बार काउंसिल ने भी किया समलैंगिक विवाह का विरोध, प्रस्ताव पारित कर कहा- संसद पर छोड़ दें
केंद्र सरकार के बाद बार काउंसिल ने भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है। बार काउंसिल ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा है कि इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। कोर्ट में केंद्र सराकर ने समलैंगिक विवाह के अधिकार का विरोध किया है। केंद्र के बाद अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिलों ने भी इस सुनवाई का विरोध किया है और कहा है कि देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को देखते हुए इसे संसद पर छोड़ देना चाहिए। बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा और अन्य राज्य बार काउंसिलों की संयुक्त बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया।
प्रस्ताव में कहा गया कि अगर कोई मामला देश के मौलिक सामाजिक ढांचे में परिवर्तन करता है तो इसका वृहद् स्तर पर प्रभाव पड़ता है। इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। अगर ऐसा कोई नियम लगाया जाता है तो यह विधायी प्रक्रिया से आना चाहिए। प्रस्ताव में कहा गया, शीर्ष न्यायालय द्वारा इस मामले में कोई भी फैसला हमारी भविष्य की पीढ़ियों के लिए नुकसानदेय हो सकता है।
प्रस्ताव में बताया गया कि यह मामला बहुत ही संवेदनशील है। समाज के बहुत सारे वर्ग इसका विरोध करते हैं। बार काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया है कि इस मामले को संसद के लिए छोड़ दिया जाए। कहा गया, देश के 99.9 प्रतिशत लोग समलैंगिक विवाह का विरोध करते हैं। बहुत सारे लोगों को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला याचिकाकर्ताओं के पक्ष में होगा जो कि देश के सामाजिक धार्मिक ढांचे के विरुद्ध होगा।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कहना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत संसद से इसका कोई भी रास्ता निकालनाा चाहिए। इसके लिए बहुत सारे लोगों के विचारों की जरूरत है। इसके अलावा बिना वृहद चर्चा के और सभी परिणामों के बारे में विचार किए कोई भी फैसला देना, भविष्य के लिए गलत साबित हो सकता है। प्रस्ताव में कहा गया कि ऐसा फैसला जो कि लोगों के सामाजिक जीवन को प्रभावित करे, उसके बारे में कोई भी कानून बनाने से पहले सभी ऐंगल से विचार करना जरूरी है जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्ता में संसद में ही हो सकता है।