'आज बिलकिस तो कल कोई भी हो सकता है', दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने कहा कि अपराध की गंभीरता पर राज्य की ओर से विचार किया जाना चाहिए था। एससी ने यह भी कहा कि 'सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती', इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस मामले में कैद के दौरान सभी 11 दोषियों को पैरोल दिए जाने पर मंगलवार को सवाल खड़े किए। जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि अपराध की गंभीरता पर राज्य द्वारा विचार किया जा सकता था। न्यायालय ने कहा, 'एक गर्भवती महिला से सामूहिक दुष्कर्म किया गया और कई लोगों की हत्या कर दी गई। आप पीड़िता के मामले की तुलना धारा 302 (हत्या) के सामान्य मामले से नहीं कर सकते। जैसे सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती। अपराध आम तौर पर समाज और समुदाय के खिलाफ किए जाते हैं। असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता है।'
पीठ ने कहा, 'सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया और किस सामग्री के आधार पर सजा में छूट देने का फैसला किया।' न्यायालय ने कहा, 'आज बिलकिस है, कल कोई भी हो सकता है। यह मैं या आप या भी हो सकते हैं। अगर आप सजा में छूट प्रदान करने के अपने कारण नहीं बताते हैं, तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे।' न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले में दोषियों को सजा में छूट देने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अंतिम निस्तारण के लिए 2 मई की तारीख निर्धारित की। अदालत ने उन सभी दोषियों से अपना जवाब दाखिल करने को कहा, जिन्हें नोटिस जारी नहीं किया गया है। न्यायालय ने केंद्र और राज्य से समीक्षा याचिका दाखिल करने के बारे में उनका रुख स्पष्ट करने को कहा।
समझिए पूरा मामला
एससी ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या को भयावह कृत्य करार दिया था। साथ ही अदालत ने 27 मार्च को गुजरात सरकार से पूछा था कि क्या मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देते समय हत्या के अन्य मामलों में अपनाए गए समान मानक लागू किए गए। गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आगजनी की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी।
बानो ने इस मामले में दोषी ठहराए गए 11 अपराधियों की बाकी सजा माफ करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी है। सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने सजा में छूट दी थी और उन्हें पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था। घटना के वक्त बानो 21 साल की थीं और 5 महीने की गर्भवती भी थीं। गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डिब्बे में आगजनी की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। साथ ही उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गयी थी, जिनमें तीन साल की एक बच्ची भी शामिल थी।
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