कई याचिकाओं पर सुनवाई की। सोमवार को अदालत ने केन्द्र की तरफ से इस मुद्दे पर जवाब देने के लिए मांगे गए और समय के साथ ही सुनवाई स्थगित करने की मांग को खारिज कर दिया था।
2-जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मुद्दे को बड़ी बेंच के पास ये कहते हुए भेज दिया था कि 'सामाजिक नैतिकता' समय के हिसाब से बदलती है। और एक के लिए जो नेचुरल है वह दूसरे के लिए नेचुरल नहीं हो सकता है।
3-कोर्ट ने कहा था कि किसी व्यक्तिगत पसंद पर भय नहीं रहना चाहिए। हालांकि, पीठ ने कहा था कि पसंद को कानून की सीमा लांघने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। लेकिन, इस ओर इशारा किया कि कानून किसी की संवैधानिक अधिकार या उसकी आजादी को नहीं कुचल सकता है।
4-मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खांडविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की पांच सदस्यीय पीठ पूरी मामले की समीक्षा करेगी।
5-भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के मुताबिक, जो भी अप्राकृति संबंध बनाता है उसे उम्रकैद या 10 साल की सजा और जुर्माना किया जा सकता है। हालांकि, इस धारा के तहत केस ना के बराबर रही है। एक्टिविस्ट का यह आरोप है कि पुलिस एलजीबीटी समुदाय के लोगों को धमकाती और परेशान करती है।
6-जुलाई 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने दो वयस्क समलैंगिकों के बीच गे सेक्स को अपराध नहीं माना था और धारा 377 के दायरे से बाहर कर दिया था।
7-लेकिन, दिसंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सुरक्षित रख लिया और कहा कि समलैंगिकता आपराधिक कृत्य है। इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने इस पर अंतिम फैसला संसद के ऊपर छोड़ दिया और कहा कि वे ही कानून को खत्म या उसमें बदलाव ला सकता है।
8-पिछले साल, अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना था। जिसके बाद एलजीबीटी समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई थी। उच्चतम अदालत ने कहा था कि धारा 377 के मामले में भी निजता का अधिकार लागू होता है।
9-हालांकि, जहां सरकार ने कोर्ट में एक तरफ जहां धारा 377 का समर्थन किया तो वहीं केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली ने कहा- जब दुनियाभर के करोड़ों लोग विपरित सेक्स को प्राथमिकता देते हैं, यह देखने में अब काफी देर हो चुकी है कि उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए।
10-सुप्रीम कोर्ट की तरफ से हाईकोर्ट के 2009 के उस फैसले जिसमें धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया गया था, उसको खारिज किए जाने के बाद इस मुद्दे पर समीक्षा के लिए कहा गया था।
ये भी पढ़ें: समलैंगिकों से जुड़ी याचिकाओं पर नहीं टली सुनवाई, आज से SC में हियरिंग