सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, समलैंगिक संबंध अपराध नहीं, जानें कब-कब क्या हुआ-VIDEO
आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया है। समलैंगिकता के पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया...
आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया है। समलैंगिकता के पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। बताते चलें कि धारा 377 की संवैधानिक वैधता को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मामले में आज यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। फैसला आने के बाद आइए आपको बताते हैं इस मामले में अब तक कब-कब क्या अहम मोड़ आए...
-समलैंगिकता के अधिकार के लिए 2001 में नाज फाउंडेशन संस्था ने दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।
-हाई कोर्ट ने 2 सितंबर, 2004 में अर्जी खारिज कर दी थी।
-याचिकाकर्ताओं ने सितबंर, 2004 में रिव्यू पिटिशन दायर किया था।
-हाई कोर्ट ने 3 नवंबर, 2004 को रिव्यू पिटिशन भी खारिज कर दिया था।
-याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2004 में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
-सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल, 2006 हाई कोर्ट से इस मामले को दोबारा सुनने को कहा।
-केंद्र सरकार ने 18 सितंबर, 2008 को हाई कोर्ट से अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा।
-मामले में हाई कोर्ट ने 7 नवंबर, 2008 को फैसला सुरक्षित किया।
-दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 जुलाई, 2009 को आईपीसी की धारा 377 को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया।
-हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में फिर से चुनौती दी गई।
-इस मामले में 15 फरवरी, 2012 से रोजाना सुनवाई।
-रोजाना सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2012 में फैसला सुरक्षित किया।
-सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर, 2013 को हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध करार दिया।
-सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में रिव्यू पिटिशन खारिज कर दिया।
-एस जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, सेफ रितु डालमिया, होटल बिजनेसमैन अमन नाथ और आयशा कपूर ने 2016 में धारा 377 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
-अगस्त, 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'निजता के अधिकार' पर दिए गए फैसले में सेक्स-संबंधी झुकावों को मौलिक अधिकार माना और कहा कि किसी भी व्यक्ति का सेक्स संबंधी झुकाव उसके राइट टू प्राइवेसी का मूलभूत अंग है।
-6 सितंबर 2018- समलैंगिक संबंध अपराध नहीं