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अतीक से 28 साल पुरानी दुश्मनी और राजू पाल मर्डर कैसे भूलीं मायावती, क्यों किया माफ

मायावती से 1995 के गेस्ट हाउस कांड में बदसलूकी की गई थी। इसके बाद से ही अतीक अहमद और राजा भैया जैसे नेता उनके लिए जानी दुश्मन बन गए थे। फिर उन्हें माफ क्यों कर दिया गया, यह अहम सवाल है।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली प्रयागराजWed, 19 April 2023 12:38 PM
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यूपी की पूर्व सीएम मायावती के बारे में कहा जाता है कि उनकी जिन पर वक्रदृष्टि पड़ जाती है, उसे वह माफ नहीं करतीं। राजा भैया, अतीक अहमद जैसे कई नेताओं से उनकी अदावत रही है। 1995 गेस्ट हाउस कांड को भी इसकी वजह माना जाता है, जिसके चलते मायावती की अतीक अहमद और राजा भैया से दुश्मनी जैसी थी। इसके बाद भी अतीक अहमद की हत्या से कुछ वक्त पहले तक बसपा ने उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन को शामिल कर रखा था। यही नहीं कहा जाता है कि यदि सब कुछ सही रहता तो शाइस्ता को बसपा से इलाहाबाद में मेयर का टिकट भी मिल सकता था। 

अतीक अहमद और मायावती की रंजिश इतनी पुरानी थी कि गेस्ट हाउस कांड के बाद 2002 में एक केस में पेशी के दौरान माफिया पर हमला हुआ था। इसे लेकर अतीक ने मायावती पर आरोप लगाया था कि मेरी हत्या की साजिश रची गई है। इसके बाद 2005 मे इलाहाबाद पश्चिम सीट से बसपा से जीतने वाले राजू पाल की हत्या करा दी गई, जिसके बाद मायावती और अतीक के रिश्ते कहीं ज्यादा बिगड़ गए। ऐसे में सवाल यह है कि 1995 के गेस्ट हाउस कांड में शामिल रहे अतीक अहमद को मायावती ने माफ क्यों कर दिया? 

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मायावती ने भले ही दिल से अतीक को माफ न किया हो। लेकिन सियासी जरूरत के चलते उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन को इसी साल जनवरी में पार्टी में ले लिया था। यह तक कहा था कि वह इलाहाबाद से बसपा की मेयर प्रत्याशी होंगी। इसकी वजह यह है कि 2012 में सत्ता से बाहर होने के बाद भी मायावती को उम्मीद थी कि वह सत्ता में वापसी कर लेंगी। इसकी वजह यह थी कि करीब तीन दशकों से यूपी की सत्ता बसपा और सपा के बीच ही बनी हुई थी। लेकिन जब भाजपा 2017 में जीती और फिर 2022 में एक बार फिर से योगी बंपर वोटों से सीएम बने तो मायावती को करारा झटका लगा।

इस चुनाव में तो मायावती की पार्टी को महज एक ही सीट मिल सकी और वोट प्रतिशत निचले लेवल पर चला गया। उनका दलित और ब्राह्मण को साथ लाने का दांव भी फेल हो गया। शायद यही वजह थी कि मायावती ने मुस्लिम वोटों की तरफ रुख किया तो अतीक अहमद की पत्नी को भी साथ लेने में हिचक नहीं दिखाई। हालांकि अब भाजपा सपा के साथ ही बसपा को भी निशाने पर ले रही है, जिसने शाइस्ता को उम्मीदवार तक घोषित कर दिया था। मायावती की स्थिति फिलहाल यह है कि वह अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बचाने के लिए भी संघर्ष कर रही हैं। इसलिए दलितों के साथ अब मुस्लिमों को लाने की कोशिश है क्योंकि ब्राह्मण वाला दांव फेल ही रहा है।

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