Himachal Election Result 2022: हिमाचल में बीजेपी को झटका, क्या अब देशभर में ओल्ड पेंशन देगी टेंशन?
Himachal Resul 2022: चुनाव प्रचार की शुरुआत से ही कांग्रेस ने ओपीएस को बड़ा मुद्दा बनाया और वादा किया कि राजस्थान व छत्तीसगढ़ की तरह सरकार बनने पर हिमाचल में भी इसे लागू किया जाएगा।
Himachal Result 2022: हिमाचल प्रदेश चुनाव के नतीजों से पहाड़ी राज्य का रिवाज बदलता नहीं दिखाई दे रहा। पिछले तीन दशकों से हर चुनाव के बाद सरकार के बदलने का ट्रेंड इस बार भी कायम है। हिमाचल चुनाव के दोपहर दो बजे तक के रुझानों में कांग्रेस ने बहुमत हासिल कर लिया, जबकि बीजेपी सिर्फ 25 सीटों पर ही आगे चल रही है। एमसीडी और गुजरात चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाली आम आदमी पार्टी के लिए पहाड़ी राज्य कोई खुशखबरी लेकर नहीं आया और सिर्फ एक पर्सेंट वोट से ही संतोष करना पड़ रहा। 2017 में हिमाचल प्रदेश में 44 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी के खिलाफ इस चुनाव में कई मुद्दे हावी रहे। ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) से लेकर बागी नेताओं तक ने बीजेपी को हिमाचल में बड़ी चोट पहुंचाई। चुनाव प्रचार की शुरुआत से ही कांग्रेस ने ओपीएस को बड़ा मुद्दा बनाया और वादा किया कि राजस्थान व छत्तीसगढ़ की तरह सरकार बनने पर हिमाचल में भी इसे लागू किया जाएगा। कांग्रेस अन्य राज्यों में भी ओल्ड पेंशन का मुद्दा जोर-शोर से उठाती रही है।
हिमाचल में पक्ष में आए नतीजों के बाद अब आगामी विधानसभा चुनावों और साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इसे बड़ा मुद्दा बना सकती है। यदि ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर बीजेपी के लिए राज्य से लेकर केंद्र के चुनाव में परेशानी का यह सबब बन सकता है। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी भी ओपीएस को लागू करने के पक्ष में रही है। पंजाब में सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पिछले दिनों ओल्ड पेंशन स्कीम को हरी झंडी देते हुए लाखों कर्मचारियों को खुशखबरी दी। इसके अलावा, गुजरात चुनाव के दौरान भी आप के तमाम वादों में ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली एक वादा रहा। गुजरात में तेज-तर्रार तरीके से चुनाव लड़ने वाली आप को इन तमाम वादों से फायदा भी मिला और लगभग दस फीसदी वोट भी हासिल करने की ओर है।
ओल्ड पेंशन पर बीजेपी का कैसा है रुख?
ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू किए जाने की मांग समय-समय पर उठती रही है। केंद्र और कई राज्यों में बीजेपी की सरकार होने के बाद भी पार्टी सीधे इस पर बोलने से बचती है। चूंकि, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओपीएस को लेकर लंबे समय से मांग रही है, तो ऐसे में माना जा रहा है कि शायद ही इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने के लिए केंद्र सरकार हामी दे। यदि देती है तो देश पर और आर्थिक बोझ पड़ सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी पहले से ही केजरीवाल के मुफ्त मॉडल के खिलाफ रही है। पीएम मोदी कई मंचों से रेवड़ी कल्चर पर कटाक्ष कर चुके हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हिमाचल में ओपीएस के नाम पर वोट पड़ने के बाद अब क्या बीजेपी के रुख में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिलता है और अपने शासित राज्यों में इसे लागू करती है या नहीं।
हिमाचल में ओपीएस ने हराया, अब बढ़ेगी बीजेपी की टेंशन!
हिमाचल प्रदेश में ओपीएस इसलिए भी बड़ा मुद्दा बना, क्योंकि राज्य में रिटायर्ड कर्मचारियों की संख्या काफी अधिक है। नई पेंशन स्कीम के तहत हिमाचल में करीब सवा लाख कर्मचारी आते हैं और उनके परिवारों को भी इसमें जोड़ लें, तो वोटर्स की संख्या बहुत अधिक हो जाती है। हर विधानसभा में लगभग तीन हजार वोट बनते हैं। हिमाचल में बड़े झटके के पीछे ओपीएस को भी माना जा रहा है। अगले साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है, उसमें सबसे पहले कर्नाटक है और फिर साल के अंत में तीन बड़े हिंदी राज्य- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है और दोनों ही जगह सरकारों ने ओल्ड पेंशन योजना को लागू कर रखा है। अब मध्य प्रदेश और अगले लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ओपीएस पर दांव खेलने से नहीं चूकेगी।
ओपीएस से सियासी लाभ, तो फिर बीजेपी दूर क्यों?
ओपीएस से सियासी फायदा मिलने के बावजूद बीजेपी के इससे दूर रहने की सबसे बड़ी वजह आर्थिक संकट बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि यदि केंद्र और राज्य सरकार ओपीएस को लागू करेगी तो उन्हें बड़ा आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। इसका सीधा असर केंद्र द्वारा चलाई जा रहीं जनता की मदद के लिए विभिन्न योजनाओं पर पड़ेगा। दरअसल, इसी साल की शुरुआत में आई स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया कि यदि सभी राज्य इसे लागू करते हैं तो फिर भविष्य की देनदारियां वर्तमान जीडीपी के 13% तक हो सकती है। इसका प्रभाव साल 2035 के बाद से महसूस किया जाएगा, जब वर्तमान सरकारी कर्मचारी रिटायर्ड होंगे। इसके अलावा भी बड़ी संख्या में अर्थशास्त्री ओपीएस का लागू होना देश की आर्थिक स्थिति के लिए बेहतर नहीं मानते हैं।