गांधी और आंबेडकर को लेकर गीता प्रेस पर क्यों लगते हैं आरोप, अब तक छापीं 93 करोड़ किताबें
अब तक 93 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें छाप चुके गीता प्रेस की शुरुआत गोरखपुर के एक घर से 10 रुपये के किराये से शुरू हुई थी। गीता प्रेस की शुरुआत 29 अप्रैल, 2023 को हुई थी, जिसके 100 साल पूरे हो गए हैं।

सनातन साहित्य के प्रकाशन के लिए दुनिया भर में लोकप्रिय गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार-2021 दिया गया है। इस सम्मान के मिलने के बाद गीता प्रेस एक बार फिर से चर्चा में है। अब तक 93 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें छाप चुके गीता प्रेस की शुरुआत गोरखपुर के एक घर से महज 10 रुपये के किराये से शुरू हुई थी। गीता प्रेस की शुरुआत 29 अप्रैल, 1923 को हुई थी। 100 साल के इतिहास में भारत का शायद ही ऐसा कोई सनातनी परिवार होगा, जिसके घर में गीता प्रेस से प्रकाशित कोई पुस्तक नहीं होगी। गोरखपुर के हिंदी बाजार इलाके में 2 लाख स्क्वेयर फुट में चलने वाले गीता प्रेस 15 भाषाओं में प्रकाशन करता है।
गीता प्रेस की मासिक पत्रिका कल्याण का भी पाठकों को इंतजार रहता है, जो आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र की श्रेष्ठ मैगजीन मानी जाती है। देश भर में 20 शाखाओं और नेपाल तक में ब्रांच चलाने वाले गीता प्रेस की रेलवे स्टेशनों पर भी खूब बिक्री होती है। गीता प्रेस से कुल ढाई हजार पुस्तक विक्रेता जुड़े हुए हैं, जो सिर्फ उसकी ही किताबें बेचते हैं। रामचरितमानस, सुंदरकांड, उपनिषद, पुराणों समेत तमाम ग्रंथों को अच्छे फॉन्ट और सरल भाषा में छापने वाले गीता प्रेस को आध्यात्मिक आंदोलन के तौर पर देखा जाता है।
'गीता प्रेस ऐंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया' शीर्षक से पुस्तक लिखने वाले अक्षय मुकुल कहते हैं कि इस प्रकाशन ने देश की नामी हस्तियों पर समय-समय में विशेषांक भी निकाले हैं। गीता प्रेस ने आरएसएस संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार, किंग जॉर्ज पंचम, मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, एमएस गोलवलकर और संपूर्णानंद जैसे नेताओं के निधन पर श्रद्धांजलि के लिए अंक निकाले थे। यही नहीं इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भी गीता प्रेस ने अपने तरीके से श्रद्धांजलि दी थी। अक्षय मुकुल कहते हैं कि सबसे खास और भावुक श्रद्धांजलि पंडित मदन मोहन मालवीय को दी गई थी। उन्हें लेकर विशेषांक प्रकाशित किया गया था।
'बीआर आंबेडकर पर गीता प्रेस ने कभी कुछ नहीं छापा'
महात्मा गांधी की शिक्षाओं और उनके सिद्धांतों को भी गीता प्रेस ने अपने प्रकाशन में जगह दी थी। अक्षय मुकुल कहते हैं, 'गीता प्रेस के प्रकाशन में कुछ विषयों को लेकर देरी या फिर नजरअंदाज करना भी दिखता है। महात्मा गांधी की हत्या को लेकर कुछ भी नहीं लिखा गया। हालांकि काफी समय बाद महात्मा गांधी के जीवन और उनकी शिक्षाओं को लेकर लिखा गया।' इसके अलावा बीआर आंबेडकर को लेकर भी गीता प्रेस ने कभी कुछ प्रकाशित नहीं किया। गीता प्रेस के मैनेजर ऐसी बातों को गलत बताते हुए कहते हैं कि महात्मा गांधी के साथ तो करीबी रिश्ता रहा है।
गीता प्रेस के मैनेजर बोले- महात्मा गांधी से था करीबी रिश्ता
उन्होंने कहा कि कल्याण में महात्मा गांधी के कई लेख छपे थे। वह कहते हैं कि गीता प्रेस में लीला चित्र मंदिर है, जहां भगवान राम, कृष्ण और भगवान शिव की कहानियों को दिखाया गया है। यहां पर महात्मा गांधी का चित्र भी लगाया गया है। तिवारी कहते हैं कि हमें राजनीतिक दलों और उनके बयानों से कोई मतलब नहीं है। हम किसी से कोई आर्थिक मदद भी नहीं लेते। इसीलिए सम्मान को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन साथ में मिली 1 करोड़ रुपये की राशि हमने ना लेने का फैसला लिया है।