छत्तीसगढ़: रमन सिंह घर में मिली हार से BJP सतर्क, नए नेतृत्व को उभारने की तैयारी
देश में जिन दो राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बची हैं उनमें से एक छत्तीसगढ़ और दूसरा राजस्थान है। दोनों में ही अगले साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं।

छत्तीसगढ़ के एक उपचुनाव ने इस राज्य में भाजपा की डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। इससे भाजपा के सामने राज्य में नए नेतृत्व को उभारने की भी चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि यह हार पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के गृह जिले में हुई है।
दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए यह जीत काफी उत्साहजनक रही है, जो बीते एक साल से राज्य में नेतृत्व को लेकर खेमेबाजी से जूझ रही थी। इससे पार्टी की अंदरूनी राजनीति में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मजबूत हुए हैं।
देश में जिन दो राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बची हैं उनमें से एक छत्तीसगढ़ और दूसरा राजस्थान है। दोनों में ही अगले साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। यह इसलिए भी अहम है क्योंकि इन चुनावों के ठीक बाद लोकसभा के चुनाव होंगे। भाजपा की एक रणनीति यह भी है कि अगले लोकसभा चुनावों के पहले होने वाली सभी विधानसभा चुनावों में खुद की या राजग की जीत सुनिश्चित की जाए, ताकि लोकसभा चुनावों के समय कांग्रेस की सरकार किसी भी राज्य में न हो।
रमन सिंह के गृह जिले में मिली हार
छत्तीसगढ़ में बीते दो दशक से भाजपा की राजनीति रमन सिंह के इर्दगिर्द घूमती रही है। वह खुद 15 साल तक लगातार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं और उसके बाद बीते विधानसभा चुनाव में हार के बाद वह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए और अभी राज्य में भाजपा के सबसे बड़े नेता है। खैरागढ़ के इस उपचुनाव को उन्होंने अपने घर का चुनाव बताया था। ऐसे में भाजपा की बड़े अंतर से हार से उनके नेतृत्व पर भी सवाल उठे हैं।
नेता के बजाए सामाजिक समीकरणों पर होगा जोर
सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व में अब राज्य में नए नेतृत्व को उभारने की सुगबुगाहट है। पूर्व मुख्यमत्री रमन सिंह अब उतने प्रभावी नहीं दिख रहे हैं। पार्टी पिछड़ा वर्ग से नए नेतृत्व को सामने लाने की सोच रही है। साथ में आदिवासी व दलित समुदाय को भी साध कर रखा जाएगा। राज्य में कांग्रेस की मौजूदा ताकत भी पिछड़ा वर्ग माना जा रहा है। माना जा रहा है कि अगले एक-दो माह में भाजपा छत्तीसगढ़ में कुछ बड़े फैसले लेगी और नए सामाजिक समीकरणों को उभारेगी।
कांग्रेस को बड़ी राहत, मुख्यमंत्री बघेल हुए मजबूत
दरअसल कांग्रेस ने बीते विधानसभा चुनाव में अपने नए नेतृत्व को सामने लाकर भाजपा की डेढ़ दशक की सरकार को हराया था और उसके बाद राज्य में भाजपा को वापसी का माहौल नहीं बना पा रही है। दरअसल यह कांग्रेस की सामाजिक समीकरणों की राजनीति के कारण संभव हुआ है। आदिवासी व दलित राजनीति के बजाए कांग्रेस ने पिछ़़ड़ा व सवर्ण समीकरण उभारे और वह सफल भी रही है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछड़ा वर्ग से आते हैं। गौरतलब है कि राज्य में पिछड़ा वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा है।
बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली थी बड़ी जीत
गौरतलब है कि बीते 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 71 सीटें जीत कर बड़ी जीत हासल की थी। वह भी तब जबकि कांग्रेस से अलग होकर अजीत जोगी अपनी पार्टी के साथ चुनाव मैदान में थे और एक बड़े नक्सली हमले में कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के तमाम नेता शहीद हो चुके थे। इस चुनाव में भाजपा को केवल 14 सीटों से संतोष करना पड़ा था। जोगी की पार्टी को तीन और बसपा को दो सीटें मिली थीं। हालांकि इसके बाद 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के चलते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को एक बार फिर करारी मात देते हुए 11 में से नौ सीटें जीत ली थी।
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