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चीतों को फिर से बसाने की परियोजना चुनौतियों के बावजूद जारी: चीता संरक्षण कोष

नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कूनो में दो समूहों में 20 चीते लाए गए थे, लेकिन मार्च के बाद से इनमें से छह वयस्क चीतों की विभिन्न कारणों से मौत हो गई है।

Madan Tiwari एजेंसियां, नई दिल्लीSun, 17 Sep 2023 03:54 PM
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नामीबिया आधारित 'चीता संरक्षण कोष' (सीसीएफ) ने कहा है कि भारत में चीतों को फिर से बसाने की परियोजना के पहले साल की उल्लेखनीय यात्रा असफलताओं एवं सफलताओं से भरपूर रही और यह परियोजना पटरी पर है। सीसीएफ ने भारत में चीतों को फिर से बसाने के लिए भारतीय प्राधिकारियों के साथ निकटता से मिलकर काम किया है। इसकी संस्थापक लॉरी मार्कर ने इन परियोजनाओं का मसौदा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और 2009 से कई बार भारत की यात्रा की है। 

मार्कर ने एक बयान में कहा, ''भारत में चीतों को बसाना एक साहसिक और चुनौतीपूर्ण प्रयास था। हमने नामीबिया की एक मादा से जन्मे चार शावकों के जन्म और दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों के एक समूह के आने का जश्न मनाया।'' उन्होंने कहा कि असफलताओं और कठिनाइयों के बावजूद परियोजना पटरी पर है। नामीबिया की नेशनल असेंबली के स्पीकर और सीसीएफ के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक पीटर काट्जावीवी ने कहा, ''परियोजना पटरी पर है और नामीबिया को भारत में चीतों के क्षेत्र का विस्तार करने की परियोजना में शामिल होने पर गर्व है।'' बयान में कहा गया कि भारत में चीतों को फिर से बसाने की परियोजना के शुरुआती वर्ष में असफलताएं मिलीं, लेकिन 'प्रोजेक्ट चीता' टीम अपने मिशन के प्रति समर्पित है। 

देश में चीतों के विलुप्त होने के बाद उन्हें फिर से बसाने की भारत की महत्वाकांक्षी पहल 'प्रोजेक्ट चीता' की रविवार को पहली वर्षगांठ है। यह पहल पिछले साल 17 सितंबर को उस समय शुरू हुई थी, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीतों के एक समूह को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान के एक बाड़े में छोड़ा था। तब से, इस परियोजना पर दुनिया भर के संरक्षणवादी और विशेषज्ञ निकटता से नजर रख रहे हैं। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कूनो में दो समूहों में 20 चीते लाए गए थे, लेकिन मार्च के बाद से इनमें से छह वयस्क चीतों की विभिन्न कारणों से मौत हो गई है। मादा नामीबियाई चीता के चार शावकों में से तीन की अत्यधिक गर्मी के कारण मई में मौत हो गई। 

'प्रोजेक्ट चीता' के प्रमुख एस पी यादव के अनुसार, भारत में चीतों के प्रबंधन के पहले वर्ष में सामने आई सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक चुनौती यह थी कि (जून से सितंबर तक) अफ्रीका में सर्दी का मौसम होने के अनुसार अनुकूलन प्रक्रिया के चलते कुछ चीतों के शरीर पर 'शीतकालीन कोट' का विकास हो गया, जबकि भारत में गर्मी और मानसून का मौसम था। उन्होंने 'पीटीआई-भाषा' से कहा कि 'शीतकालीन कोट', अत्यधिक नमी और गर्मी के कारण चीतों को खुजली की परेशानी होने लगी, जिसके कारण उन्होंने पेड़ों और जमीन से स्वयं को रगड़कर खुजलाना शुरू कर दिया। यादव ने बताया कि इसके कारण उनकी त्वचा पर घाव हो गए जहां मक्खियों ने अपने अंडे दिए, जिसके परिणामस्वरूप कीड़ों का संक्रमण हुआ और अंततः जीवाणु संक्रमण तथा सेप्टीसीमिया से कई चीतों की मौत हो गई। उन्होंने बताया कि चीतों की मौत का कारण पता चलते ही उन्हें बाड़ों में वापस लाया गया और एहतियातन दवा दी गई तथा अब वे सभी स्वस्थ हैं। 

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