चेहरे की कमी, जम्मू-कश्मीर में पतन; कैसे गुलाम नबी आजाद के एग्जिट से कांग्रेस को होगा दर्द
कोरोना काल में अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस की टॉप लीडरशिप में गुलाम नबी आजाद ही ऐसे नेता था, जो मुस्लिम समुदाय से आते थे। अब उनके निकलने के बाद कांग्रेस के पास सलमान खुर्शीद ही बचे हैं।
कांग्रेस से गुलाम नबी आजाद का एग्जिट बीते कई सालों से नेताओं के पार्टी छोड़ने के सिलसिले की एक और कड़ी भर दिखता है। लेकिन गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस के साथ 5 दशकों के करियर को देखें तो पता चलता है कि यह शायद अब तक का कांग्रेस का सबसे बड़ा नुकसान है। कैप्टन अमरिंदर सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और सुष्मिता देव समेत कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी है और उससे पार्टी राज्यों में कमजोर भी हुई है। लेकिन गुलाम नबी आजाद इस संकट के बीच सबसे बड़ी चोट पहुंचा सकते हैं। एक तरफ जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को इससे बड़ा नुकसान होगा तो वहीं देश भर की सेकुलर पॉलिटिक्स में भी उसके पास बड़े चेहरे का अभाव होगा। आइए जानते हैं, कैसे गुलाम नबी आजाद के जाने से कांग्रेस को होगा नुकसान...
जम्मू-कश्मीर की सियासत में कांग्रेस का क्या होगा
जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार की छाया में चल रही कांग्रेस के पास चेहरे के नाम पर गुलाम नबी आजाद ही थे। अब उनके जाने के बाद पार्टी को यहां बड़ा संकट झेलना होगा। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में हालात तेजी से बदले हैं। एक तरफ जम्मू में भाजपा बेहद मजबूत हुई है तो वहीं कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस का दबदबा है। ऐसे में गुलाम नबी आजाद ही थे, जो जम्मू कश्मीर में थोड़ी साख रखते थे। जम्मू से लेकर कश्मीर तक एक सेकुलर नेता के तौर पर उनकी इज्जत थी। वह अकेले ऐसे नेता हैं, जिनकी दोनों संभागों में पकड़ है। ऐसे में उनका अलग पार्टी बनाना और 90 सीटों पर लड़ना कांग्रेस का ही वोट काटने जैसा होगा। इससे पार्टी को गहरा दर्द होना तय है। यह अभी से दिख रहा है, जब करीब 70 नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं।
भारत जोड़ो यात्रा के बीच दिया फूट का संकेत
गुलाम नबी आजाद के एग्जिट की टाइमिंग को लेकर कांग्रेस के नेता सवाल उठा रहे हैं। इस पर गुलाम नबी आजाद का कहना है कि कांग्रेस के लोग टाइमिंग नहीं बल्कि पार्टी को सुधारने के लिए टाइम की बात करें। हालांकि यह भी सच है कि इस वक्त गुलाम नबी आजाद का पार्टी से निकलना कांग्रेस के लिए करारा झटका है। इसकी वजह यह है कि एक तरफ कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा निकालने की तैयारी में है तो दूसरी तरफ अध्यक्ष का चुनाव भी होना है। ऐसे मौके पर गुलाम नबी आजाद का एग्जिट और लगातार हमले करना परसेप्शन के मामले में कांग्रेस के मुश्किलें खड़ी करने वाला है।
सेक्युलर छवि वाले मुस्लिम नेता की कमी, चेहरे का भी अभाव
कोरोना काल में अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस की टॉप लीडरशिप में गुलाम नबी आजाद ही ऐसे नेता था, जो मुस्लिम समुदाय से आते थे। अब उनके निकलने के बाद कांग्रेस के पास सलमान खुर्शीद ही बचे हैं, लेकिन उनका अपने गृह राज्य यूपी तक में ज्यादा प्रभाव नहीं है। ऐसे में सेक्युलर इमेज के मुस्लिम नेता रहे गुलाम नबी आजाद की कमी कांग्रेस को जरूर खलेगी। गुलाम नबी आजाद वह नेता थे, जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान थी। इसके अलावा वह हिंदू समुदाय में भी समान रूप से लोकप्रिय रहे हैं और विवादों से भी हमेशा दूर रहे हैं।