धारा 377 पर फैसला: निजता और सम्मान की जीत - रितु डालमिया
मैं जब छोटी थी तब नहीं जानती थी कि समलैंगिक क्या होता है? बहुत शर्मीली, संकोची, लेकिन विद्रोही स्वभाव की थी। पिता का मार्बल और ग्रेनाइट का व्यवसाय था। मैं वहीं काम करती थी, पर 23 की उम्र में मैंने वह...
मैं जब छोटी थी तब नहीं जानती थी कि समलैंगिक क्या होता है? बहुत शर्मीली, संकोची, लेकिन विद्रोही स्वभाव की थी। पिता का मार्बल और ग्रेनाइट का व्यवसाय था। मैं वहीं काम करती थी, पर 23 की उम्र में मैंने वह काम छोड़ कर अपना रेस्तरां शुरू किया। एक रुढ़िवादी मारवाड़ी परिवार से होने के बावजूद मैंने हमेशा अपने फैसले खुद किए। मुझे याद आता है कि मैं पापा के ब्रीफकेस को हाथ में उठाए घर में घूमती रहती थी। हालांकि कोई मुझे गंभीरता से नहीं लेता था, पर मैं अपनी खुद आजादी गढ़ रही थी।
अपने निजी और पेशेवर फैसलों को लेकर मुझे कभी संदेह नहीं रहा। महिलाओं के साथ मेरे हमेशा अच्छे रिश्ते रहे। यहां तक कि जब छोटी थी, तब भी मैं महिलाओं का अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करती थी। समलैंगिक होने का एहसास तब हुआ जब एक अन्य स्त्री के लिए मुझे प्रेम की अनुभूति हुई। मैं 23 साल की थी और उससे पहले कभी भी सोचा नहीं था, ‘क्या मुझे कोई दिक्कत होगी?’ मैं कभी डरी नहीं, इस एहसास से भी नहीं कि मैं कुछ अलग हूं। पर मेरी पार्टनर के साथ ऐसा नहीं था। वह लंबे समय तक इससे जूझती रही। ऐसा नहीं था कि प्रेम की कमी थी। बहुत लोग सामाजिक दबावों में दबे होते हैं, क्योंकि कहीं भीतर उन्हें लगता रहता है कि वे कुछ अलग कर रहे हैं और फिर कानून भी यही था।
कानून की नजर में मैं अपराधी थी, जो स्वीकार्य नहीं।
भारतीय दंड संहिता भी मेरे जैसे लोगों को ‘अप्राकृतिक अपराध’ का दोषी मानती थी। अंग्रेजों के बनाए कानून की धारा 377 के तहत हमारा जीवन नियंत्रित किया जा रहा था और हमें ‘किसी भी पुरुष, स्त्री या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबध’ के कारण सजा दी जा सकती थी। साफ साफ कहूं तो मैं बहुत कुछ हो सकती हूं, पर अपराधी नहीं और मैं कायर भी नहीं हूं। मैं एक प्रतिष्ठित शेफ हूं, जिसके दुनियाभर में सात रेस्तरां हैं। मैं चाहती हूं कि मेरी पहचान एक शेफ की हो, समलैंगिक शेफ की नहीं।
मैं कभी बंधकर नहीं रही, पर मुझे अपनी लैंगिकता की घोषणा करने वाली टी-शर्ट पहनने की जरूरत नहीं होती। मेरा परिवार और दोस्त, जो मेरे लिए मायने रखते हैं, जानते हैं कि मैं क्या कर रही हूं। लंदन में चार साल रहने के बाद, दिल्ली लौटकर मैंने अपने परिवार से बात की। मेरी मां सुनकर चुप हो गई थीं। लेकिन दो दिन बाद, उन्होंने मेरी पार्टनर के लिए आम उपहार में भेजे थे।
मैं आंदोलनकारी नहीं थी और कभी इच्छा भी नहीं थी। लेकिन मैंने इस औपनिवेशिक कालीन कानून की समीक्षा के लिए दायर याचिका पर हस्ताक्षर किए, जो वयस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध मानता है। मेरा मानना है कि हमें तब तक बदलाव की उम्मीद नहीं रखनी चािहए, जब तक कि हम उस बदलाव के लिए अपनी ओर से कोशिश नहीं करते। कुछ वर्ष पहले मैं भी दिल्ली की ‘गे प्राइड’ में शामिल हुई।
मुझे अपने यौन रुझान को लेकर कभी कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई, पर अब मैं यह सहन नहीं कर पाती कि मेरे समुदाय के लोगों के साथ महज इस कारण भेदभाव किया जाए। प्रेम की आजादी से आशय शारीरिक संबंध नहीं है, पर आप इसे कैसे समझाएंगे? हमें पुलिस, यहां तक कि घरेलू नौकरों और ड्राइवरों द्वारा ब्लैकमेल और धमकियों का सामना करना पड़ता है। मैं अपने घर की दीवारों के भीतर क्या करती हूं, ये मेरा मसला है। मैं भी सभी की तरह एक योग्य और टैक्स भरने वाली नागरिक हूं। मैं बहुत परेशान हुई जब दो प्यार करने वाली लड़कियों को गिरफ्तार किया गया और उनमें से एक लड़की के साथ गांववालों ने बलात्कार किया, यह सोचकर कि इस तरह किया गया यौन कृत्य उन्हें ‘ठीक’ कर देगा। दो व्यक्तियों का प्यार करना अपराध कैसे हो सकता है?
साफ तौर पर कहूं, मैं स्वीकारे जाने की परवाह नहीं करती, पर आप मुझे अपराधी भी कैसे कह सकते हैं? सच यह है कि मैं नई दिल्ली में रहती हूं, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हूं और मेरी अपनी पहचान है। ये सब मेरा बचाव करते हैं, पर इस भेदभाव को ढंग से समझना है तो हमें छोटे शहरों और गांवों में जाना होगा। मैं यह भी कहूंगी कि यह केवल वर्ग और धन की बात नहीं है, यह परिवेश की बात भी है। आप उस मानसिकता के बारे में सोचें जहां लड़कियों का बलात्कार इस विचार के साथ किया जाता है कि वे ठीक हो जाएंगी। मैं याचिका पर हस्ताक्षर करते हुए थोड़ा हिचक रही थी। मुझे कहा गया था कि इससे मेरी रोजमर्रा की जिंदगी पर असर पड़ सकता है, पर मुझे, मेरा काम तो करना ही होगा। हम नहीं चाहते कि हमें अल्पसंख्यक माना जाए, आरक्षण दिया जाए। हम यह हमारी निजता और सम्मान का मामला है।
मुझे यह भी लगा कि मैं अपने परिवार और दोस्तों को चर्चा में ला रही हूं। दरअसल, मेरे एक रिश्तेदार ने मेरी मां से पूछा कि क्या मैं और मेरी पार्टनर एक साथ सोते हैं। मैं रूढ़िवादी सोच रखने वाली दूसरी महिलाओं की तरह, अपनी मां से पिटने के लिए तैयार थी। मुझे लग रहा था कि वे रोएंगी, पर वह मेरे साथ पहाड़ की तरह पूरी मजबूती से खड़ी रहीं। जब मैं अपने पार्टनर से अलग हुई तो वह इस बात की चिंता कर रही थीं कि अब उनकी बेटी अकेली हो जाएगी। जब मैंने याचिका पर हस्ताक्षर किए थे, उसके बाद मेरे पास कई संदेश आए। कोई मुझे पथ भ्रष्ट कह रहा था या तो कोई मुझे आश्रम में जाने की सलाह दे रहा था, पर मेरे पास उन संदेशों से दोगुने संदेश थे, जो मेरे इस कदम की सराहना कर रहे थे।