Delhi High Court observed no one has right on religious texts like Bhagavad Gita and Ramcharitmanas Copyright Act - India Hindi News भगवद्गीता और रामचरितमानस जैसे धर्म ग्रंथों पर किसी एक का अधिकार नहीं, हाई कोर्ट को क्यों कहना पड़ा ऐसा?, India Hindi News - Hindustan
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भगवद्गीता और रामचरितमानस जैसे धर्म ग्रंथों पर किसी एक का अधिकार नहीं, हाई कोर्ट को क्यों कहना पड़ा ऐसा?

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी भी धर्म ग्रंथ में वर्णित अंश पर किसी खास व्यक्ति, समुदाय या संस्था का अधिकार नहीं हो सकता है लेकिन उसी पर आधारित किसी वीडियो या नाटक पर कॉपीपाइट का दावा हो सकता है।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 26 Sep 2023 01:39 PM
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भगवद्गीता और रामचरितमानस जैसे धर्म ग्रंथों पर किसी एक का अधिकार नहीं, हाई कोर्ट को क्यों कहना पड़ा ऐसा?

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि कोई भी एक व्यक्ति या संस्था श्रीमद्भगवद गीता या भागवतम जैसे धार्मिक ग्रंथों पर कॉपीराइट का दावा नहीं कर सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि उन धर्म ग्रंथों के आधार पर बनाए गए नाटक या कोई अनुकूली कार्य पर कॉपीराइट का दावा किया जा सकता है।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि भगवद गीता या अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के पाठ के वास्तविक पुनरुत्पादन में कोई आपत्ति नहीं हो सकती है लेकिन कॉपीराइट कानून उन तरीकों पर लागू होगा, जिसे विभिन्न गुरुओं और आध्यात्मिक शिक्षकों द्वारा उनकी व्याख्या की जाती है और उसकी नकल करना कोई भी स्पष्टीकरण, अनुकूलन या नाटकीय कार्य कॉपीराइट संरक्षण का हकदार होगा।

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “आध्यात्मिक ग्रंथों पर किसी कॉपीराइट का दावा नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, उक्त कार्य का कोई भी रूपांतरण जिसमें स्पष्टीकरण, सारांश, अर्थ, व्याख्या/व्याख्या प्रदान करना या कोई ऑडियो-विज़ुअल बनाना शामिल है या धर्मग्रंथों आदि के आधार पर नाटक समितियों द्वारा बनाए गए नाटकीय कार्य, उदाहरण के लिए, रामानंद सागर की रामायण या बीआर चोपड़ा की महाभारत जैसी टेलीविजन सीरीज स्वयं लेखकों के मूल कार्य होने के नाते और परिवर्तनकारी कार्य होने के कारण कॉपीराइट संरक्षण के हकदार होंगे।"

अदालत ने ये टिप्पणियां भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट द्वारा दायर कॉपीराइट उल्लंघन के मुकदमे की सुनवाई के दौरान की। इस ट्रस्ट की स्थापना इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन) के संस्थापक श्रील प्रभुपाद ने की थी।अदालत को बताया गया कि प्रभुपाद एक प्रसिद्ध विद्वान, दार्शनिक और सांस्कृतिक राजदूत थे जिन्होंने भारत और विदेशों में विभिन्न हिंदू धर्मग्रंथों का संदेश फैलाया।

ट्रस्ट की ओर से अदालत को बताया गया कि प्रभुपाद ने धार्मिक ग्रंथों के आधार पर कई व्याख्यान दिए और किताबें प्रकाशित कीं जो कई भाषाओं में भक्तों द्वारा पढ़ी जाती हैं। ट्रस्ट ने कहा कि उनके कार्यों को सरलीकृत धार्मिक पुस्तकें और ग्रंथ कहा जाता है जिससे आम आदमी के लिए इसे समझना आसान हो गया। ट्रस्ट की तरफ से यह तर्क दिया गया कि इन सभी कार्यों का कॉपीराइट लेखक के पास है, जो 1977 में उनकी मृत्यु के बाद वादी-न्यास को हस्तांतरित कर दिया गया है।

शिकायतकर्ता ट्रस्ट ने उन चार वेबसाइटों, पांच मोबाइल एप्लिकेशन और चार इंस्टाग्राम हैंडल के खिलाफ निषेधाज्ञा आदेश की मांग की, जिन्होंने वादी के कॉपीराइट किए गए काम को अपलोड किया है । जस्टिस सिंह ने मामले पर विचार करने के बाद कहा कि वादी के काम का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ है और उसकी चोरी हुई है।

जस्टिस सिंह ने प्रतिवादियों के खिलाफ एक पक्षीय अंतरिम आदेश पारित करते हुए वादी के कॉपीराइट कार्यों का उल्लंघन रोकने का आदेश दिया। जस्टिस सिंह ने गूगल और मेटा को एप्लिकेशन और वेब पेज हटाने का भी आदेश दिया। कोर्ट ने  अधिकारियों को इन वेबसाइटों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया।